सोमवार 24 जुमादा-1 1446 - 25 नवंबर 2024
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वह पूछ रही है कि वह अपनी वसीयत कैसे लिखे

प्रश्न

मैं एक विवाहित महिला हूँ, मैं केवल अपने पति के साथ रह रही हूँ और मेरी कोई संतान नहीं है। - और सभी परिस्थितियों में अल्लाह का शुक्र है - । मेरे माता-पिता मर चुके हैं, और मेरे भाई और बहन हैं जिनकी शादी हो चुकी है। मेरे दादा-दादी भी मर चुके हैं। मेरे चाचा एवं फूफी तथा मामा एवं मौसी हैं। मेरे पास कुछ सोना और चाँदी है, तथा मेरी व्यक्तिगत चीज़ें हैं; जैसे कपड़े और किताबें, जिसमें अल्लाह की पुस्तक भी शामिल है। और मेरे बैंक खाते में मेरा मासिक खर्च है। मैं अपनी वसीयत लिखना चाहती हूँ। लेकिन मेरी जैसी स्थिति में, मुझे नहीं पता कि कैसे और क्या उल्लेख करूँ, या मेरे वारिस कौन हैं। क्या मैं अपनी वसीयत को अपने पति (अल्लाह उनकी रक्षा करे) के लिए विशिष्ट कर सकती हूँॽ अर्थात यह कि मैं इसे उनके नाम से लिखूँ, और यह कि वही इसे खोलें और पढ़ें। क्योंकि मैं विरासत के अलावा उन्हें कुछ और चीजें लिखना चाहती हूँ, उदाहरण के लिए : कुछ ऐसी चीजें जो मैं उन्हें अभी तक नहीं बता सकी हूँ, जैसे कि अगर उन्हें मेरी मृत्यु के बाद कुछ पता चले या कुछ सुनें, तो मेरे बारे में अच्छा गुमान रखें। क्योंकि उन्हें मेरी खामोशी, मेरी कम बातचीत और मेरी अस्पष्टता के बारे में शिकायत रहती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कभी-कभी मैं उनसे उन चीजों को छिपाती हूँ जो मुझे लगता है कि वे हमें परिवार के अन्य सदस्यों के साथ समस्याएं पैदा करने या परेशानियों में पड़ने से हमें बचा लेंगी। और अल्लाह मेरे इरादे के बारे में सबसे बेहतर जानता है। मुझे आशा है कि मैं अपना सवाल पूछने में सफल रही हूँ और यह कि मुझे आपकी तरफ़ से संतोषजनक जवाब मिलेगा।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

वसीयत के दो प्रकार हैं :

अनिवार्य (वाजिब) वसीयत : यह उन अधिकारों को बयान करने की वसीयत है जो आपके ऊपर अनिवार्य हैं, जिनके मालिकों के पास अपने अधिकारों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है, जैसे कि ऋण या आपके पास रखी गई अमानतें। इस स्थिति में, वसीयत करना आपके दायित्व के निर्वहन के लिए अनिवार्य है।

मुस्तहब (वांछिक) वसीयत : यह एक दान मात्र (शुद्ध दान) है, जैसे किसी व्यक्ति का अपनी मृत्यु के बाद अपने धन में एक तिहाई या उससे कम की, अपने वारिस के अलावा किसी रिश्तेदार या अन्य के लिए वसीयत करना, इसी तरह धार्मिकता के कार्यों जैसे कि गरीबों और जरूरतमंदों को दान देने, या भलाई के कार्यों में दाने करने की वसीयत करना।” देखें : “फतावा अल-लज्नह अद्-दाईमह” (16/264)

एक व्यक्ति अपने परिवार को अपने जनाज़ा (अंतिम संस्कार) से संबंधित कुछ मामलों की वसीयत कर सकता है, जैसे कि उसे कौन स्नान कराएगा और कौन उसकी जनाज़ा की नमाज़ पढ़ाएगा, इत्यादि। इसी तरह वह उन्हें नौहा करने (रोने-पीटने) तथा अन्य निषेधों से बचने का निर्देश दे सकता है।

इसका प्रमाण यह हदीस है, जिसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 121) ने रिवायत किया है कि अम्र बिन अल-आस रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने उस समय, जबकि उनकी मृत्यु का समय निकट था, कहा : “जब मैं मर जाऊँ, तो मेरे साथ कोई विलाप करने वाली महिला औ आग न हो।”

तथा प्रश्न संख्या : (69827) और (10447) के उत्तर भी देखें।

इसी तरह, अगर कोई महिला अपने पति को यह वसीयत करे कि वह उसके बारे में अच्छा गुमान रखे, तथा उसके प्रति अपने कुछ (अनुचित) कार्यों के लिए माफी मांगे और उसे क्षमा करने के लिए कहे; तो इसकी और इसी तरह की अन्य चीज़ों की वसीयत करने के लिए कोई विशिष्ट प्रारूप (शब्द) नहीं है। बल्कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी स्थिति और अपने परिवार की स्थिति के अनुरूप वसीयत करेगा और इस बात का उल्लेख करेगा कि उसके दूसरों के पास और दूसरों के उसके पास क्या अधिकार (हुक़ूक़) हैं, तथा वह अपनी लिखित वसीयत जिसे भी चाहे सौंप सकता है, ताकि वह उसकी मृत्यु के बाद उसे खोले।

आपके लिए यह जायज़ नहीं है कि आप अपने पति के लिए अपनी संपत्ति में से किसी चीज़ की वसीयत करें, क्योंकि यदि आप उससे पहले मर जाती हैं, तो उसे आपकी संपत्ति में शरीयत के द्वारा निर्धारित उसकी विरासत मिलेगी। अल्लाह सर्वशक्तिमान ने पति के लिए उसकी पत्नी की संपत्ति में उसकी मृत्यु होने पर : उसकी विरासत का आधा हिस्सा निर्धारित किया है अगर उसकी कोई संतान नहीं है।

तथा अल्लाह महिमावान ने प्रत्येक अधिकार वाले व्यक्ति को उसका अधिकार आवंटित कर दिया है; इसलिए किसी वारिस के लिए कोई वसीयत नहीं की जा सकती है।

चूँकि आपके माता-पिता मर चुके हैं, इसलिए पति के हिस्से के बाद संपत्ति का शेष हिस्सा, आपके भाई-बहनों के बीच विभाजित किया जाना चाहिए, जिसमें प्रत्येक पुरुष को महिला के हिस्से का दोगुना हिस्सा मिलेगा।

तथा प्रश्न संख्या : (106236) का उत्तर देखें।

कोई भी व्यक्ति नहीं जानता कि उसकी मृत्यु कब आएगी। कितने स्वस्थ लोग ऐसे हैं, जो बिना किसी कारण (बीमारी) के मर गए, और कितने बीमार लोग ऐसे हैं, जो लंबे समय तक जीवित रहे।

आपको अपने पति के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए और उसके साथ अच्छी तरह से रहना चाहिए, तथा अत्यधिक चीजों को छुपाने और रहस्यमयी होने (अस्पष्टता) से बचना चाहिए; ताकि ऐसा न हो कि आपके और आपके पति के बीच का रिश्ता फीका पड़ जाए और आप दोनों के बीच की भागीदारी और सुखद बातचीत कमजोर हो जाए, और आप दोनों में से हरेक दूसरे से अलग रहने का आदी हो जाए।

जिस तरह पति को सब कुछ बताना असहमति और कलह का कारण बनता है, उसी तरह अत्यधिक अस्पष्टता (रहस्यमयी होने) और आप दोनों के बीच बातचीत की कमी के भी वही खतरे हैं जिनका हमने अभी उल्लेख किया है, बल्कि वे शक और संदेह का भी कारण बन सकते हैं।

इस तरह के मामले में बीच का रास्ता अपनाना : अच्छा और सराहनीय है।

आपको हमारी सलाह यही है कि इस क्षमा याचना और माफी माँगने को मरने के बाद तक स्थगित न करें।

बल्कि आपको इसे अभी करना चाहिए, तथा आप अपने पति के साथ अच्छा व्यवहार करें और उसे खुश करने के लिए पूरी कोशिश करें, क्योंकि – अगर अल्लाह ने चाहा – तो वह आपके स्वर्ग में प्रवेश करने का एक बड़ा कारण है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर