हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व र्पथम :
अल्लाह सर्वशक्तिमान की किताब के द्वारा निर्धारित व निश्चित मदों (हक़दार लोगों) के अलावा में ज़कात की धनराशि को खर्च करना जायज़ नहीं है :
إِنَّمَا الصَّدَقَاتُ لِلْفُقَرَاءِ وَالْمَسَاكِينِ وَالْعَامِلِينَ عَلَيْهَا وَالْمُؤَلَّفَةِ قُلُوبُهُمْ وَفِي الرِّقَابِ وَالْغَارِمِينَ وَفِي سَبِيلِ اللَّهِ وَابْنِ السَّبِيلِ فَرِيضَةً مِنَ اللَّهِ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
[التوبة :60 ]
''सदक़े (ज़कात) तो मात्र फक़ीरों, मिसकीनों, उनकी वसूली के कार्य पर नियुक्त कर्मियों और उन लोगों के लिए हैं जिनके दिलों को आकृष्ट करना और परचाना अभीष्ट हो, तथा गर्दनों को छुड़ाने, क़र्ज़दारों के क़र्ज़ चुकाने, अल्लाह के मार्ग (जिहाद) में और (पथिक) मुसाफिर पर खर्च करने के लिए हैं। यहअल्लाह की ओर से निर्धारित किए हुए हैं, और अल्लाह तआला बड़ा जानकार, अत्यंत तत्वदर्शी (हिकमत वाला) है।'' (सूरतुत्तौबाः60)
यह आदेश इस्लामी स्कूलों, या क़ुरआन कंठस्थ के केंद्रों या इसी तरह के धर्मार्थ परियोजनाओं पर (भी) लागू होता है, अतः उनके निर्माण या उनकी नींव रखने में ज़कात की धनराशि को लगाना जायज़ नहीं है।
लेकिन अगर इन स्कूलों में गरीब छात्र या कर्मचारी इत्यादि हैं तो उनको ज़कात देना जायज़ है, क्योंकि वे (ज़कात के) हक़दारों में से हैं।
तथा प्रश्न संख्या : (125481 ), और (146368 ) का उत्तर देखें।
दूसरा :
क़ुरआन कंठस्थ कराने के स्कूलों का निर्माण और उसकी देखरेख करना भलाई (नेकी) के कामों में से है, जिस पर लोगों को उभारा जायेगा, और उनमें ज़कात की धनराशि के अलावा दूसरे फंड से धन लगाया जायेगा।
सही बात यह है कि धनवान लोग मदरसा के लिए जो अनुदान देते हैं उसके लिए इस मदरसा के लिए एक धर्मार्थ कोष बना दिया जाए। तथा इस उद्देश्य के लिए किसी इस्लामी बैंक में एक विशेष खाता खोलने में कोई आपत्ति की बात नहीं है।
इस धन में ज़कात अनिवार्य नहीं है क्योंकि यह वक़्फ की धनराशि के हुक्म में है। प्रश्न संख्या (94842 ) का उत्तर देखें।
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