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ईसाइयों में से उस आदमी का हुक्म जिसने इस्लाम के बारे में नहीं सुना

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प्रकाशन की तिथि : 27-01-2015

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प्रश्न

आप ने फत्वा संख्या : (10127) में उल्लेख किया है कि : जो व्यक्ति काफिर (नास्तिक) होकर मर गया, लेकिन उसने इस्लाम के बारे में नहीं सुना, और प्रयास के बावजूद वह सहीह दीन की जानकारी प्राप्त करने पर सक्षम नहीं हो सका, तो प्रलय के दिन उसका परीक्षण किया जायेगा। तो क्या यह उन काफिरों पर भी लागू होता है जिनका क़ुरआन करीम में वर्णन हुआ है, जैसे : वे ईसाई जो ईसा अलैहस्सलाम के ईश्वरत्व का दावा करते हैं? आप से उत्तर देने का अनुरोध है ताकि मैं अल्लाह की इच्छा से क़ुरआन करीम के अर्थों को सही ढंग से समझ सकूँ।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

जी हां, यह हुक्म उन सभी नास्तिकों (काफिरों) को सम्मिलित है जिन्हें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का सन्देश नहीं पहुँचा, और उन्हों ने उसके बारे में बिल्कुल नहीं सुना, या उन्हों ने उसके बारे में सहीह ढंग से नहीं सुना जिसके द्वारा उन पर हुज्जत क़ायम (तर्क स्थापित) हो सके, और वे नबुव्वत (ईशदूत्व) के प्रकाश तक पहुँचने में सक्षम नहीं हो सके। यह अल्लाह की अपने बन्दों पर दया व करूणा है कि : उसने बन्दों को दंडित करने अरै उन पर हुज्जत (तर्क) स्थापित करने की इल्लत (कारण) : अपने संदेश का उन तक पहुँचना क़रार दिया है। अतः जिस व्यक्ति को पैगंबर का संदेश नहीं पहुँचा है, वह यातना का पात्र नहीं है। अल्लाह तआला का कथन है :

مَنِ اهْتَدَى فَإِنَّمَا يَهْتَدِي لِنَفْسِهِ وَمَنْ ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَا وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِينَ حَتَّى نَبْعَثَ رَسُولًا [الإسراء : 15]

''जो कोई सीधा मार्ग अपनाए तो उसने अपने ही लिए सीधा मार्ग अपनाया और जो पथभ्रष्ट हुआ, तो उसके भटकने की हानि उसी के ऊपर है। और कोई भी बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। और हम लोगों को यातना नहीं देते जब तक कोई रसूल न भेज दें।'' (सूरतुल इसरा : 15).

तथा अल्लाह ने फरमाया :

رُسُلًا مُبَشِّرِينَ وَمُنْذِرِينَ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَى اللَّهِ حُجَّةٌ بَعْدَ الرُّسُلِ وَكَانَ اللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا [سورة النساء : 165]

''रसूल शुभ समाचार देनेवाले और सचेत करनेवाले बनाकर भेजे गए हैं, ताकि रसूलों के पश्चात लोगों के पास अल्लाह के मुक़ाबले में (अपने निर्दोष होने का) कोई तर्क न रहे। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।'' (सूरतुन निसा : 165 )

तथा अल्लाह ने फरमाया :

يَا أَهْلَ الْكِتَابِ قَدْ جَاءَكُمْ رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمْ عَلَى فَتْرَةٍ مِنَ الرُّسُلِ أَنْ تَقُولُوا مَا جَاءَنَا مِنْ بَشِيرٍ وَلَا نَذِيرٍ فَقَدْ جَاءَكُمْ بَشِيرٌ وَنَذِيرٌ وَاللَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ [سورة المائدة : 19]

''ऐ किताब वालो! हमारा रसूल ऐसे समय तुम्हारे पास आया है और तुम्हारे लिए (हमारा आदेश) खोल-खोलकर बयान करता है, जबकि रसूलों के आने का सिलसिला एक मुद्दत से बन्द था, ताकि तुम यह न कह सको कि ''हमारे पास कोई शुभ-समाचार देनेवाला और सचेत करनेवाला नहीं आया।'' तो देखो! अब तुम्हारे पास शुभ-समाचार देनेवाला और सचेत करनेवाला आ गया है। अल्लाह को हर चीज़ का सामर्थ्य प्राप्त है।'' (सूरतुल मायदा : 19)

