हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।सर्व प्रथम :
बुखारी (हदीस संख्या : 4979) ने अबू जुहैफा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘मैं टेक लगाकर नहीं खाता हूँ।”
टेक लगाने का अर्थ है : हर वह बैठक जिसमें इतमिनान के साथ बैठकर खाया जाता है, क्योंकि यह इस बात का कारण है कि वह अधिक खाना खायेगा, और यह बात धार्मिक रू से निषिध है।
इसीलिए नववी ने कहा है :
“उसका अर्थ यह है कि : मैं उस आदमी के समान नहीं खाता हूँ जो अधिक खाना, खाना चाहता है और उसके लिए जम कर बैठता है, बल्कि मैं उस तरह बैठता हूँ जो उठने के लिए तैयार होता है, और मैं थोड़ा खाता हूँ।” 'शर्ह मुस्लिम' से समाप्त हुआ।
हाफिज़ (इब्ने हजर) रहिमहुल्लाह ने फरमाया : ‘‘ टेक लगाने के तरीक़े के बारे में मतभेद किया गया है, चुनांचे कहा गया है कि : वह खाने के लिए जम कर बैठ जाये चाहे वह किसी भी तरीक़े पर हो, तथा एक कथन यह है कि : वह अपने एक पहलू की तरफ झुक जाए। तथा कहा गया है कि : वह अपने बायें हाथ से ज़मीन पर टेक लगा ले। खत्ताबी ने कहा :सामान्य लोगों का गुमान है कि टेक लगाने वाला वह व्यक्ति है जो अपने एक पहलू पर खाए, हालांकि वास्तव में ऐसा नही है, बल्कि वह व्यक्ति है जो अपने नीचे के फर्श पर सहारा लिए हो, उन्हों ने कहा : हदीस का अर्थ यह है कि मैं खाने के समय फर्श पर टेक लगाकर उस व्यक्ति के समान नहीं बैठता हूँ जो बहुत अधिक खाना चाहता है, मैं केवल इतनी मात्रा में खाता हूँ जिस से गुज़ारा हो जाए, इसीलिए मैं इस तरह बैठता हूँ जो उठने के लिए तैयार होता है।’’ फत्हुल बारी (9/541) से समाप्त हुआ, तथा मआलिमुस्सुनन लिल-खत्ताबी (4/242) देखिए तथा इब्नुल क़ैयिम की ज़ादुल मआद (4ध्202) भी देखिए।
तथा क़ारी ने 'अल-मिर्क़ात' में फरमाया : ‘‘शिफा में मुहक़्क़ेक़ीन के बारे में उल्लेख किया गया है कि उन्हों ने उसकी व्याख्या खाने के लिए जमकर बैठने तथा उस व्यक्ति के समान बैठने से की है जो आलती पालती मार कर अपने नीचे के फर्श के सहारे बैठता है, क्योंकि यह बैठक अधिक खाना खाने का तक़ाज़ा करती है तथा घमंड का तकाज़ा करती है।” औनुल माबूद शर्ह सुनन अबू दाऊद (10/244) से संपन्न हुआ।
दूसरा :
जहाँ तक खाना खाने का इरादा रखने वाले के बैठने के तरीक़े का संबंध है तो मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या: 3807) में अनस बिन मालिक से रिवायत किया है कि उन्हों ने फरमाया: ‘‘मैं ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इक़्आ की स्थिति में (अर्थात् अपने दोनों पैरों को खड़ा करके और अपनी ऐँड़ियों के बल बैठे हुए) खजूर खाते देखा।”
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लासह ने फरमाया : ‘‘इक़्आ का तरीक़ा यह है कि वह अपने दोनों पैरों को खड़ा कर ले और अपनी ऐँड़ियों पर बैठ जाए, यही इक़आ का तरीक़ा है और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस तरह इसलिए खाया ताकि आप बैठक में स्थिर न हो जाएं और अधिक खाना खायें, क्योंकि आम तौर पर मनुष्य जब इक़्आ के तरीक़े पर बैठता है तो बैठने में इतमिनान नहीं होता है, अतः वह अधिक नही खाता है, और जब वह इतमिनान से नहीं बैठेगा तो कदापि अधिक नहीं खायेगा, और जब इतमिनान के साथ बैठेगा तो अधिक खाना खायेगा, आम तौर से ऐसा ही होता है . . . ’’ रियाज़ुस्सालिहीन की शर्ह से समाप्त हुआ।
हाफिज़ रहिमहुल्लाह ने फरमाया: ‘‘खाने वाले के लिए बैठने के तरीके़ में मुस्तहब यह है कि वह अपने दोनो घुटनों और पैर के ज़ाहिरी हिस्से पर बैठा हुआ हो, या दाहिने पैर को खड़ा रखे और बायें पैर पर बैठ जाए . . .’’‘‘फत्हुलबारी” से समाप्त हुआ।
तो खाने वाले के लिए ये तीन बैठने के तरीक़े हैं :
1- इक़्आ का तरीक़ा . . .
2- अपने दोनों घुटनों और पैर के ज़ाहिरी हिस्से के सहारे बैठना।
3- बायें पैर पर बैठ जाना और दाहिने पैर को खड़ा रखना।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया : ‘‘. . . किंतु सबसे अच्छा यह है कि आप मुतमइन और स्थिर मनुष्य के समान न बैठें, ताकि यह अधिक खाना खाने का कारण न बने, क्योंकि अधिक खाना खाना उचित नहीं है।” 'रियाज़ुस्सालिहीन' की शर्ह से समाप्त हुआ।