शनिवार 8 जुमादा-1 1446 - 9 नवंबर 2024
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यह कैसे हो सकता है कि बंदे की मुख्य चिंता अल्लाह की खुशी हो, लोगों की नहींॽ

प्रश्न

मैं अपनी मुख्य चिंता अल्लाह को खुश करना कैसे बना सकता हूँ, और लोग क्या कहते हैं, उसपर मैं कोई ध्यान न दूँॽ वे कौन-सी पुस्तकें हैं जो इसे हासिल करने में मेरी मदद करेंगीॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

एक ईमान वाले व्यक्ति का सबसे बड़ा उद्देश्य सर्व संसार के पालनहार की प्रसन्नता प्राप्त करना होता है।

अल्लाह तआला ने फरमाया :

 وَعَدَ اللَّهُ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَمَسَاكِنَ طَيِّبَةً فِي جَنَّاتِ عَدْنٍ وَرِضْوَانٌ مِنَ اللَّهِ أَكْبَرُ ذَلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ  [التوبة: 27].

“अल्लाह ने मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों से ऐसे बाग़ों का वादा किया है जिनके नीचे से नहरें बहती हैं, उनमें वे सदैव रहेंगे और सदा निवास के बाग़ों में सुखद आवास का (वादा किया है), और अल्लाह की प्रसन्नता सबसे बड़ी चीज़ है। यही तो महान सफलता है।” [सूरतुत-तौबा : 72]।

बुखारी ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 6549) तथा मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 2829) में अबू सईद अल-खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अल्लाह तबारक व तआला जन्नत के लोगों से फरमाएगा : ऐ जन्नत के लोगो! वे कहेंगे : हम उपस्थित हैं, ऐ हमारे पालनहार! हमें सौभाग्य प्रदान कर। वह (अल्लाह) कहेगा : क्या तुम प्रसन्न हो गएॽ वे कहेंगे : “हम कैसे प्रसन्न न होंगे, जबकि तूने हमें वह सब दिया है, जो तूने अपनी सृष्टि में से किसी को नहीं दियाॽ तो अल्लाह कहेगा : “मैं तुम्हें उससे भी बेहतर चीज़ दूँगा। वे कहेंगे : ऐ पालनहार! उससे बेहतर क्या हो सकता हैॽ तो वह (अल्लाह) कहेगा : “मैं तुमपर अपनी प्रसन्नता उतारता हूँ। अतः इसके बाद मैं तुमसे कभी नाराज़ नहीं हूँगा।”

मोमिन के जीवन का प्रतीक यह है कि वह केवल अल्लाह की खुशी चाहता है, जिसका कोई साझी नहीं, भले ही लोग नाराज़ हो जाएँ। जबकि मुनाफ़िक़ों (पाखंडियों) की निशानी यह है कि वे लोगों को खुश करने के लिए उत्सुक होते हैं, भले ही सर्व संसार का पालनहार नाराज़ हो जाए।

अल्लाह तआला ने पाखंडियों के बारे में फरमाया है :

يَحْلِفُونَ بِاللَّهِ لَكُمْ لِيُرْضُوكُمْ وَاللَّهُ وَرَسُولُهُ أَحَقُّ أَنْ يُرْضُوهُ إِنْ كَانُوا مُؤْمِنِينَ   [التوبة : 62].

“वे तुम्हारे लिए अल्लाह की क़सम खाते हैं, ताकि तुम्हें खुश करें, हालाँकि अल्लाह और उसका रसूल अधिक हक़दार है कि वे उसे खुश करें, यदि वे मोमिन हैं।” (सूरतुत-तौबा : 62)

जो चीजें अकेले अल्लाह की प्रसन्नता तलाश करने में बंदे की मदद करती हैं, उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :

सर्व प्रथम : बंदा अपने पालनहार को अच्छी तरह से जान ले। चुनाँचे वह निश्चित हो जाए कि समस्त मामला उसी के हाथ में है, और वही अकेला मामले का प्रबंधन करता है, और वही अकेला नीचे करने वाला और ऊँचा उठाने वाला है, वही अकेला सम्मान देता है और अपमानित करता है, उसने जो कुछ दिया, उसे कोई रोकने वाला नहीं, और जो कुछ उसने मना कर दिया, उसे कोई देने वाला नहीं, और यह कि सभी लोगों को उसके लिए या अपने लिए किसी लाभ या हानि, मृत्यु या जीवन, या किसी भी चीज़ का कोई अधिकार नहीं है।

यदि बंदे को इसपर यक़ीन हो गया, तो उसका हृदय उसके पालनहार से जुड़ जाएगा, क्योंकि वह मानता है कि लोग उसे उसके पालनहार की अनुमति के बिना कोई लाभ नहीं दे सकते हैं, और न ही वे उस अकेले (अल्लाह) की अनुमति के बिना उसे कोई नुक़सान पहुँचा सकते हैं।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं : “और यह बात जान लो कि अगर सारी उम्मत एकत्र होकर तुम्हें कुछ लाभ पहुँचाना चाहे, तो वह तुम्हें उस चीज़ के अलावा कोई लाभ नहीं पहुँचा सकती, जो अल्लाह ने (पहले ही से) तुम्हारे लिए लिख दिया है। तथा यदि वे तुम्हें कुछ नुक़सान पहुँचाने के लिए एकत्र हो जाएँ, तो वे तुम्हें उसके अलावा कोई नुक़सान नहीं पहुँचा सकते, जो अल्लाह ने (पहले ही से) तुम्हारे लिए लिख दिया है।”

इसे तिर्मिज़ी ने अपनी सुनन (हदीस संख्या : 2516) में उल्लेख किया है और शैख अलबानी ने “सिलसिला सहीहा” (5/497) में इसे सहीह कहा है।

दूसरा : बंदा यह विश्वास (यक़ीन) रखे कि लोगों का उससे प्रेम करना और उससे प्रसन्न होना केवल उसके पालनहार व स्वामी की अनुमति से होता है। इसलिए यदि वह अपने पालनहार को प्रसन्न रखेगा, तो वह अपने मोमिन बंदों के दिलों में उसके लिए प्रेम उत्पन्न कर देगा।

तिर्मज़ी ने अपनी सुनन (हदीस संख्या : 3267) में बराअ बिन आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से उल्लेख किया है कि उन्होंने कहा : “एक आदमी ने (नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के द्वार पर) खड़े होकर (पुकार कर) कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मेरा किसी की प्रशंसा करना उसके लिए सम्मान का कारण है। तथा मेरा किसी की निंदा करना उसके लिए दोष (अपमान) की बात है। इसपर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “यह विशेषता तो केवल अल्लाह सर्वशक्तिमान के लिए है।”

इस हदीस को शैख अलबानी ने “सहीह-तिर्मिज़ी” (हदीस संख्या : 2605) में सहीह कहा है।

अल्लाह ही अकेला है, जो अगर किसी बंदे की प्रशंसा और सराहना करता है, तो उसे सुसज्जित कर देता है, और यदि वह किसी बंदे पर क्रोधित होता है और उसकी निंदा करता है, तो वह दोषपूर्ण हो जाता है। लेकिन उसके सिवाय जो अन्य लोग हैं, तो वे अल्लाह की अनुमति के बिना इसमें से किसी भी चीज़ का अधिकार नहीं रखते हैं।

तथा हदीस में आया है कि अल्लाह ही है, जो लोगों के दिलों में किसी के लिए प्यार या नफ़रत पैदा करता है।

