हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
वर्णित नियम में हमारे लिए कोई ऐसी चीज़ प्रकट नहीं होती है जो धोखाधड़ी और छल के दायरे में आती हो, बल्कि हम नहीं समझते कि किसी देश का क़ानून ऐसी बात की अनुमति देता है जो धोखाधड़ी अैर छल के दायरे में आती है, वास्तव में धोखाधड़ी और छल उन निर्धारित शर्तों का उल्लंघन करने के कारण होता है जिसे शासन अनुमेय कार्य को नियंत्रणित करने के लिए बनाता है, या नियम के साथ चालबाज़ी करने और चालबाज़ का ऐसी चीज़ को ले लेने के कारण होता है जिसका वह हक़दार नहीं है।
किंतु वह पक्ष जो हम मुसलमान के लिए अच्छा नहीं समझते हैं यह है कि वह उन संगठनों में से किसी एक से सहायता मांगे, जबकि वास्तव में वह उसका ज़रूरतमंद नहीं है ; क्योंकि इस स्थिति में उसका हाथ नीचा होगा, हकीम बिन हिज़ाम रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : मैं ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मांगा तो आप ने मुझे प्रदान किया, फिर मैं ने आप से मांगा तो आप ने मुझे दिया, फिर मैं ने आप से मांगा तो आप ने मुझे दिया, फिर आप ने कहा : “ऐ हकीम, यह माल हरा भरा और मीठा है, अतः जिस व्यक्ति ने इसे अपने मन की उदारता के साथ लिया तो उसे उसके अंदर बरकत दी जायेगी, और जिसने उसे मन की लालच के साथ लिया तो उसके लिए उसके अंदर बरकत नहीं होगी, उस आदमी के समान जो खाता तो है लेकिन उसका पेट नहीं भरता है, ऊपर वाला हाथ नीचे वाले हाथ से बेहतर है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या: 1403) और मुस्लिम (हदीस संख्या: 1035) ने रिवायत किया है।
जब इस्लामी शरीअत मुसलमान के लिए इस बात को पसंद नहीं करती है कि उसका हाथ नीचा हो, भले ही देने वाला (ऊपर वाला हाथ) मुसलमान का हाथ ही क्यों न हो, तो फिर उस समय मामला क्या होगा यदि ऊपर वाला हाथ काफिर का हाथ हो ?!
तथा उन संगठनों से सहायता लेने के अनुरोध को रोकना निश्चित हो जाता है यदि उसे प्राप्त करने के लिए उसे हराम (निषिद्ध) जैसे- छात्र से संबंधित जानकारी के विवरण में झूठ और धोखाधड़ी से काम लेना पड़ेगा, या उस सहायत को लेना उसे लेने वाले छात्र को उसके धर्म या उसके नफ्स के प्रति फित्ने में पड़ने का कारण होगा।
शैख अब्दुल अज़ीज बिन बाज़ रहिमहुलला ने फरमाया :
“उनके ऊपर नास्तिक देश की तरफ से सहायता और मदद स्वीकार करने में कोई पाप नहीं है यदि उसके लेने पर किसी वाजिब (कर्तव्य) को छोड़ना या किसी निषिद्ध काम को करना निष्कर्षित न होता हो, तथा उनके लिए उसी सरकारी तरीक़े पर ही सहायता लेना जाइज़ है जिसे देश ने निर्धारित किया है, और उनके लिए उसे प्राप्त करेन के लिए झूठ बोलना सही नहीं है।”‘‘फतावा शैख इब्ने बाज़”(28/239) से अंत हुआ।
तथा इसी मुद्दे के बारे में प्रश्न संख्या : (6357), (7959) और (52810) के उत्तर देखएि।