हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हदीस में वर्णित हुआ है कि अल्लाह के नामों के शुमार करने का सवाब स्वर्ग में प्रवेश है, चुनांचे बुख़ारी (हदीस संख्या : 2736) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2677) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अल्लाह के निन्यानबे, एक कम सौ नाम हैं, जिसने उन्हें शुमार (एहसा) किया वह जन्नत में प्रवेश करेगा।”
हदीस में वर्णित “एहसा” (अर्थात गणना करना, शुमार करना) निम्नलिखित बातों को सम्मिलित है :
1- उन्हें याद करना।
2- उनके अर्थ जानना।
3- उनकी अपेक्षा के अनुसार काम करना : जब यह मालूम हो गया कि वह “अल-अहद” अर्थात एक है तो उसके साथ किसी को साझी न ठहराए, जब यह पता चल गया कि वह “अर-रज़्ज़ाक़” अर्थात एकमात्र वही रोज़ी देनेवाला है तो उसके अलावा किसी अन्य से रोज़ी न मांगे, जब उसे मालूम होगया कि वह “अर-रहीम” अर्थात बहुत दयावान है तो वह ऐसी नेकियाँ करे जो इस दया की प्राप्ति का कारण हों . . . इत्यादि।
4- उनके द्वारा दुआ करना : जैसा कि अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :
وَلِلَّهِ الْأَسْمَاءُ الْحُسْنَى فَادْعُوهُ بِهَا [الأعراف : 180 ]
“और अच्छे अच्छे नाम अल्लाह ही के लिए हैं, अतः तुम उसे उन्हीं नामों से पुकारो।” (सूरतुल आराफ : 180). जैसे कि वह कहे : ऐ रहमान! मुझ पर दया कर, ऐ ग़फ़ूर मुझे क्षमा कर दे, ऐ तव्वाब ! मेरी तौबा क़बूल कर, इत्यादि।
इसी से - ऐ हमारी प्रश्नकर्ता बहन - आप यह समझ सकती हैं कि उन नामों का अर्थ समझे, उन पर अमल किए और उनके द्वारा दुआ किए बिना, मात्र उनकी तिलावत (पाठ) करना धर्मसंगत नहीं है। शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन ने फरमाया : उसके एहसा (शुमार करने) का मतलब यह नहीं है कि उन्हें कागज़ के टुकड़ों पर लिखकर बार बार देाहराया जाए यहाँ तक कि वे याद हो जाएं .. ”
“मजमूओ फतावा व रसाइल इब्ने उसैमीन” (1/74) से समाप्त हुआ।
इसमें कोई संदेह नहीं कि रमज़ान के महीने का क़ुर्आन की तिलावत मे उपयोग करना किसी अन्य ज़िक्र में व्यस्त होने से बेहतर है, अतः हम आपको अधिक से अधिक क़ुर्आन की तिलावत करने और उसके अर्थों में मननचिंतन करने की वसीयत करते हैं, तथा आप अल्लाह के नामों के द्वारा दुआ करने से उपेक्षा न करें।