हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सहीह हदीसों में प्रमाणित है कि आप ने मुसलमानों को इस बात का आदेश दिया है कि जब वे सूर्य या चंद्र ग्रहण देखें, तो ग्रहण की नमाज़ पढ़ें, ज़िक्र व अज़कार करें और दुआ करें,आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि : "सूर्य और चंद्रमा अल्लाह तआला की निशानियों में से दो निशानियाँ हैं, इन दोनों में किसी की मृत्यु या जीवन के कारण ग्रहण नहीं लगता है, किन्तु अल्लाह तआला इन्हें इस लिए भेजता है ताकि इनके द्वारा अपने बन्दों को डराये धमकाये, अत: जब तुम इसे देखो तो नमाज़ पढ़ो और दुआ करो यहाँ तक कि ग्रहण खत्म हो जाये।" और एक दूसरी हदीस के शब्द इस प्रकार हैं : "जब तुम इसे देखो तो अल्लाह तआला के ज़िक्र व अज़कार (स्मरण), उस से दुआ करने और उस से क्षमा याचना करने (गुनाहों की माफी मांगने) की तरफ जल्दी करो।" तो इस हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नमाज़, दुआ, ज़िक्र व अज़कार और इस्तिगफार (क्षमा याचना) के हुक्म को ग्रहण के देखने पर लंबित (आधारित) किया है, खगोलविदों की सूचना पर नहीं।
इसलिए सभी मुसलमानों पर सुन्नत को मज़बूती से थामना, उस पर अमल करना, तथा उस का विरोध करने वाली प्रत्येक चीज़ से बचाव करना अनिवार्य है।
इस से ज्ञात हो गया कि जिन लोगों ने खगोलविदों की सूचना पर भरोसा करते हुए ग्रहण की नमाज़ पढ़ी है उन्हों ने गलती की है और सुन्नत का विरोध किया है।
तथा यह भी ज्ञात होता है कि जिस देश मे ग्रहण नहीं लगा है उसके निवासियों के लिए ग्रहण की नमाज़ पढ़ना धर्म संगत नहीं है, क्योंकि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नमाज़ इत्यादि के आदेश को ग्रहण के देखने से संबंधित किया है, खगोलविदों की इस सूचना से नहीं कि ग्रहण लगेगा, और न ही किसी दूसरे देश में लगने से संबंधित किया है, जबकि सर्वशक्तिमान अल्लाह का फरमान है : "और पैग़म्बर जो कुछ तुम्हें दें, उसे ले लो और जिस चीज़ से तुम्हें रोक दें, उस से रुक जाओ।" (सूरतुल हश्र: 7).
तथा अल्लाह सुब्हानहू व तआला ने फरमाया : "नि:सन्देह तुम्हारे लिए पैग़म्बर सल्ल-ल्लाहु अलैहि व सल्लम में बेहतरीन नमूना (उत्तम आदर्श)है।" (सूरतुल अह्ज़ाब: 21)
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ग्रहण की नमाज़ उस समय पढ़ी जब मदीना में सूर्य ग्रहण लगा और लोगों ने उसे देखा, और सर्वशक्तिमान अल्लाह का फरमान है : "सुनो! जो लोग पैग़म्बर के आदेश का विरोध करते हैं उन्हें डरते रहना चाहिए कि उन पर कोई भयंकर आफत न आ पड़े या उन्हें कष्ट दायक प्रकोप न घेर ले।" (सूरतुन् नूर : 63).
और यह बात सर्वज्ञात है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों में सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखने वाले और लोगों के सब से बढ़कर ख़ैरख्वाह (शुभचिंतक) हैं, और यह कि आप ही अल्लाह की तरफ से उसके अहकाम को लोगों तक पहुँचाने वाले हैं। अत: अगर खगोलविदों की सूचनाओं के आधार पर, या ऐसे छेत्रों या प्रांतों में ग्रहण लगने के कारण जिसे केवल उस के निवासियों के द्वारा ही देखा जा सकता है, ग्रहण की नमाज़ पढ़ना धर्म संगत होता, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसे अवश्य स्पष्ट करते और उस की ओर उम्मत का मार्गदशर्न करते। लेकिन जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे स्पष्ट नहीं किया, बल्कि आप ने उसके विपरीत चीज़ का वर्णन किया, और उम्मत का इस तत्व की ओर मार्गदशर्न किया कि वे ग्रहण के लिए आँखों के द्वारा देखने पर भरोसा करें, तो इस से ज्ञात हुआ कि ग्रहण की नमाज़ केवल उसी के लिए धर्म संगत है जिस ने उसे देखा हो, या उस के देश में ग्रहण लगा हो। और अल्लाह तआला ही तौफीक़ देने वाला (शक्ति का स्रोत) है।
समाहतुश्शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ रहिमहुल्लाह की किताब