हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
इस्लाम में निकाह के अनुबंध के स्तंभ तीन हैं :
सर्व प्रथम : निकाह की शुद्धता को रोकने वाली बाधाओं जैसे - नसब या रज़ाअत आदि की वजह से महरम होने, तथा आदमी के काफिर और औरत के मुसलमान होने और इसके अलावा अन्य बाधाओं से खाली पति और पत्नी का होना।
दूसरा : ईजाब का होना और वह वली (अभि भावक) या उसके प्रतिनिधि की तरफ से जारी होनेवाला शब्द है, इस प्रकार कि वह पति से कहे कि मैं ने फलाँ औरत से तुम्हारी शादी कर दी।
तीसरा : स्वीकृति का होना और वह पति या उसके प्रतिनिधि की ओर से जारी होनेवाला शब्द है, इस तरह कि वह कहे : मैं ने क़बूल किया।
जहाँ तक निकाह के शुद्ध होने की शर्तों का संबंध है तो वे यह हैं :
प्रथम : संकेत से, या नाम लेकर, या गुणविशेषण आदि के द्वारा पति और पत्नी में से प्रत्येक को निर्धारित करना।
दूसरी : पति और पत्नी में से प्र्रत्येक का दूसरे से सहमत होना क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ‘‘बिना पति वाली औरत (मृत्यु या तलाक़ की वजह से जिसका पति न रह गया हो) की शादी न की जाय यहाँ तक कि उससे परामर्श कर लिया जाय (अर्थात उसका आदेश ले लिया जाय, चुनाँचे उसका स्पष्टीकारण करना ज़रूरी है) तथा कुंवारी औरत की शादी न की जाय यहाँ तक कि उसकी अनुमति ले ली जाय (अर्थात यहाँ तक कि वह शब्दों के द्वारा या मौन धारण करके सहमति व्यक्त कर दे), लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर! उसकी अनुमति कैसे होगी (क्योंकि वह शरमाती है) आप ने फरमाया : वह खामोश रहे।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 4741) ने रिवायत किया है।
तीसरी : महिला का निकाह उसका वली (सरपरस्त, अभि भावक) कराए क्योंकि अल्लाह तआला ने वलियों को निकाह कराने के लिए संबोधित किया है, चुनाँचे फरमाया :
وَأَنْكِحُوا الْأَيَامَى مِنْكُمْ [ سورة النور : 32]
“और तुम अपने में से अविवाहितो का विवाह कर दो।” (सूरतुन्नूरः 32).
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :
“जिस औरत ने भी अपने वली की अनुमति के बिना निकाह किया तो उसका निकाह बातिल है, तो उसका निकाह बातिल है, तो उसका निकाह बातिल है।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1021) वगैरह ने रिवायत किया है और यह एक सहीह हदीस है।
चौथी : निकाह के अनुबंध पर गवाही रखना, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “एक वली और दो गवाहों के बिना निकाह नहीं है।” इसे तबरानी ने रिवायत किया है और वह सहीहुल जामे (हदीस संख्या : 7558) में है।
तथा निकाह की घोषणा और प्रचार करना निश्चित है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरामन है : “निकाह का एलान करो।” इसे इमाम अहमद ने रिवायत किया है और उसे सहीहुल जामे (हदीस संख्या : 1072) में हसन करार दिया है।
जहाँ तक वली की बात है तो उसके अंदर निम्नलिखित चीज़ों की शर्त लगाई जाती है :
1- बुद्धि का होना।
2- व्यस्क (बालिग) होना।
3- आज़ादी।
4- धर्म की एकता (अर्थात दोनों का धर्म एक हो), चुनाँचे एक नास्तिक को किसी मुसलमान पुरूष या मुसलमान महिला के ऊपर सरपरस्ती का अधिकार नहीं है, इसी तरह किसी मुसलमान को किसी नास्तिक पुरूष या नास्तिक महिला पर सरपरस्ती हासिल नहीं है, जबकि नास्तिक को एक नास्तिक महिला के ऊपर शादी कराने की सरपरस्ती प्राप्त है भले ही दोनों का धर्म अलग-अलग हो, तथ मुर्तद्द (धर्म से फिर जानेवाले) आदमी को किसी पर सरपरस्ती का अधिकार नहीं है।
5- सत्यवाद व न्यायप्रियताः जो दुराचार के विपरीत हो, यह कुछ विद्धानों के निकट शर्त है, जबकि कुछ लोगों ने केवल ज़ाहिरी सत्यवाद व न्याय प्रियता पर बस किया है, तथा कुछ लोगों ने कहा है कि इतनी बात काफी है कि वह जिसकी शादी के मामले की सरपरस्ती कर रहा है उसके हित के बारे में चिंतन करने वाला हो।
6- पुरूषत्व : अर्थात पुरूष होना क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “कोई महिला किसी महिला की शदी न करे, और न ही कोई महिला अपनी शादी स्वयं करे। क्योंकि व्यभिचारणी महिला ही अपनी शादी स्वयं करती है।” इसे इब्ने माजा (हदीस संख्या : 782) ने रिवायत यिका है और यह हदीस सहीहुल जामे (7298) में है।
7- विवेक व समझ बूझ : अर्थात कुशल व योग्य व्यक्ति और निकाह के हितों की पहचान करने पर सक्षमता का होना।
फुक़हा के यहाँ वलियों का एक क्रम (तर्तीब) है चुनाँचे निकटतम वली को छोड़कर दूसरे का चयन उसी समय किया जायेगा जब वह मौजूद न हो या वह वली की शर्तों पर न उतरता हो। महिला का वली (सरपरस्त) उसका पिता, फिर उसका वसीयत किया हुआ आदमी, फिर बाप की तरफ से उसका दादा अगरचे ऊपर तक चला जाए, फिर उस महिला का बेटा, फिर उसके बेटे अगरचे नीचे तक चले जाएँ, फिर उसका सगा भाई, फिर बाप की तरफ से भाई फिर उन दोनों के बेटे, फिर उस महिला का सगा चाचा फिर उसका अल्लाती चाचा फिर उन दोनों के बेटे, फिर असबह में से नसब के एतिबार से निकटतम रिश्तेदार, तथा मुसलमान बादशाह (और उसका प्रतिनिधित्व करने वाला जैसे क़ाज़ी) उस का वली (सरपरस्त) है जिसका कोई सरपरस्त नहीं है। और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।