हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
यौन कल्पनाएँ एक प्रकार की दिल में आने वाली बातें और मन का विचार है, जो किसी व्यक्ति के दिमाग में पैदा होता है। मन में आने वाला विचार यदि स्थिर नहीं रहता है और आदमी उसपर निरंतर क़ायम नहीं रहता है : तो विद्वानों की सर्वसहमति के अनुसार वह क्षम्य है।
अतः आकस्मिक कल्पनाओं को क्षमा कर दिया जाता है, परंतु बंदे को उन्हें रोकना चाहिए और उनके के प्रवाह में बहना नहीं चाहिए।
लेकिन एक मुसलमान के लिए (जानबूझकर) इन विचारों को लाना और उनके बारे में ध्यान (गहराई) से सोचना जायज़ नहीं है। तथा उसके लिए यह भी जायज़ नहीं है कि जब भी उसके दिल में उनका विचार आए, तो वह उनके पेछे अपने आप को बेलगाम छोड़ दे। क्योंकि ये उसे हराम (निषिद्ध) की ओर खींच ले जाएँगे।
प्रश्न संख्या : (84066) का उत्तर देखें।
दूसरा :
ईर्ष्या एक निंदनीय आचरण है, जिससे एक मुसलमान को पवित्र होना चाहिए। शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा : “ईर्ष्या : एक कथन के अनुसार इसका अर्थ : किसी दूसरे से अल्लाह की नेमत के छिन जाने की कामना करना है। तथा यह भी कहा गया है कि : अल्लाह ने किसी दूसरे को जो नेमत प्रदान की है उसे नापसंद करने को ईर्ष्या कहते हैं। विद्वानों के निकट पहला अर्थ ही प्रसिद्ध है, और दूसरे अर्थ को शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह ने स्पष्ट किया है। इसलिए, अल्लाह ने लोगों को जो नेमत प्रदान की है, उसे मात्र नापसंद करना ही ईर्ष्या माना जाएगा। और ईर्ष्या हराम (निषिद्ध) है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उससे मना किया है। तथा वह यहूदियों के स्वभावों में से है, जो लोगों से अल्लाह के द्वारा उन्हें प्रदान किए गए अनुग्रह पर ईर्ष्या करते हैं। और इसके नुकसान बहुत अधिक हैं।”
इब्ने उसैमीन के ''फतावा नूरुन अलद-दर्ब'' (शामिला लाइब्रेरी की नंबरिग के अनुसार 24/2) से उद्धरण समाप्त हुआ।
तीसरा :
एकांत (तन्हाई) में किए जाने वाले पापों के बारे में वह हदीस आई है, जिसे इब्ने माजह (हदीस संख्या : 4245) ने सौबान रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आपने फरमाया : “मैं अपनी उम्मत में से ऐसे लोगों को जानता हूँ, जो क़ियामत के दिन “तिहामा” के पहाड़ों के बराबर नेकियाँ लेकर आएँगे, तो अल्लाह उन्हें धूल के बिखरे हुए कणों की तरह बना देगा।” सौबान ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! हमें उनके बारे में बताएँ, उन्हें हमारे लिए खोलकर स्पष्ट कर दें, ताकि हम अपनी अज्ञानता के कारण उनमें से न हो जाएँ। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जान लो कि वे तुम्हारे भाइयों में से हैं और तुम्हारी जाति में से हैं। वे (भी) रातों को उसी तरह इबादत करेंगे, जैसे तुम इबादत करते हो, लेकिन वे ऐसे लोग हैं कि जब वे एकांत में होंगे, तो अल्लाह के निषिद्ध किए हुए कामों को अंजाम देंगे।” अलबानी ने इसे “सहीह इब्ने माजह” में सहीह कहा है।
हाफ़िज़ इब्नुल-जौज़ी रहिमहुल्लाह ने कहा :
