सोमवार 22 जुमादा-2 1446 - 23 दिसंबर 2024
हिन्दी

‘‘लब्बैका अल्लाहुम्मा लब्बैक’’ का अर्थ और उसका अभिप्राय

21617

प्रकाशन की तिथि : 02-01-2025

दृश्य : 74483

प्रश्न

प्रश्न : ‘‘लब्बैका अल्लाहुम्मा लब्बैक .. लब्बैका ला शरीका लका लब्बैक ..  इन्नल-हम्दा वन्ने-मता लका वल-मुल्क, ला शरीका लक’’ यही वह तल्बियह है जिसे हज्ज व उम्रा करने वाले पुकारते हैं। तो इसका अर्थ क्या है तथा इसका क्या लाभ है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हाजी के हज्ज में प्रवेश करने के प्रथम पल से ही हज्ज तौहीद (एकेश्वरवाद) का प्रतीक है। जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के हज्ज का तरीक़ा वर्णन करते हुए कहते हैं : ‘‘ फिर आपने यह कहते हुए तौहीद के साथ अपनी आवाज़ को बुलन्द किया :

‘‘लब्बैका अल्लाहुम्मा लब्बैक .. लब्बैका ला शरीका लका लब्बैक .. इन्नल-हम्दा वन्ने-मता लका वल-मुल्क, ला शरीका लक’’ (अर्थात : मैं हाज़िर (उपस्थित) हूँ, ऐ अल्लाह मैं हाज़िर हूँ .. मैं हाज़िर हूँ, तेरा कोई शरीक (साझी) नहीं, मैं हाज़िर हूँ .. निःसंदेह हर तरह की प्रशंसा, सभी नेमतें, और सभी संप्रभुता तेरी ही है। तेरा कोई शरीक नहीं।) इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

अनस रज़ियल्लाहु अन्हु ने रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तल्बियह का वर्णन करते हुए कहा कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :“ मैं उम्रा के लिए हाज़िर हूँ, जिसमें न कोई दिखावा है, न कोई ख्याति।’’

इसमें अल्लाह की तौहीद (एकेश्वरवाद) और उसके प्रति निःस्वार्थता (ईमानदारी, निष्ठा) पर आत्मा का प्रशिक्षण किया गया है।

चुनाँचे हाजी अपने हज्ज को तौहीद से शुरू करता है, और लगातार तौहीद के साथ तल्बियह पुकारता रहता है और एक कार्य से दूसरे कार्य की ओर तौहीद ही के साथ हस्तान्तरित होता है।

तल्बियह के अनेक अर्थ हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :

(1) ‘‘लब्बैका अल्लाहुम्मा लब्बैक’’ (मैं हाज़िर हूँ, ऐ अल्लाह मैं हाज़िर हूँ) एक उत्तर के बाद दूसरा उत्तर देने के अर्थ में है, जिसे यह दर्शाने के लिए दोहराया गया है कि यह उत्तर स्थायी और निरंतर है।

(2) ‘‘लब्बैका अल्लाहुम्मा लब्बैक’’ (मैं हाज़िर हूँ, ऐ अल्लाह मैं हाज़िर हूँ) अर्थातः मैं निरंतर तेरा अज्ञाकारी हूँ।

(3) यह ‘‘लब्बा बिल-मकान’’ (لَبّ بالمكان ) से लिया गया है। यह उस समय बोला जाता है जब वह उस स्थान पर ठहर जाए और उससे न हटे। इसका अर्थ यह है कि मैं तेरी अज्ञाकारिता पर स्थापित हूँ, उसपर जमा हुआ हूँ। इस तरह यह (अल्लाह की) निरंतर उपासना की प्रतिबद्धता को शामिल है।

(4) तल्बियह का एक अर्थ : निरंतर प्यार है जो अरभी भाषा के वाक्यांश : (امرأة لَبًة) ‘‘इमरातुन लब्बतुन’’ (प्यार करनेवाली महिला) से है, जो उस समय बोला जाता है जब औरत अपने लड़के से प्यार करनेवाली हो। और लब्बैक उसी के लिए कहा जाता है जिससे आप प्यार और उसका सम्मान करते हैं।

(5) इसमें निःस्वार्थता (निष्कपटता) का अर्थ भी शामिल है, जो (لُبِّ الشيء) ‘‘लुब्बुश्शै’’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है विशुद्ध चीज़। इसी से (لُب الرجل) ‘‘लुब्बुर्रजुल’’ है, जिसका अर्थ मनुष्य का दिल और दिमाग (बुद्धि) है।

(6) यह क़रीब होने के अर्थ पर भी आधारित है, जो (الإلباب) ‘‘अल-इल्बाब’’ से गृहीत है, जिसका अर्थ क़रीब होना है। अर्थात मैं तुझसे अधिक से अधिक या बार-बार क़रीब होता हूँ।

(7) यह इब्राहीम अलैहिस्सलाम के धर्म तौहीद (ऐकेश्वरवाद) का प्रतीक है, जो वास्तव में हज्ज का सार और उसका उद्देश्य है। बल्कि सभी पूजा कृत्यों का सार और उसका लक्ष्य व उद्देष्य यही है। इसीलिए तल्बियह इस इबादत (हज्ज) की कुंजी है जिसके द्वरा उसमें प्रवेश किया जाता है।

तल्बियह निम्न बातों पर आधारित है :

अल्लाह की प्रशंसा व गुणगान, जो कि सबसे प्रिय चीज़ों में से है जिसके द्वारा मनुष्य अल्लाह की निकटता हासिल करता है।

अल्लाह के लिए सभी नेमतों और अनुग्रहों को स्वीकारना, इसीलिए उसमें अलिफ-लाम लगा है जो संपूर्णता का लाभ देता है, अर्थात संपूर्ण नेमतें तेरी ही हैं, और तू ही उनका प्रदाता और दानी है।

इस बात का स्वीकरण कि सभी संप्रभुता और राज्य केवल अकेले अल्लाह के लिए है। अतः वास्तविक रूप से उसके अतिरिक्त किसी अन्य के लिए कोई सत्ता और राज्य नहीं है। (देख़िए : इब्ने क़ैयिम की मुख़्तसर तहज़ीबुस्सुनन 2/335-339).

हाजी तल्बियह पुकारते हुए सारे प्राणियों के साथ परस्पर संपर्क और जुड़ाव महसूस करता है, इस तरह कि वे सभी अल्लाह की उपासना व आराधना और उसकी तौहीद (एकेश्वरवाद) में उसके साथ मिलकर जवाब देते हैं। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं :

‘‘जो भी मुसलमान तल्बियह कहता है, तो उसके दाएँ औ बाएँ जो भी पत्थर या पेड़ या ढेला होता है वह तल्बियह कहता है, यहाँ तक की पृथ्वी यहाँ और वहाँ से कट (सिमट) जाती है।’’ अर्थात उसके दाएँ और बाएँ से। इसे तिरमिज़ी (हदीस संख्याः 828), इब्ने ख़ुज़ैमा और बैहक़ी ने सही सनद के साथ रिवायत किया है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर