हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम : नौकरियाँ एक तरह की किरायेदारी (इजारा) हैं।
नौकरियाँ (जॉब्स) एक प्रकार की किरायेदारी (हायरिंग) हैं, जो लोगों को काम पर रखने के अंतर्गत आती हैं। किरायेदारी अपनी दोनों क़िस्मों – लोगों को काम पर रखने तथा वस्तुओं को किराए पर लेने – समेत एक बाध्यकारी अनुबंध है, जो दोनों पक्षों की सहमति के बिना निरस्त नहीं होता है, और उसमें अनुबंध को उसकी निर्धारित अवधि तक पूरा करना अनिवार्य है।
लेकिन अगर कोई आपातकालीन स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जो किराए पर ली गई वस्तु का उपयोग करने या काम पर रखने वाले व्यक्ति की सेवाओं से लाभ उठाने से रोकती है, जैसे कि यदि कंपनी को काम करने से रोका दिया गया, और उसके पास ऐसे कर्मचारी हैं जिनकी कंपनी को अब आवश्यकता नहीं है, या वह उनकी तनख्वाहों का भुगतान नहीं कर सकती है, या छात्रों को स्कूल ले जाने के लिए कुछ लोगों को काम पर रखा गया, फिर महामारी के कारण स्कूल बंद कर दिए गए, या एक शिक्षक को एक विषय पढ़ाने के लिए काम पर रखा गया और फिर उस विषय को रद्द कर दिया गया, इसी तरह के अन्य उदाहरण, जिनमें किराए पर ली गई वस्तु का उपयोग करना या किराए पर रखे गए व्यक्ति की सेवाओं से लाभ उठाना दुर्लभ और असंभव हो जाता है।
विद्वानों ने इस बारे में मतभेद किया है कि क्या इन कारणों से (आपातकालीन स्थिति में) किरायेदारी का अनुबंध निरस्त हो जाएगा, या वह अभी भी बाध्यकारी रहेगाॽ जमहूर (अधिकांश) विद्वानों के अनुसार मूल सिद्धांत यह है कि किरायेदारी का अनुबंध बाध्यकारी है। जबकि हनफिय्या और मालेकिय्या के प्रत्यक्ष दृष्टिकोण के अनुसार, अनुबंध निरस्त हो जाएगा। इसी मत को शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह और शैख इब्ने उसैमीन ने पसंद किया है। तथा यही दृष्टिकोण ‘शरई मानक समिति’ द्वारा अपनाया गया है। इस मुद्दे का शरई हुक्म और उसके बारे में विद्वानों के विचारों का वर्णन विस्तार के साथ प्रश्न संख्या : (350012 ) के उत्तर में किया जा चुका है।
दूसरा : कोरोना वायरस की वजह से नौकरी के अनुबंध का निरसन
उपर्युक्त के आधार पर, यदि श्रमिकों और कर्मचारियों को, कोरोनो वायरस के कारण अपना काम करने से रोक दिया जाता है, और यह लंबे समय तक जारी रहता है, तो नियोक्ता (व्यवसाय का स्वामी) अनुबंध को निरस्त कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप वेतन बंद हो जाएगा। चुनाँचे अनुबंध निरस्त होने के बाद कोई वेतन नहीं है।
डॉ. खालिद अल-मुशैक़िह़ हफ़िज़हुल्लाह ने कहा : “इक्कीसवाँ : लेनदेन के अनुबंधों जैसे किरायेदारी और किसी से कोई चीज़ बनवाने (विनिर्माण) आदि में इस आपदा से प्रभावित होने वाले के लिए महामारी के कारण होने वाले नुक़सान के बराबर मूल्य को कम करने की अनिवार्यता। क्योंकि महामारी से होने वाले नुक़सान के बराबर मूल्य को घटाना केवल फल के लिए विशिष्ट नहीं है।”
“अल-अहकाम अल-फिक़्हिय्यह अल-मुतअल्लिक़ह बि-फीरोस कोरोना” नामक व्याख्यान से उद्धरण समाप्त हुआ।
अनुबंध को रद्द करने से बेहतर यह है कि कर्मचारी को निष्कासित न किया जाए। बल्कि उसका वेतन कम कर दिया जाए यहाँ तक कि आपदा समाप्त हो जाए।
शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह से : एक ऐसे व्यक्ति के बारे में पूछा गया, जिसने ज़मीन किराए पर ली। लेकिन सामान्य बारिश नहीं हुई, जिसके कारण फसल बर्बाद हो गई। क्या महामारी से होने वाले नुक़सान के बराबर मूल्य को कम किया जाएगाॽ
तो उन्होंने जवाब दिया :
“अगर उसने खेती करने के लिए ज़मीन किराए (पट्टे) पर ली, लेकिन पहले की तरह (सामान्य) बारिश नहीं हुई, तो वह विद्वानों की सर्वसहमति के साथ अनुबंध रद्द कर सकता है। बल्कि, अगर लाभ निलंबित हो जाता है, तो सबसे स्पषट बात यह है कि किराये का अनुबंध, बिना रद्द किए ही, अमान्य हो जाएगा।
लेकिन अगर लाभ कम हो जाता है, तो भूमि के किराए (मजदूरी) में से उसी मात्रा में कम कर दिया जाएगा, जितना कि लाभ कम हो गया है। इमाम अहमद बिन हंबल वग़ैरह ने इसे स्पष्टता के साथ उल्लेख किया हा है। चुनाँचे पूछा जाएगा : यदि नियमित वर्षा होती है तो भूमि का किराया कितना हैॽ तो अगर उत्तर दिया जाता है कि एक हजार दिरहम है। फिर पूछा जाएगा : यदि इतनी मात्रा में वर्षा कम हो जाती है, तो उसका किराया कितना होगाॽ तो उत्तर मिलता है : पाँच सौ दिरहम। फिर नामित किराए का आधा हिस्सा किरायेदार से कम कर दिया जाएगा।
यदि अनुबंध द्वारा अधिकृत कुछ लाभ, उसे अर्जित करने में सक्षम होने से पहले नष्ट हो जाता है, तो वह ऐसे ही है जैसे कि बेचे गए सामान का कुछ भाग उसे क़ब्ज़े में लेने में सक्षम होने से पहले नष्ट हो जाए। इसी तरह, यदि भूमि टिड्डियों या आग, या किसी आपदा से प्रभावित होती है, जो कुछ फसल को नष्ट कर देती है, तो किराये की राशि में से उतना कम कर दिया जाएगा, जितना लाभ कम हो गया है।”
“मजमूउल-फतावा” (30/257) से उद्धरण समाप्त हुआ।
ईमान वालों को एक-दूसरे के प्रति दया व्यवहार करना चाहिए, एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए और अपने आपपर दूसरों को प्राथमिकता देना चाहिए (आत्मत्याग से काम लेना चाहिए) तथा कमज़ोरों और ग़रीबों के अधिकारों पर ध्यान देना चाहिए। आदमी को केवल अपने हित के बारे में नहीं सोचना चाहिए। तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1924) ने अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “परम दयावान् (अल्लाह) उन लोगों पर दया करता है, जो दया करने वाले हैं। जो लोग पृथ्वी पर हैं, उन पर दया करो, जो आकाश पर है, वह तुमपर दया करेगा।” तथा अलबानी ने “सहीह-तिर्मिज़ा” में इसे सहीह कहा है।
तीसरा : आपातकालीन कारण की स्थिति में ‘इजारा’ (किरायेदारी) के अनुबंध को रद्द करने की शर्त लगाना
यदि व्यवसाय के मालिक (नियोक्ता) या कर्मचारी ने यह शर्त लगाई है कि अप्रत्याशित और नियंत्रण से परे बहाना की स्थिति में अनुबंध रद्द कर दिया जाएगा, तो इस शर्त की उपस्थिति में उसके लिए अनुबंध को निरस्त करने की और भी अधिक अनुमति है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : “मुसलमान अपनी शर्तों पर (क़ायम) हैं।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 3594) ने रिवायत किया है और अलबानी ने “सहीह अबू दाऊद” में इसे सहीह कहा है।
चौथा :
अनुबंध को निरस्त करने या मज़दूरी (वेतन) में कमी करने के संबंध में ऊपर जो कुछ उल्लेख किया गया है, वह इस मुद्दे पर विद्वानों के वक्तव्य को स्पष्ट करने के लिए है। जहाँ तक व्यावहारिक अनुप्रयोग का संबंध है, तो यह अक्सर विवाद का कारण बनेगा, और केवल न्यायपालिका इस पर निर्णय ले सकती है, विशेष रूप से जब राज्य श्रमिकों और उनके अधिकारों से संबंधित नियमों की व्यवस्था करता है। यदि नियोक्ता अनुबंध को समाप्त करने का फैसला करता है, तो कर्मचारी श्रमिकों के अधिकारों के लिए जिम्मेदार प्राधिकरण को अपनी शिकायत कर सकता है। जो उसके मामले को देखेगा, फिर वह अनुबंध की बाध्यता और उसके निरसन को रोकना का फैसला कर सकता है, तथा वह अनुबंध को रद्द करने या मज़दूरी को कम करने का भी निर्णय ले सकते है। और यह बात सर्वज्ञात है कि शासक का निर्णय विवाद को समाप्त कर देता है।
पाँचवाँ :
राज्य, नुक़सान को दूर करने और ज़रूरतमंदों की देखभाल करने के रूप में, कार्यकर्ता या नियोक्ता को मुआवजा देने का निर्णय ले सकता है। जिस तरह कि वह नाबालिग़ बच्चों, विधवाओं, बेरोज़गारों और इसी तरह के अन्य लोगों के साथ करता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि प्रत्येक देश की क्षमताएँ क्या हैं, और वह हितों और अहितों को किस तरह आँकता है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।