हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
जब धन निसाब (न्यूनतम सीमा) को पहुँच जाए और उसपर एक पूर्ण (हिजरी) वर्ष बीत जाए, तो ज़कात को तुरंत अदा करना अनिवार्य है। यदि बिना किसी कारण के उसे विलंबित कर दिया तो पापी होगा, लेकिन अगर किसी (वैध) कारण से विलंबित किया है, जैसे कि उसे देने के लिए कोई गरीब आदमी नहीं मिल रहा है ... तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है।
इमाम नववी रहिमहुल्लाह ने कहाः “जब जक़ात अनिवार्य हो जाए और मनुष्य उसके निकालने में सक्षम हो, तो ज़कात को तुरंत अदा करना अनिवार्य है और उसे विलंबित करना जायज़ नहीं है। यही बात इमाम मालिक, इमाम अहमद और विद्वानों की बहुमत ने कही है। क्योंकि अल्लाह तआला ने ज़कात अदा करने का आदेश दिया है, फरमायाः “और ज़कात अदा करो।” [सूरतुल-बक़रा 2:43] और आदेश का तात्पर्य यह होता है कि उसे तुरंत किया जाए..”
“शर्हुल मुहज़्ज़ब” (5/308) से उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा “फतावा स्थायी समिति” (9/398) में आया है:
“यदि ज़कात अदा करने का समय जुमादल-ऊला का महीना है, तो क्या हम बिना किसी कारण के उसे रमज़ान के महीने तक विलंबित कर सकते हैंॽ
उत्तर : साल पूरा होने के बाद ज़कात के भुगतान में देरी करना जायज़ नहीं है, सिवाय इसके कि कोई वैध कारण हो, जैसे कि साल पूरा होने के समय गरीबों की अनुपस्थिति, और उसे उन तक पहुँचाने में असमर्थता तथा धन की अनुपस्थिति इत्यादि। रही बात उसे रमज़ान के कारण विलंबित करने की, तो ऐसा करना अनुमेय नहीं है सिवाय इसके कि विलंब की अवधि बहुत कम हो, जैसे कि एक वर्ष शाबान के महीने के दूसरे अर्द्ध में पूरा हो रहा हो, तो उसे रमज़ान तक विलंबित करने में कोई आपत्ति की बात नहीं है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
शैक्षणिक अनुसंधान और इफता की स्थायी समिति
अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ .. अब्दुल्लाह बिन क़ऊद .. अब्दुल्लाह बिन ग़ुदय्यान।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से रमज़ान तक ज़कात को विलंबित करने के हुक्म के बारे में प्रश्न किया गया।
तो उन्होंने उत्तर दिया : “ज़कात को भी, अन्य अच्छे कामों की तरह, प्रतिष्ठित समय में निकालना बेहतर है। लेकिन जब भी ज़कात अनिवार्य हो जाए और साल बीत जाए, तो मनुष्य के लिए अनिवार्य है कि (तुरंत) उसका भुगतान कर दे और उसे रमज़ान तक विलंबित न करे। चुनांचे अगर उसके धन का साल रजब के महीने में पूरा होता है, तो वह उसे रमज़ान तक विलंबित नहीं करेगा, बल्कि उसे रजब ही के महीने में अदा करेगा। अगर उसका वर्ष मुहर्रम में पूरा होता है, तो वह उसे मुहर्रम ही में भुगतान करेगा, उसे रमज़ान तक विलंबित नहीं करेगा। लेकिन अगर ज़कात का साल रमज़ान में पूरा होता है, तो वह उसे रमज़ान में अदा करेगा। इसी तरह यदि मुसलमानों पर आपात की कोई स्थिति आ जाती है और वह अपनी ज़कात को वर्ष पूरा होने से पहले अग्रिम करना चाहता है, तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है।''
''मजमूउल-फतावा'' (18/295) से उद्धरण समाप्त हुआ।
दूसरा :
चूँकि प्रश्नकर्ता ने एक गलत धारणा के आधार पर अपने धन की ज़कात को रमज़ात तक विलंबित किया था, इसलिए अज्ञानता की वजह से उस पर कोई पाप नहीं है। फिर अगर उसने उसके बाद रमजान में उसका भुगतान कर दिया, तो उसका मुतालबा समाप्त हो गया, और इस विलंब की वजह से उसपर कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है। लेकिन उसके लिए ज़रूरी है कि इस साल उसे जुमादल-आखिरा में अदा करे और रमज़ान तक उसे विलंबित न करे।
और अल्लाह ही सबसे श्रेष्ठ ज्ञान रखता है।