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क्या यह कहना जायज़ है कि : “धर्मों के अस्तित्व में आने से पहले, अल्लाह ने मनुष्य को बनाया”ॽ

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प्रकाशन की तिथि : 17-09-2019

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प्रश्न

किसी व्यक्ति ने यह वाक्य लिखा है: “धर्मों के अस्तित्व में आने से पहले, अल्लाह ने मनुष्य को पैदा किया” और इसका खण्डन करने के लिए उसने सबूतों के साथ जवाब देने के लिए कहा है। तो इस कथन की क्या प्रामाणिकता हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

यह कथन अमान्य है, और इसके अमान्य व व्यर्थ होने का वर्णन इस प्रकार हैः

- अल्लाह तआला ने प्रत्येक मनुष्य को इस्लाम की प्रकृति पर पैदा किया है, और वह अपने सृष्टा पर ईमान लाना और उसके प्रति समर्पण करना है, अल्लाह तआला ने फरमाया :

 فِطْرَةَ اللَّهِ الَّتِي فَطَرَ النَّاسَ عَلَيْهَا لاَ تَبْدِيلَ لِخَلْقِ اللَّهِ ذَلِكَ الدِّينُ القَيِّمُ

الروم:30 

''अल्लाह की प्रकृति, जिस पर उसने लोगों को पैदा किया, अल्लाह के बनाए हुए को बदलना नहीं, यही सीधा धर्म है।'' (सूरतुर रूमः 30)

तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान ने हदीसे-क़ुदसी में फरमाया : ''मैंने अपने सभी बंदों को अल्लाह के अलावा सभी चीज़ों से विमुख होकर एक अल्लाह की ओर एकागर होने वाला बनाया। लेकिन शैतानों ने उनके पास आकर उन्हें उनके धर्म से फेर दिया (अर्थात उन्हें उनके धर्म से निकाल दिया) और उनके ऊपर उस चीज़ को हराम ठहरा दिया जो मैंने उनके लिए हलाल किया था तथा उन्हें आदेश दिया कि वे मेरे साथ उस चीज़ को साझी ठहराएं जिसका मैंने कोई प्रमाण नहीं उतारा।'' इसे मुस्लिम (2865) रिवायत किया है।

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "प्रत्येक पैदा होनेवाला – शिशु - (इस्लाम की) फित्रत (प्रकृति) पर जन्म लेता है।'' इसे बुखारी (हदीस संख्या :1296) और मुस्लिम (हदीस संख्या :4803) ने रिवयात किया है। और मुस्लिम की एक रिवायत (हदीस संख्या : 4805) में वर्णित हैः "जो भी पैदा होने वाला बच्चा है वह इसी मिल्लत (इस्लाम धर्म) पर पैदा होता है।"

अतः प्रत्येक मनुष्य जिसे अल्लाह ने पैदा किया है, उसे मुसलमान बनाया है, यहाँ तक कि उसके माता-पिता उसे प्रभावित कर देते हैं, या वह आदमी बड़ा होकर खुद अपना धर्म चुन लेता है।

- इस्लाम, जो कि अल्लाह का वास्तिवक धर्म है, मनुष्य की रचना से पहले ही अस्तित्व में है। क्योंकि फ़रिश्ते मनुष्य से पहले पैदा किए गए हैं, और वे मुसलमान हैं। क्योंकि इस्लाम की वास्तविकता : प्रेम और सम्मान के साथ अल्लाह के प्रति समर्पण और उसका आज्ञापालन है। अल्लाह तआला का फरमान है :

 وَإِذْ قَالَ رَبُّكَ لِلْمَلَائِكَةِ إِنِّي جَاعِلٌ فِي الْأَرْضِ خَلِيفَةً قَالُوا أَتَجْعَلُ فِيهَا مَنْ يُفْسِدُ فِيهَا وَيَسْفِكُ الدِّمَاءَ وَنَحْنُ نُسَبِّحُ بِحَمْدِكَ وَنُقَدِّسُ لَكَ قَالَ إِنِّي أَعْلَمُ مَا لَا تَعْلَمُونَ

البقرة :30 

''और जब तुम्हारे पलनहार ने फरिश्तों से कहा कि मैं पृथ्वी में खलीफ़ा (उत्तराधिकारी) बनाने वाला हूँ। तो उन्होंने कहाः क्या तू उस में ऐसे को (ख़लीफ़ा) बनाएगा जो उसमें उपद्रव मचाए और रक्तपात करे। और हम तेरी स्तुति के साथ तस्बीह करते हैं और तेरी पवित्रता बयान करते हैं। अल्लाह ने कहाः जो मैं जानता हूँ तुम नहीं जानते।'' (सूरतुल बक़राः 30)

तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :

 شَهِدَ اللَّهُ أَنَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ وَالْمَلَائِكَةُ وَأُولُو الْعِلْمِ قَائِمًا بِالْقِسْطِ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ

آل عمران: 18 

“अल्लाह तआला और फरिश्ते और ज्ञानी लोग इस बात की गवाही देते हैं कि अल्लाह तआला के अतिरिक्त कोई उपास्य (मा´बूद) नहीं और वह न्याय को स्थापित करने वाला है, उस प्रभुत्वशाली और सर्वबुद्धिमान के अतिरिक्त कोई उपासना के योग्य नहीं।" (सूरत आल-इम्रान: 18)

तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :

  لَنْ يَسْتَنْكِفَ الْمَسِيحُ أَنْ يَكُونَ عَبْدًا لِلَّهِ وَلَا الْمَلَائِكَةُ الْمُقَرَّبُونَ

النساء:172 

''मसीह अल्लाह का बन्दा होने का कदापि इनकार नहीं करेंगे और न ही निकटवर्ती फ़रिश्ते।'' (सूरतुन-निसाः 172).

