हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
नकद राशि पर आधारित खाता, उससे कम या अधिक मूल्य में खरीदना जायज़ नहीं है; क्योंकि इसमें “रिबा अल-फज़्ल” (वृद्धि का ब्याज अर्थात् एक ही प्रकार की दो चीज़ों का विनिमय किसी एक की मात्रा में वृद्धि के साथ करना) पाया जाता है। परंतु यदि इसे दूसरी मुद्रा से खरीदा जाए, जैसे कि यदि खाता डॉलर में है, तो वह उसे रियाल के साथ खरीदता है, तो ऐसी स्थिति में कोई आपत्ति की बात नहीं है। क्योंकि दोनों मुद्राओं में अंतर होने की स्थिति में मात्रा में कमी-बेशी के साथ बेचना जायज़ है, लेकिन इस शर्त के साथ कि आदान-प्रदान उसी बैठक में संपन्न हो जाए जिसमें अनुबंध तय पाया है। (अर्थात् विक्रेता मूल्य और खरीदार सामान प्राप्त कर ले)।
इसके बारे में मूल प्रमाण यह हदीस है जिसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 1587) ने उबादह बिन सामित रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “सोने को सोने के बदले में, चाँदी को चाँदी के बदले में, गेहूँ को गेहूँ के बदले में, जौ को जौ के बदले में, खजूर को खजूर के बदले में और नमक को नमक के बदले में बराबर-बराबर, समानांतर रूप से, हाथों-हाथ (नकद) बेचो। फिर अगर ये क़िस्में अलग-अलग हो जाएँ, तो जैसे चाहो बेचो, जब तक कि वह हाथों-हाथ (नक़द) है।
नकद मुद्राएँ (क्रंसियाँ), सोने और चांदी के हुक्म के अंतर्गत आती हैं।
“इस्लामिक फ़िक़्ह काउंसिल” के फैसले में यह कहा गया है :
“कागजी मुद्राओं के नियमों के संबंध में : ये कानूनी धन (विधिमान्य मुद्राएँ) हैं, जिनका पूरा मूल्य है। तथा रिबा (ब्याज), ज़कात, सलम (अग्रिम भुगतान) के लेन-देन और अन्य सभी नियमों (अहकाम) के संदर्भ में, इनके वही शरई अहकाम (कानूनी नियम) हैं जो सोने और चाँदी के लिए निर्धारित हैं।”
“मजल्लतुल-मजमा” (तीसरा अंक, भाग 3, पृष्ठ 1650) से उद्धरण समाप्त हुआ।
इसलिए 400 रियाल में 1500 डॉलर खरीदना जायज़ है, इस शर्त पर कि एक ही बैठक में विनिमय संपन्न हो जाए। तथा हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फरमान “यदि वह हाथों-हाथ हो” का यही मतलब है।
चुनाँचे आप उससे उसके खाते का विवरण ले लें, और अनुबंध की बैठक ही में उसे हाथों-हाथ रियाल दे दें। यह वास्तविक आदान-प्रदान (अर्थात् विक्रेता के द्वारा मूल्य की और खरीदार के द्वारा सामान की प्राप्ति) है। या आप उसे उसी अनुबंध की बेठक में उसके खाते में डाल दें। और यह विनिमय (प्राप्ति) के हुक्म (अर्थ) में है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।