बुखारी ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 3209) और मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 2637) में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से उल्लेख किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब अल्लाह किसी बंदे से प्यार करता है, तो वह जिबरील (अलैहिस्सलाम) को बुलाता है और कहता है : मैं फ़लाँ बंदे से प्यार करता हूँ। इसलिए तुम भी उससे प्यार करो। तो जिबरील अलैहिस्सलाम भी उससे प्यार करने लगते हैं। फिर वह आकाश के लोगों को पुकार कर कहते हैं : अल्लाह फ़लाँ बंदे से प्यार करता है, इसलिए तुम सब भी उससे प्यार करो। चुनाँचे आकाश के लोग (फ़रिश्ते)  उससे प्यार करने लगते हैं। फिर वह पृथ्वी वालों के दिलों में प्रिय बना दिया जाता है। तथा अगर अल्लाह किसी से घृणा करता है,  तो वह जिबरील को बुलाता है और कहता है : मैं फ़लाँ बंदे से नफरत करता हूँ। इसलिए तुम भी उससे नफरत करो। तो जिबरील भी उससे नफरत करने लगते हैं, फिर वह आकाश के लोगों से कहते हैं : अल्लाह फ़लाँ से नफरत है, इसलिए तुम सब भी उससे नफरत करो। तो वे भी उससे नफरत करने लगते हैं। फिर धरती वालों के दिलों में उसके लिए घृणा डाल दी जाती है।”

तीसरा : बंदे को यह यक़ीन होना चाहिए कि उसके दिल का सर्व संसार के पालनहार को छोड़कर, लोगों की प्रसन्न की ओर ध्यान देना विफलता है, और जो ऐसा करता है वह दोषपूर्ण और निंदनीय हो जाएगा, जिसकी कोई प्रशंसा करने वाला नहीं होगा, असहाय छोड़ दिया जाएगा उसका समर्थन करने वाला कोई नहीं होगा। लेकिन अगर वह अकेले अल्लाह की प्रसन्नता तलाश करेगा, तो अल्लाह उसे लोगों के प्रति पर्याप्त हो जाएगा (उसे किसी की आवश्यकता नहीं होगी)।

अल्लाह का फरमान है :

 لَا تَجْعَلْ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ فَتَقْعُدَ مَذْمُومًا مَخْذُولًا   [الإسراء : 22].

“अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य न बनाओ, अन्यथा निंदित और असहाय होकर बैठे रह जाओगे।” (सूरतुल इसरा : 22).

इब्ने हिब्बान ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 277) में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जो व्यक्ति लोगों को नाराज़ करके अल्लाह को खुश करेगा, अल्लाह उसके लिए काफी हो जाएगा। तथा जो व्यक्ति लोगों को खुश करने हेतु अल्लाह को नाराज़ करेगा, तो अल्लाह उसे लोगों के हवाले कर देगा।”

इस हदीस को अलबानी ने “सिलसिला सहीहा” (हदीस संख्या : 2311) में सहीह कहा है।

तथा आप कअब बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु को देखें कि किस तरह उनकी चिंता सच बोलने और अकेले अल्लाह को खुश करने की थी,  क्योंकि उनका विश्वास ​​था कि अगर वह सच बोलते हैं, तो अल्लाह उनके लिए काफी हो जाएगा। और यह कि यदि उनकी मुख्य चिंता झूठ बोलकर लोगों के क्रोध से बचने की होगी, तो क़रीब है कि अल्लाह लोगों को उनसे नाराज़ कर देगा।

कअब रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी तौबा की कहानी बयान करते हुए कहते हैं कि उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कहा : “अल्लाह की क़सम! अगर मैं आपके अलावा इस दुनिया में किसी और के सामने बैठा होता, तो मैं समझता हूँ कि कोई बहाना करके उसके क्रोध से बच जाता। क्योंकि मुझे दृढ़ता से बहस करने की क्षमता प्राप्त है। लेकिन, अल्लाह की क़सम! निश्चित रूप से मुझे पता है कि अगर मैं आज आपसे कोई झूठ बोलता हूँ, जिसे आप स्वीकार करके मुझसे राज़ी हो जाते हैं, तो जल्द ही अल्लाह आपको मुझसे नाराज़ कर देगा। जबकि अगर मैं आज आपसे सच बोलता हूँ, जिससे आप मुझ पर नाराज़ हो जाते हैं, लेकिन निश्चय मुझे उसमें अल्लाह की क्षमा की आशा है। नहीं, अल्लाह की क़सम! मेरे पास कोई बहाना नहीं था। अल्लाह की क़सम! जिस समय मैं आपसे पीछे रह गया, उससे पहले मैं कभी भी इतना मज़बूत और संपन्न नहीं था। इसपर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : “इसने सच बोला है। अब जाओ, यहाँ तक कि अल्लाह तुम्हारे विषय में कोई फैसला कर दे।”

इसे बुखारी ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 4418) तथा  मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 2769) में उल्लेख किया है।

चौथा : आप यह बात अच्छी तरह से जान लें कि लोगों को खुश करने का कोई रास्ता नहीं है। क्योंकि मनुष्य में मूल रूप से अत्याचार और अज्ञानता है, और लोगों को प्रसन्न करना एक ऐसा लक्ष्य है जिसे हासिल नहीं किया जा सकता। क्योंकि लोग अपने पालनहार से प्रसन्न नहीं हुए, तो क्या वे आपसे प्रसन्न हो जाएँगेॽ!

बैहक़ी ने अज़-ज़ुह्द अल-कबीर (हदीस संख्या : 180) में सहीह इस्नाद के साथ, अल-हसन अल-बसरी से उल्लेख किया है कि उनसे कहा गया : “लोग आपकी सभा में इसलिए आते हैं कि वे आपके चूक को पकड़ें। फिर उन्हें आपकी निंदा करने (दोष निकालने) का अवसर मिल जाए। तो उन्होंने कहा : कोई बात नहीं! (इसके बारे में चिंता मत करो) क्योंकि मैंने अपने नफ़्स (आत्म) को अल्लाह की निकटता का प्रलोभन दिया, तो वह लोभी हो गया, मैंने अपने नफ़्स को जन्नतों का प्रलोभन दिया, तो वह लोभी हो गया, मैंने अपने नफ़्स को हूरों का प्रलोभन दिया, तो वह लोभी हो गया, तथा मैंने अपने नफ़्स को लोगों से सुरक्षित रहने का प्रलोभन दिया, तो मुझे इसके हासिल करने का कोई रास्ता नहीं मिला। जब मैंने देखा कि लोग अपने सृष्टिकर्ता से प्रसन्न नहीं होते हैं, तो मैंने जान लिया कि वे अपने ही जैसे प्राणी से प्रसन्न नहीं होंगे।”

तथा इमाम शाफ़ेई रहिमहुल्लाह ने यूनुस बिन अब्दुल आला से कहा : ऐ अबू मूसा! अगर आप सभी लोगों को खुश करने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर लें, तो इसका कोई रास्ता नहीं है। अतः जब ऐसा मामला है, तो आप अपने कर्म और अपने इरादे को अल्लाह सर्वशक्तिमान् के लिए विशुद्ध (ख़ालिस) रखें।”

इसे बैहक़ी ने “शुअबुल ईमान” (हदीस संख्या : 6518) में वर्णन किया है।

इसलिए बंदे की मुख्य चिंता और उद्देश्य केवल अपने पालनहार की प्रसन्नता की तलाश होनी चाहिए, यदि वह प्रसन्न हो गया, तो वह आपके लिए पर्याप्त है।

जहाँ तक पुस्तकों का संबंध है, तो हम विशेष रूप से इस विषय पर लिखी गई कोई पुस्तक नहीं जानते हैं। लेकिन हम प्रश्नकर्ता और सभी मुसलमानों को अल्लाह के बारे में अधिक जानने की सलाह देते हैं। क्योंकि बंदा जितना ही अधिक अपने पालनहार के बारे में जानेगा, उतना ही अधिक उसकी चिंता केवल अपने पालनहार की प्रसन्नता होगी, और लोगों की नाराज़गी उसे कोई हानि नहीं पहुँचाएगी।

इस विषय में अच्छी पुस्तकों में से एक डॉ. मुहम्मद अल-हमूद अन-नज्दी की पुस्तक “अन-नह्जुल अस्मा फी शर्ह अस्माइल्लाहिल-ह़ुस्ना” (अल्लाह के खूबसूरत नामों की व्याख्या करने में सर्वोच्च शैली) है।

इसी तरह हम आपको इब्ने रजब अल-हंबली और इब्नुल-क़ैयिम की पुस्तकों को व्यापक रूप से पढ़ने की सलाह देते हैं, क्योंकि इस विषय में उनकी बातें सबसे अधिक लाभकारी हैं।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर