हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
यदि बैंक ग्राहक को किस्तों में अचल संपत्ति बेचता है, तो उसके लिए देर से भुगतान की स्थिति में ग्राहक पर जुर्माना लगाने की अनुमति नहीं है; क्योंकि क़िस्तें ग्राहक पर एक ऋण हैं, और ऋण के भुगतान में देरी होने पर जुर्माना वसूलना करना रिबा (सूद) के अंतर्गत आता है। तथा प्रश्न संख्या : (89978) और प्रश्न संख्या : (112090) के उत्तर देखें।
बैंक के लिए - अपने अधिकार की गारंटी के लिए – एक दायी ज़मानतदार (गारंटर) नियुक्त करने की शर्त लगाना धर्मसंगत है, अर्थात् देनदार के अलावा एक अन्य गारंटर, जिससे बैंक अपनी क़िस्त के भुगतान की माँग कर सकता है, यदि वह व्यक्ति जिसपर देनदारी है भुगतान करने में देरी करता है या भुगतान करने में टालमटोल करता है।
वह (बैंक) रेहन (बंधक) भी ले सकता है, जिसमें स्वयं बेची गई वस्तु को बंधक के रूप में लेना भी शामिल है। इसलिए ग्राहक को इसका उपयोग करने की अनुमति देने के साथ, भुगतान किए जाने तक इसे गिरवी रखा जाएगा। इसे गिरवी रखने का लाभ यह है कि : ग्राहक इसे बेचने में सक्षम नहीं होगा। उसपर यह शर्त लगाना भी जायज़ है कि : यदि वह भुगतान करने में असमर्थ रहता है, तो बैंक अदालत में जाने की आवश्यकता के बिना गिरवी रखी गई वस्तु को बेच देगा।
इसी तरह गारंटी के साधनों में से एक : ग्राहक पर उसी बैंक में अपने खाते का हस्तांतरण करने, और वेतन का भुगतान होते ही बैंक को क़र्ज की क़िस्तें लेने में सक्षम बनाने की शर्त निर्धारित करना भी है।
उसी में से एक तरीक़ा : टालमटोल करने वाले ग्राहक को काली सूची में डालना, और सभी बैंकों के साथ इस बात पर सहमति बनाना है कि वे इस सूची में शामिल लोगों के साथ व्यवहार न करें।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।