“ख़बरदार, पापों से सावधान रहें, विशेष रूप से एकांत के पापों से सावधान रहें! क्योंकि सर्वशक्तिमान अल्लाह के साथ द्वंद्वयुद्ध करना बंदे को उसकी आँखों से गिरा देता है। तथा अपने और उसके बीच के मामले को गुप्त में ठीक रखो, जबकि उसने तुम्हारी प्रत्यक्ष स्थितियों को ठीक कर दिया है।”
“सैदुल-ख़ातिर” (पृष्ठ 207) से उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा प्रश्न संख्या : (134211) का उत्तर देखें।
जैसा कि प्रत्यक्ष होता है इस हदीस से अभिप्रेत : हर वह व्यक्ति नहीं है, जिसने गुप्त रूप से कोई पाप किया है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति छोटे पापों से सुरक्षित नहीं है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “हर मनुष्य ख़ताकार (पाप करने वाला) है और ख़ताकारों में सबसे अच्छे वे हैं, जो तौबा करने वाले हैं।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2499) ने रिवायत किया है और अलबानी ने ‘सहीह तिर्मिज़ी’ में इसे ‘हसन’ काह है।
प्रत्यक्ष यही होता है कि इस हदीस से उद्दिष्ट, मुनाफ़िक़ (पाखंडी) लोग या दिखावे के लिए कार्य करने वाले हैं, जो लोगों के सामने धर्मनिष्ठा और तक़्वा (ईशभय) का प्रदर्शन करते हैं। लेकिन जब वे लोगों की नज़रों से दूर होते हैं, तो अपने सत्य रूप में दिखाई देते हैं। चुनाँचे उस समय वे अल्लाह सर्वशक्तिमान के निषेध का सम्मान नहीं करते हैं।
इब्ने ह़जर अल-हैतमी रहिमहुल्लाह ने कहा :
“तीन सौ छप्पनवाँ (356) प्रमुख पाप : सार्वजनिक रूप से सदाचारी लोगों की वेशभूषा प्रदर्शित करना और एकांत में अल्लाह के निषेधों का उल्लंघन करना, भले ही वे छोटे पाप हों”। इब्ने माजह ने ऐसी सनद के साथ, जिसके वर्णनकर्ता भरोसेमंद हैं, सौबान रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आपने फरमाया : “मैं अपनी उम्मत में से ऐसे लोगों को जानता हूँ, जो क़ियामत के दिन “तिहामा” के पहाड़ों के बराबर नेकियाँ लेकर आएँगे, तो अल्लाह उन्हें धूल के बिखरे हुए कणों की तरह बना देगा ...” फिर उन्होंने शोध के अंत में कहा :
“चेतावनी : यह गिनती पहली हदीस का स्पष्ट अर्थ है और यह कोई दूर की बात नहीं है, अगरचे मैंने यह नहीं देखा है कि किसी ने इसका उल्लेख किया है; क्योंकि जिस व्यक्ति का आचरण अच्छे का प्रदर्शन करना और कुरूप को गुप्त रखना है, तो मुसलमानों के लिए उसका नुकसान और उसका बहकावा (प्रलोभन) बहुत बढ़ जाता है; इसलिए कि उसकी गर्दन से धर्मपरायणता और भय का पट्टा विघटित हो गया।” “अज़-ज़वाजिर अन् इक़्तिराफ़िल कबाइर” (356) से उद्धरण समाप्त हुआ।
इसके आधार पर, जो भी व्यक्ति लोगों के सामने यह प्रकट करता है कि वह उनसे प्यार करता है, लेकिन वास्तव में वह उनसे घृणा करता है और उनसे ईर्ष्या रखता है, तो वह हार्दिक एकांत के पापों में पड़ गया।
इसी के समान : जो व्यक्ति लोगों के सामने धर्मनिष्ठा प्रकट करता है, लेकिन (वास्तव में) वह ऐसा नहीं है, या वह शुद्धता और आत्मसंयम दिखाता है, फिर जब वह एकांत में होता है, तो वह भ्रष्ट विचारों और दुष्ट कल्पनाओं को लाता है : तो ऐसे व्यक्ति के बारे में इस बात का डर है कि उसपर इस हदीस में उल्लिखित कठोर चेतावनी लागू होगी और वह उसकी नेकियों का नष्ट होना है।
हम अल्लाह से क्षमा और सलामती का प्रश्न करते हैं।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है