हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
तुम्हारे दोस्त ने - बिना संदेह के - गलती की है जो उसने यह कहा है कि तुम्हारे लिए मीक़ात से बिना एहराम के गुज़रना जायज़ है, तथा उसने दूसरी बार यह गलती की है कि तुम्हे स्वयं मक्का से एहराम बाँधने दिया ; क्योंकि मक्का वाले और जो लोग उनके हुक्म में हैं उनके लिए हरम की सीमा से बाहर हलाल स्थान में निकलना अनिवार्य है यदि वे उम्रा अदा करने की इच्छा रखते हैं।
तथा शरीअत ने हज्ज और उम्रा के उद्देश्य से मक्का आने वालों के लिए स्थानिक मीक़ात निर्धारित किए हैं। अतः या तो वह स्वयं वहीं से गुज़रेगा तो वहाँ से एहराम बाँधेगा, और या तो वह उस स्थान से एहराम बाँधेगा जो उसके बराबर में है।
और जो व्यक्ति मक्का और मीक़ात के बीच में रहता है: तो वह अपने स्थान ही से एहराम बाँधेगा, इसी तरह मीक़ात के अंदर रहनेवालों में से जो व्यक्ति जद्दा आदि आया, फिर उसके लिए यह ज़ाहिर हुआ कि वह उम्रा करे : तो वह अपने स्थान से उम्रा करे।
इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने फरमाया : ''अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मदीना वालों के लिए ज़ुल-हुलैफा को, अहले शाम के लिए जोहफा को, और अहले नज्द के लिए क़र्नुल मनाज़िल को और यमन वालों के लिए यलमलम को मीक़ात निर्धारित किया। तो वे मीक़ात उन लोगों के लिए हैं तथा उनके वासियों के अलावा में से उन लोगों के लिए जिनका वहाँ से आगमन हो जो हज्ज और उम्रा का इरादा रखते हैं। तथा जो लोग उनके अंदर रहनेवाले हैं तो उसके एहराम बांधने की जगह उसके परिवार के स्थान से है।’’ इसे बुखारी (हदीस संख्या: 1454) और मुस्लिम (हदीस संख्या: 1181) ने रिवायत किया है।
तुम्हारे दोस्त के ऊपर उस हुक्म को शरीअत से संबंधित करने की वजह से तौबा और इस्तिगफार (क्षमायाचना) करना अनिवार्य है, तथा आप - सभी लोगों - पर - जमहूर विद्वानों के निकट - एक बकरी अनिवार्य है जिसे हरम में ज़बह किया जायेगा और उसके गरीबों में वितरित कर दिया जायेगा। तुम में से जो आदमी इस में सक्षम न हो, तो उसके लिए तौबा करना काफी है।
स्थायी समिति के विद्वानों ने फरमाया :
‘‘जिस व्यक्ति ने उम्रा की नीयत की फिर वह मीक़ात से गुजर रहा है तो उसके ऊपर अनिवार्य है कि वह उससे एहराम बाँधे। उसके लिए बिना एहराम के उससे आगे बढ़ना जायज़ नहीं है, और चूँकि आप लोगों ने मीक़ात से एहराम नहीं बाँधा था इसलिए आप लोगों में से हर एक पर एक दम अनिवार्य है। और वह ऐसी बकरी ज़बह करना है जो क़ुर्बानी में पर्याप्त होती है, जिसे मक्का में ज़बह किया जायेगा, और उसके गरीबों में वितरित कर दिया जायेगा, और उससे आप लोग कुछ नहीं खायेंगे। रही बात एहराम के कपड़े पहनने के बाद दो रकअत नमाज़ पढ़ने की, तो इस बारे में आप लोगों पर कोई आपत्ति की बात नहीं है।’’
शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़, शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक़ अफीफी, शैख अब्दुल्लाह बिन गुदैयान।
‘‘इफ्ता और वैज्ञानकि अनुसंधान के स्थायी समिति का फतावा’’ (11/176, 177(
तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुललाह हज्ज और उम्रा के अंदर किसी वाजिब को छोड़ने के मुद्दे के बारे में एक वैज्ञानिक विस्तार के बाद – फरमाया :
‘‘ऐसी स्थिति में हम किसी वाजिब को छोड़ने वाले से कहेंगे : मक्का में एक फिद्या ज़बह करो और स्वयं उसके गरीबों में वितरित कर दो, या तो जिस वकील (एजेंट) पर आपको विश्वास है उसे वकील (प्रतिनिधि) बना दो। यदि आप इस में सक्षम नहीं हैं : तो आपका तौबा करना रोज़े की ओर से काफी होगा, इस मसअले में हमारा यही विचार है।’’
‘‘अश्शरहुल मुम्ते’’ (7/441) से समाप्त हुआ।
तथा आप मक्का में अपनी ओर से ज़बह करने के लिए वकील नियुक्त करने के लिए विश्वसनीय संस्थाओं से संपर्क कर सकते हैं।