हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
ईदैन यानी ईदुल-फित्र और ईदुल-अज़्हा की नमाज़ फर्ज़-किफ़ाया है (अर्थात् उनकी अदायगी करना पूरे समुदाय का दायित्व है)। जबकि कुछ विद्वानों का कहना है किः वे दोनों नमाज़ें, जुमा की नमाज़ की तरह फर्ज़-ऐन हैं (अर्थात् उनकी अदायगी करना प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है)। अतः मुसलमान के लिए उन्हें छोड़ना उचित नहीं है।
और अल्लाह तआला ही तौफ़ीक़ प्रदान करनेवाला है।