इस अर्थ की आयतें बहुत हैं और सर्वज्ञात हैं।

तथा सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या : 153) में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''उस अस्तित्व की क़सम जिसके हाथ में मुहम्मद की जान है, इस उम्मत का जो भी व्यक्ति] चाहे वह यहूदी हो या ईसाई, मेरे बारे में सुनता है फिर वह मर जाता है और उस चीज़ पर ईमान नहीं लाता जिसे देकर मैं भेजा गया हूँ तो वह नरकवासियों में से होगा।''

इससे पता चला कि जिसके पास सन्देष्टाओं का सन्देश नहीं पहुँचा है, उसके पास हुज्जत (तर्क) है जिसके द्वारा वह अल्लाह के पास अपनी ओर से बहस कर सकता है,और उसके ज़रिया अपने आप से यातना को हटा सकता है।

तथा इस हदीस से मालूम हुआ कि जिसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बारे में नहीं सुना है, वह उन नरकवासियों में से नहीं है जो उसके पात्र हैं।

शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या ने फरमाया : ''यहाँ पर एक मूल सिद्धांत है जिसका वर्णन करना ज़रूरी है, और वह यह है कि : शरीअत के नुसूस (मूल पाठ) इस बात को प्रमाणित करते हैं कि अल्लाह तआला केवल उसी को यातना देता है जिसकी ओर कोई पैगंबर भेजा होता है जिसके द्वारा उस पर हुज्जत (तर्क) स्थापित हो जाता है : अल्लाह तआला ने फरमाया :

وَكُلَّ إِنْسَانٍ أَلْزَمْنَاهُ طَائِرَهُ فِي عُنُقِهِ وَنُخْرِجُ لَهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ كِتَابًا يَلْقَاهُ مَنْشُورًا ’ اقْرَأْ كِتَابَكَ كَفَى بِنَفْسِكَ الْيَوْمَ عَلَيْكَ حَسِيبًا ’ مَنِ اهْتَدَى فَإِنَّمَا يَهْتَدِي لِنَفْسِهِ وَمَنْ ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَا وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِينَ حَتَّى نَبْعَثَ رَسُولًا [الإسراء : 13-15]

''हमने प्रत्येक मनुष्य का शकुन-अपशकुन उसकी अपनी गरदन से बाँध दिया है और क़ियामत के दिन हम उसके लिए एक किताब निकालेंगे, जिसको वह खुला हुआ पाएगा। ''पढ़ ले अपनी किताब (कर्मपत्र)! आज तू स्वयं ही अपना हिसाब लेने के लिए काफ़ी है।'' जो कोई सीधा मार्ग अपनाए तो उसने अपने ही लिए सीधा मार्ग अपनाया और जो पथभ्रष्ट हुआ, तो उसके भटकने का भार उसी के ऊपर है। और कोई भी बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। और हम लोगों को यातना नहीं देते जब तक कोई रसूल न भेज दें।'' (सूरतुल इसरा : 13-15)

तथा अल्लाह ने फरमाया :

وَسِيقَ الَّذِينَ كَفَرُوا إِلَى جَهَنَّمَ زُمَرًا حَتَّى إِذَا جَاءُوهَا فُتِحَتْ أَبْوَابُهَا وَقَالَ لَهُمْ خَزَنَتُهَا أَلَمْ يَأْتِكُمْ رُسُلٌ مِنْكُمْ يَتْلُونَ عَلَيْكُمْ آيَاتِ رَبِّكُمْ وَيُنْذِرُونَكُمْ لِقَاءَ يَوْمِكُمْ هَذَا قَالُوا بَلَى وَلَكِنْ حَقَّتْ كَلِمَةُ الْعَذَابِ عَلَى الْكَافِرِينَ [الزمر :71]

''जिन लोगों ने इनकार कियाए वे गिरोह के गिरोह जहन्नम की ओर ले जाए जाएँगे, यहाँ तक कि जब वे वहाँ पहुँचेगे तो उसके द्वार खोल दिए जाएँगे और उसके पहरेदार उनसे कहेंगे, ''क्या तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल नहीं आए थे जो तुम्हें तुम्हारे रब की आयतें सुनाते रहे हों और तुम्हें इस दिन की मुलाक़ात से सचेत करते रहे हों?'' वे कहेंगे, ''क्यों नहीं (वे तो आए थे)।'' किन्तु इनकार करनेवालों पर यातना की बात सत्यापित होकर रही।'' (सूरतुज़ ज़ुमर : 71)

तथा फरमाया :

.يَا مَعْشَرَ الْجِنِّ وَالْإِنْسِ أَلَمْ يَأْتِكُمْ رُسُلٌ مِنْكُمْ يَقُصُّونَ عَلَيْكُمْ آيَاتِي وَيُنْذِرُونَكُمْ لِقَاءَ يَوْمِكُمْ هَذَا قَالُوا شَهِدْنَا عَلَى أَنْفُسِنَا وَغَرَّتْهُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَشَهِدُوا عَلَى أَنْفُسِهِمْ أَنَّهُمْ كَانُوا كَافِرِينَ [الأنعام : 130]

''ऐ जिन्नों और मनुष्यों के गिरोह! क्या तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल नहीं आए थे, जो तुम्हें मेरी आयतें सुनाते और इस दिन के पेश आने से तुम्हें डराते थे?'' वे कहेंगे, ''क्यों नहीं! (रसूल तो आए थे) हम स्वयं अपने विरुद्ध गवाह है।'' उन्हें तो सांसारिक जीवन ने धोखे में रखा। मगर अब वे स्वयं अपने विरुद्ध गवाही देने लगे कि वे इनकार करनेवाले थे।'' (सूरतुल अनआम : 130)

तथा फरमाया :

وَمَا كَانَ رَبُّكَ مُهْلِكَ الْقُرَى حَتَّى يَبْعَثَ فِي أُمِّهَا رَسُولًا يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِنَا وَمَا كُنَّا مُهْلِكِي الْقُرَى إِلَّا وَأَهْلُهَا ظَالِمُونَ [القصص : 59]

''तेरा रब तो बस्तियों को विनष्ट करनेवाला नहीं जब तक कि उनकी केन्द्रीय बस्ती में कोई रसूल न भेज देए जो हमारी आयतें सुनाए। और हम बस्तियों को विनष्ट करनेवाले नहीं सिवाय इस स्थिति के कि वहाँ के रहनेवाले ज़ालिम हों।'' (सूरतुल क़सस : 59)

और जब मामला ऐसे ही है : तो यह बात सर्वज्ञात है कि क़ुरआन के द्वारा उसी पर हुज्जत क़ायम होती है जिसे वह पहुँचा हो, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है :

لِأُنْذِرَكُمْ بِهِ وَمَنْ بَلَغَ [الأنعام : 19]

''ताकि मैं इसके द्वारा तुम्हें सचेत कर दूँ। और जिस किसी को यह पहुँचे।'' (सूरतुल अनआम : 19).

अतः जिसे क़ुरआन का कुछ हिस्सा पहुँचा उस पर उतनी हुज्जत क़ायम हो गई जितना हिस्सा उसे पहुँचा है। जो हिस्सा उसे नहीं पहुँचा है उसकी हुज्जत उस पर क़ायम नहीं हुई।

यदि कुछ आयतों का अर्थ संदिग्ध हो जाए,और लोग आयत की व्याख्या के बारे में मतभेद करें : तो जिस बारे में उन्हों ने मतभेद किया है उसे अल्लाह और उसके रसूल की ओर लौटाना अनिवार्य है।

जब लोग रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मुराद (आशय) और उद्देश्य को समझने में भरपूर प्रयास करें : तो सही हुक्म तक पहुँचने वाले के लिए दोहरा अज्र व सवाब है,और गलती करने वाले (यानी सही हुक्म से चूक जाने वाले) के लिए एक अज्र व सवाब है। इसलिए यही बात हमसे पहले के अहले किताब के बारे में कहने में कोई रूकावट नहीं है : चुनांचे हमसे पहले लोगों में से जिसे किताब के सभी नुसूस (मूल पाठ) नहीं पहुँचे : तो उसे जो चीज़ पहुँची है केवल उतनी ही चीज़ों के बारे में उस पर हुज्जत क़ायम होगी, और उसमें जिसका उर्थ उस पर गुप्त रह गया, फिर उसने उसकी जानकारी करने में भरपूर प्रयास किया : तो जो व्यक्ति सही हुक्म तक पहुँच गया उसके लिए दोहरा अज्र व सवाब है,और जो गलती कर गया (चूक गया) तो उसके लिए एक अज्र है, और उसकी गलती माफ है।

लेकिन जिसने जानबूझकर किताब के शब्द या अर्थ में परिवर्तन किया, और पैगंबर के लाए हुए संदेश को जान-पहचान लिया, फिर भी उससे हठधर्मी की : तो ऐसा आदमी दण्ड और यातना का पात्र है। इसी तरह वह आदमी भी है जिसने अपनी इच्छा का पालन करते हुए,दुनिया में लीन होकर, सत्य को ढूंढने और उसका अनुसरण करने में कोताही से काम लिया।

इस आधार पर :

यदि कुछ अहले किताब ने अपने धार्मिक पुस्तक में कुछ परिवर्तन किया,और उनमें कुछ दूसरे लोग हैं जो इस चीज़ को नहीं जानते, अतः वे जो कुछ पैगंबर लेकर आए हैं उसकी पैरवी करने में भरपूर प्रयास करने वाले हैं : तो इन लोगों को वईद (सज़ा की धमकी) के पात्र लोगों में से क़रार देना ज़रूरी नहीं है।

जब अहले किताब में ऐसे व्यक्ति का होना जायज़ (संभावित) है जो मसीह की लाई हुई सभी शिक्षाओं को नही जानता है, बल्कि उसके ऊपर उनकी लाई हुई कुछ शिक्षाया उसके कुछ अर्थ गुप्त रह गए, फिर उसने भरपूर प्रयास किया : तो जो चीज़ उस तक नहीं पहुँची है उस पर उसे दंडित नहीं किया जायेगा। और वे यहूद जो तुब्बअ के साथ थे, तथा मदीना वालों में से वे लोग जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमपर ईमान लाने की प्रतीक्षा कर रहे थे,जैसे इब्ने तैयिहान आदि,उनके समाचार को इसी पर अनुमानित किया जा सकता है ;और यह कि वे मसीह अलैहिस्सलाम को अपने अलावा अन्य यहूद की तरह झुठलाने वाले नहीं थे।

तथा लेागों ने इस बारे में मतभेद किया है कि : क्या भरपूर प्रयास और कठिन परिश्रम करने के बावजूद यह संभव है कि तर्क स्थापित करनेवाले प्रतिदर्शी के लिए पैगंबर की सच्चाई स्पष्ट न हो,या कि ऐसा संभव नहीं है?

और यदि उसके लिए ऐसा स्पष्ट न हो सका तो क्या वह परलोक में सज़ा का पात्र है या नहीं?

तथा कुछ लोगों ने उनमें से मुक़ल्लिद (अनुकर्ता) के बार में भी मतभेद किया है।

यहाँ पर बात दो स्थानों में है :

पहला स्थान : सत्य के विरोधी की गलती और उसकी पथ भ्रष्टता के वर्णन में ; और यह बौद्धिक और धार्मिक कई तरीक़ों (विधियों) से जाना जाता है,तथा सत्य के विरोधी बहुत से अह्ले क़िबला और गैर अह्ले क़िबला के बहुत से कथनों में गलती (त्रुटि) को विविध प्रकार के प्रमाणों से जाना जा सकता है।

दूसरा स्थान : उनके कुफ्र (नास्तिकता) और आखिरत में वईद (सज़ा के वादे) का पात्र होने के बारे में बात।