- आदम अलैहिस्सलाम मानव जाति के पिता और अल्लाह द्वारा बनाए गए प्रथम मनुष्य हैं। अल्लाह ने उन्हें एक एकेश्वरवादी मुसलमान बनाया, तथा उनसे बात की और उन्हें पैगंबर बनाया। चुनाँचे अल्लाह ने उन्हें बिना धर्म के इंसान नहीं बनाया, फिर उन्होंने धर्म सीखा। बल्कि आदम अलैहिस्लाम की संतान से लेकर नूह अलैहिस्सलाम के युग तक पूरी मानवता निरंतर अल्लाह की तौहीद (एकेश्वरवाद), उसकी आज्ञाकारिता, उसके प्रेम और उसके आदेश के सम्मान पर स्थापित रही। उन्होंने इस विषय में आपस में विवाद और मतभेद नहीं किया, यहाँ तक कि नूह अलैहिस्सलाम के युग में वह मतभेद और विवाद प्रकट हुआ तथा एकेश्वरवाद से विचलन की शुरुआत हुई। अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं : "नूह और आदम अलैहिमस्सलाम के बीच दस शताब्दियाँ (या दस पीढ़ियाँ) थीं, वे सभी के सभी सत्य शरीअत पर स्थापित थे। (एक रिवायत के शब्द में है कि : वे सभी इस्लाम पर थे) फिर उन्होंने मतभेद किया, (तो अल्लाह ने पैगंबरों को शुभसूचना देने वाला और चेतावनी देने वाला बनाकर भेजा)।''

देखिएः ''तफ़सीर अत-तबरी'' (3/621), ''तफ़सीर इब्ने कसीर'' (3/431)।

- यह बात इस्लाम को छोड़कर सभी धर्मों के लिए सही है। क्योंकि वे सभी मनुष्य द्वारा आविष्कार किए गए नए धर्म हैं। इस प्रकार वे मानव निर्मित हैं, उसी ने उन्हें गठित किया है और उनके अनुष्ठानों और त्योहारों .. आदि को व्यवस्थित और है।

जहाँ तक इस्लाम और एकेश्वरवाद (तौहीद) का संबंध है, तो अल्लाह की तौहीद (एकेश्वरवाद) हर चीज़ से पहले है, (ऐ अल्लाह! तू प्रथम है, तुझसे पहले कोई भी चीज़ नहीं है, और तू अंतिम है, तेरे बाद कोई चीज़ नहीं)। इस तरह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह तआला की प्रशंसा किया करते थे, जैसा कि बुखारी (हदीस संख्या : 4888) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2713) ने रिवायत किया है।

- पैगंबरों का संदेश लोगों का मार्गदर्शन करने और उन्हें उनके पालनहार के आदेश की शिक्षा देने के लिए आया है। यदि ये आकाशीय संदेश न होते और बहुत से लोग उनका अनुपालन न करते, तो मानव जाति पर प्रकोप उतरता, और इस जीवन में उनका कोई अस्तित्व बाक़ी नहीं रहता।  और पृथ्वी बर्बाद हो जाती, तथा आकाशों और पृथ्वी और उनके बीच की समस्त चीज़ें भ्रष्ट हो जातीं। अल्लाह तआला ने फरमायाः

 وَلَوِ اتَّبَعَ الْحَقُّ أَهْوَاءَهُمْ لَفَسَدَتِ السَّمَاوَاتُ وَالْأَرْضُ وَمَنْ فِيهِنَّ

المؤمنون: 71  

''यदि सत्य उनकी इच्छाओं के पीछे चलता, तो समस्त आकाश और धरती और जो भी उनमें है, सबमें बिगाड़ पैदा हो जाता।'' (सूरतुल मूमिनूनः 71).

यदि ईमान और धर्म न होता, तो जानवरों, निर्जीवों और पेड़-पौधों का अस्तित्व मानव के अस्तित्व से अच्छा होता। चुनाँचे इस्लाम धर्म के बिना मनुष्य इस धर्ती के ऊपर सबसे दुष्ट प्राणी है।

- फिर अंत में .. इस वाक्यांश को कहने वाला कि “मनुष्य का अस्तित्व धर्म से पहले है” क्या कहना चाहता है? हमें इससे कोई मतलब नहीं है कि पहले किसका अस्तित्व है! हमारे लिए जो महत्वपूर्ण है यह है कि : क्या अल्लाह ने (इस्लाम) धर्म का आदेश दिया है या नहीं?

क्या अल्लाह ने नबियों के आज्ञापालन का आदेश दिया है या नहीं?

क्या इस्लाम के अलावा अब धरती पर कोई ऐसा धर्म है जो सही (सत्य) है और उसके सिवा सब कुछ असत्य है या नहीं?

क्या तौहीद (एकेश्वरवाद) और अल्लाह की आज्ञाकारिता से तथा इस्लाम से उपेक्षा करने वाला आग में प्रवेश करेगा और उसमें सदैव रहेगा या नहीं?

क्या अल्लाह सर्वशक्तिमान ने हमें अपने पूरे जीवन को उसके कानून (शरीयत) के अनुसार जीने का आदेश दिया है या नहीं?

यही वह चीज़ है जो हमारी चिंता का विषय है, चाहे मनुष्य धर्म से पहले अस्तित्व में आया हो या उसके बाद पाया गया हो।

हम सर्वशक्तिमान अल्लाह से प्रश्न करते हैं कि वह हमें सत्य को सत्य के रूप में दिखाए और हमें उसका अनुपालन करने की तौफीक़ प्रदान करे, तथा हमें असत्य को असत्य के रूप में दिखाए और हमें उससे दूर रखे।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर