हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
अल्लाह तआला का फरमान है :
الحج أشهر معلومات فمن فرض فيهن الحج فلا رفث ولا فسوق ولا جدال في الحج وما تفعلوا من خير يعلمه الله وتزودوا فإن خير زاد التقوى واتقون يا أولي الألباب [ البقرة: 197]
“हज्ज के कुछ जाने पहचाने (विशिष्ट) महीने हैं, अतः जिस ने इन महीनों में हज्ज को फर्ज़ कर लिया,तो हज्ज में संभोग और कामुक बातें,फिस्क़ व फुजूर (अवज्ञा और पाप) और लड़ाई-झगड़ा (वैध) नहीं है, और तुम जो भी भलाई करोगे अल्लाह तआला उसे जानने वाला है, और अपने साथ सफर खर्च ले लिया करो, और सर्व श्रेष्ठ मार्ग व्यय तक़्वा (ईश्भय) है, और ऐ बुद्धि वाले लोगो, मुझसे डरते रहो।” (सूरतुल बक़रा : 197)
- बंदे के लिए उचित यह है कि वह हज्ज के शआइर (कार्यों) को सर्व संसार के पालनहार के लिए आज्ञाकारिता, प्रेम,श्रद्धा और सम्मान के तौर पर करे, चुनाँचे वह उसे सुकून व वक़ार और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अनुसरण के साथ अदा करे।
तथा इन महान मशाइर को ज़िक्र,तक्बीर (अल्लाहु अक्बर), तस्बीह (सुब्हानल्लाह), तह्मीद (अल्हम्दुलिल्लाह)और इस्तिग़फार (अस्तग़फिरुल्लाह) से व्यस्त रखे क्योंकि वह जब से एहराम शुरू करता है उस समय से लेकर उस से हलाल होने तक इबादत में होता है।अतः हज्ज मनोरंजन और खेलकूद के लिए सैर नहीं है कि मनुष्य उस से जिस तरह चाहे बिना किसी रोक टोक के लाभ उठाए जैसा कि कुछ लोगों को देखा जाता है,चुनाँचे आप कुछ लोगों को खेल,हँसीऔर लोगों का उपहास करने और इनके अलावा अन्य घृणित कामों में इति से काम लेते हुए देखेंगे मानो कि हज्ज को मात्र आनंद और खेल के लिए निर्धारित किया गया है।
- अल्लाह की तरफ से अनिवार्य की हुई नमाज़ों की जमाअत के साथ उसके समय पर अदा करने की पाबंदी करे,भलाई का आदेश दे और बुराई से रोके।
- उसे चाहिए कि लोगों को लाभ पहुँचाने, उनका मार्गदर्शन करने और ज़रूरत के समय मदद के द्वारा उनके ऊपर उपकार करने का इच्छुक और लालायित बने,उनमें से कमज़ोरों पर दया करे विशेषकर दया के स्थानों पर जैसे कि भीड़ भाड़ वग़ैरह के स्थानों पर। क्योंकि सृष्टि पर दया करना सृष्टा की दया का कारण है और अल्लाह तआला अपने बंदों में से दया करने वालों पर ही दया करता है।
- तथा वह कामुक चीज़ों,अश्लीलता,गुनाहों,अवज्ञा और हक़ के समर्थन और मदद के अलावा चीज़ों में बहस करने से दूर रहे,जहाँ तक हक़ की सहायता करने के उद्देश्य से बहस करने का संबंध है तो यह उसके स्थान पर अनिवार्य है,तथा वह लोगों पर ज़ियादती (अत्याचार) करने और उन्हें कष्ट पहुँचाने से दूर रहे,गीबत,पिशुनता,चुगली,गाली देने, मार पीट करने, परायी महिलाओ की ओर देखने से बचे क्योंकि ये एहराम की हालत में और एहराम से बाहर भी निषिद्ध और हराम हैं।अतः एहराम की हालत में उनकी निषिद्धता सख्त हो जाती है।
- तथा उस बात-चीत से दूर रहे जिसे बहुत से लोग करते हैं जो मशाइर में उचित नहीं है,जैसे कुछ लोगों का जमरात को कंकरी मारने के बाद यह कहना कि हम ने शैतान को कंकरी मारी है,और कभी कभार वह मश्अर को गाली देता है,या उसे जूते इत्यादि से मारता है जो आज्ञाकारिता और उपासना के विरूद्ध है और कंकरी मारने के उद्देश्य के विपरीत है जो कि अल्लाह सर्व शक्तिमान के ज़िक्र को स्थापित करना है।