तो इसके बारे में सुप्रसिद्ध इमामों ; मालिक,शाफेई और अहमद़ के अनुयायिायों के तीन कथन हैं : एक कथन यह है कि : जो ईमान नहीं लाया है उसे नरक की आग में यातना दिया जायेगा, अगरचे उसकी ओर कोई सन्देष्टा न भेजा गया हो।क्योंकि बुद्धि के द्वारा उस पर हुज्जत क़ायम हो चुकी है। यही अबू हनीफा और उनके अलावा के अनुयायियों में से अह्ले कलाम व फिक़्ह में से बौद्धिक हुक्म के मानने वालों में से बहुत से लोगों का कथन है,और इसी को अबुल खत्ताब ने चयन किया है। तथा एक दूसरा कथन यह है कि : उसके ऊपर बुद्धि के द्वारा हुज्जत ज़रूरी नहीं है ;बल्कि उसके लिए उस व्यक्ति को यातना देना जायज़ है जिसके ऊपर हुज्जत क़ायम (स्थापित) नहीं हुई है, न बुद्धि के द्वारा न शरीअत के द्वारा। यह उन लोगों का कथन है जिन्हों ने काफिरों के बच्चों और उनके पागलों को यातना देने को वैद्ध ठहराया है। यह बहुत से अहले कलाम, जैसे जह्म, अबुल हसन अल-अशअरी और उनके अनुयायियों, क़ाज़ी अबू याला और इब्ने अक़ील इत्यादि का कथन है।

तीसरा कथन : और यही सलफ और इमामों का मत है कि : केवल उसी को सज़ा दी जायेगी जिसे अल्लाह का संदेश पहुँच चुका है,और केवल उसी को सज़ा दी जायेगी जिसने सन्देष्टाओं का विरोध किया है ; जैसा कि किताब व सुन्नत के प्रमाण इस बात को दर्शाते हैं ; अल्लाह तआला ने इबलीस से कहा :

لَأَمْلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنْكَ وَمِمَّنْ تَبِعَكَ مِنْهُمْ أَجْمَعِينَ [ص : 85]

''मैं जहन्नम को तुझसे और उन सबसे भर दूँगा, जिन्होंने उनमें से तेरा अनुसरण किया होगा।'' (सूरत साद : 85)

और जब ऐसी बात है ; तो हम जिस चीज़ के अंदर अह्ले किताब के पहले और बाद के लोगों से तर्क-वितर्क करते हैं : तो कभी पहले स्थान में बात करते हैं, और वह उनके सत्य का विरोद्ध करने का, और उनकी अनभिज्ञता व अज्ञानता और उनकी पथ भ्रष्टता का उल्लेख और वर्णन है, तो यह सभी शरई और बौद्धिक प्रमाणों से सचेत करना है।

और कभी-कभी हम उनकी उस नास्तिकता का वर्णन करते हैं जिसकी वजह से वे लोक और परलोक में यातना और सज़ा के पात्र बनते हैं, तो इसका मामला अल्लाह और उसके रसूल की ओर है, इसके बारे में केवल वही बात कही जायेगी जिसकी सन्देष्टाओं ने सूचना दी है।

जिस तरह कि हम ईमान और जन्नत की शहादत केवल उसी के लिए देते हैं जिसके लिए पैगंबरों ने शहादत दी है।

जिस व्यक्ति पर दुनिया में पैगंबरों के संदेश के द्वारा हुज्जत क़ायम नहीं हुई है,जैसे बच्चे, पागल लोग, और दो पैगंबरों के बीच की अवधि वाले लोग : तो इनके बारे में कई कथन हैं : जिनमें सबसे स्पष्ट वह है जिसके बारे में आसार (हदीस) वर्णित हैं कि : उन्हें क़ियामत के दिन परीक्षित किया जायेगा, चुनांचे अल्लाह उनकी ओर किसी को भेजे गा जो उन्हें अपनी आज्ञापालन का आदेश देगा। यदि उन्हों ने उसकी आज्ञा का पालन किया, तो वे पुण्य के पात्र होंगे और यदि उन्हों ने उसकी अवज्ञा की, तो वे अज़ाब के पात्र बनेंगे।''

''अल-जवाबुस्सहीह लिमन बद्दला दीनल मसीह'' (2/291 - 298) से संक्षेप के साथ समाप्त हुआ।

तथा अधिक लाभ के लिए, प्रश्न संख्या : (194157) का उत्तर देखें।

और अल्लह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर