सोमवार 22 जुमादा-2 1446 - 23 दिसंबर 2024
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यदि विक्रेता लोगों का एक समूह है और उन्होंने खरीदार द्वारा खरीद को रद्द करने के बाद बयाना की राशि ले ली हो, तो उसे आपस में कैसे विभाजित करेंगे?

प्रश्न

एक से अधिक व्यक्ति ज़मीन के एक टुकड़े के मालिक हैं और उन्होंने उसे बेच दिया। फिर बयाना दिए जाने के बाद खरीदारी को रद्द कर दिया गया और खरीदार खरीद से पीछे हट गया। तो भूमि के मालिकों के बीच बयाना की राशि को कैसे विभाजित किया जाना चाहिए?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

यदि क्रय-विक्रय पूरा हो गया और खरीदार ने इस आधार पर बयाना दे दिया कि वह खरीद के साथ आगे बढ़ेगा, अन्यथा बयाना की राशि विक्रेता की हो जाएगी, तो ऐसा करना वैध है। इसे बयाना की बिक्री कहा जाता है (यानी जिसमें सौदे को पक्का करने के लए क्रेता के द्वारा विक्रेता को एक अग्रिम राशि दी जाती है, जिसे बयाना कहा जाता है)।

“अल-मुब्दे” (4/58) में आया है : “बयाना की बिक्री यह है कि वह एक निर्धात मूल्य पर कोई चीज़ खरीदे और विक्रेता को एक दिरहम या अधिक राशि भुगतान करे और कहे : यदि मैं इसे खरीद लेता हूँ तो इस राशि को मूल्य में से समझा जाएगा, अन्यथा, यानी अगर मैं उस सामान को नहीं खरीदता हूँ तो वह दिरहम तुम्हारा (विक्रेता का) हो जाएगा। अहमद ने कहा : यह सही है, क्योंकि उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने ऐसा किया है।) नाफ़े बिन अब्दुल हारिस ने बयान किया कि ­: उन्होंने सफवान से उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के लिए जेल बनवाने के लिए एक घर खरीदा, इस आधार पर कि अगर उमर ने उसे मंजूरी दे दी, तो वह उसे खरीद लेंगे, अन्यथा उनके लिए इतना और इतना है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

 दूसरा :

 यदि क्रेता सौदे को रद्द कर देता है और विक्रेता बयाना की राशि ले लेता है और विक्रेता वास्तव में लोगों का एक समूह है, तो वे बयाना की राश को संपत्ति में अपने अनुपात (हिस्सों) के अनुसार बांट लेंगे। यदि उन सभी के शेयर बराबर (समान) हैं, तो वे उसे समान रूप से साझा कर लेंगे। यदि उनमें से किसी का, उदाहरण के तौर पर, संपत्ति का आधा स्वामित्व है, तो वह बयाना का आधा हिस्सा लेगा, और इसी तरह।

फुक़हा (धर्मशास्त्रियों) ने इस तरह के मामलों में यही निर्धारित किया है, जैसे कि अगर भूमि की कोई फसल (पैदावार) हो, तो उसे (मालिकों के बीच) उनके स्वामित्व के आधार पर विभाजित किया जाएगा, या यदि उनमें से कोई अपना संयुक्त हिस्सा बेचना चाहे, तो शेष लोगों को शुफ्आ (यानी उसे सबसे पहले खरीदने) का अधिकार उनके स्वामित्व के हिसाब से होगा, या वे अपनी संयुक्त भूमि को विभाजित करने के लिए किसी व्यक्ति को किराए पर रखते हैं, तो विभाजित करने वाले व्यक्ति की मज़दूरी उनसे उनके स्वामित्व के अनुसार ली जाएगी।

“मतालिबो ऊलिन-नुहा” (4/120) में आया है : “(यह) – अर्थात शुफ़्आ – (शुफआ के हक़दारों) साझेदारों (के बीच उनके स्वामित्व के अनुपात के अनुसार होगा, जैसे कि रद्द के मसाइल में है) क्योंकि शुफ़्आ का अधिकार एक ऐसा अधिकार है जो स्वामित्व के कारण अर्जित किया जाता है, इसलिए वह ज़मीन की फसल की तरह, प्रत्येक व्यक्ति को उसके स्वामित्व की मात्रा में प्राप्त होगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।

“शर्हुल-मुंतहा” (3/550) में आया है : “साझेदारों में से कोई व्यक्ति अकेले ही विभाजित करने वाले व्यक्ति को किराए पर नहीं रखेगा, क्योंकि उसकी मज़दूरी सभी साझेदारों (मालिकों) पर उनके स्वामित्व के अनुपात के अनुसार अनिवार्य है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

और अल्लाह ही सबसे अधिक जानता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर