हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
पहला :
मार्शल आर्ट का हुक्म
मार्शल आर्ट का अभ्यास करने में कोई हर्ज नहीं है, यदि वे निम्नलिखित शरई वर्जनाओं से मुक्त हों :
1- ऐसा कुछ भी करना जो निषिद्ध है, जैसे चेहरे और सिर पर वार करना, या किसी प्रतिस्पर्धी को नुकसान पहुँचाना।
''मुक्केबाजी, फ्रीस्टाइल कुश्ती और बुलफाइटिंग'' के विषय पर मक्का अल-मुकर्रमा में मुस्लिम वर्ल्ड लीग की इस्लामिक फ़िक़्ह काउंसिल के एक बयान में कहा गया है :
"काउंसिल की परिषद सर्वसम्मति से मानती है कि उपर्युक्त मुक्केबाजी, जो वास्तव में आज हमारे देश में खेल और प्रतिस्पर्धा के मैदानों में प्रचलित हो गई है, इस्लामी शरीयत में एक निषिद्ध अभ्यास है, क्योंकि यह प्रत्येक प्रतियोगी के दूसरे के शरीर को गंभीर क्षति पहुँचाने की अनुमति देने पर आधारित है, जिसके परिणामस्वरूप अंधापन, या मस्तिष्क को तीव्र या दीर्घकालिक क्षति, या गंभीर फ्रैक्चर, या मृत्यु हो सकती है, जबकि मारने वाले व्यक्ति का कोई दायित्व नहीं होता है, बल्कि विजेता का समर्थन करने वाली भीड़ को यह देखकर खुशी और उल्हास होता है कि उसके प्रतिद्वंद्वी को नुकसान हुआ है। यह एक निषिद्ध कार्य है जिसे इस्लाम ने पूरी तरह से और आंशिक रूप से खारिज कर दिया है। क्योंकि अल्लाह, सर्वशक्तिमान का फरमान है :
وَلا تُلْقُوا بِأَيْدِيكُمْ إِلَى التَّهْلُكَةِ
البقرة:195
“और अपने आपको विनाश में न डालो।” (सूरतुल बक़रा : 195)
तथा अल्लाह ने फरमाया :
وَلا تَقْتُلُوا أَنْفُسَكُمْ إِنَّ اللَّهَ كَانَ بِكُمْ رَحِيمًا
النساء:29
“तथा अपने आपको क़त्ल न करो। निःसंदेह अल्लाह तुम्हारे प्रति अत्यंत दयालु है।” (सूरतुन-निसा : 29).
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :
“न हानि उठाना जायज़ है और न ही एक दूसरे को हानि पहुँचाना।”
इसके आधार पर, इस्लामी शरीयत के विद्वानों ने इस बात को स्पष्ट रूप से बयान किया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी दूसर को अपना खून बहाने की अनुमति देता है और उससे कहता है : मुझे मार डालो। तो उसके लिए उसे मारना जायज़ नहीं है। यदि वह ऐसा करता है, तो वह ज़िम्मेदार होगा और सज़ा का हक़दार होगा।
तदनुसार : परिषद निर्णय लेती है कि इस मुक्केबाजी को शारीरिक खेल नहीं कहा जा सकता, और इसका अभ्यास करना जायज़ नहीं है; क्योंकि खेल की अवधारणा बिना किसी नुकसान या क्षति के व्यायाम पर आधारित है। इसलिए इसे स्थानीय खेल कार्यक्रमों और अंतरराष्ट्रीय मैचों में भागीदारी से हटा दिया जाना चाहिए। परिषद यह भी निर्णय लेती है कि इसे टेलीविजन कार्यक्रमों पर दिखाना जायज़ नहीं है, ताकि युवा इस बुरे कृत्य को न सीखें और इसकी नकल करने की कोशिश न करें।
जहाँ तक फ्रीस्टाइल कुश्ती का सवाल है, जिसमें प्रत्येक प्रतियोगी दूसरे को नुक़सान पहुँचाने या चोट पहुँचाने को अनुमेय समझता है, परिषद का मानना है कि यह पूरी तरह से मुक्केबाजी के समान कार्य है, जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है, भले ही इसका रूप अलग हो। क्योंकि मुक्केबाजी में उल्लिखित सभी शरई निषेध फ्रीस्टाइल कुश्ती में भी मौजूद हैं, जो द्वंद्वयुद्ध के तरीके से आयोजित किया जाता है, इसलिए यह निषेध में उसी के समान हुक्म के तहत आएगा।”
2- पुरुष के गुप्तांगों को उजागर करना, जो नाभि और घुटनों के बीच होता है।
3- लिंगों के बीच मिश्रण करना। जिसमें लड़कियों को प्रशिक्षण देना भी शामिल है।
4- अल्लाह की याद से ध्यान भटकाना तथा नमाज़ एवं अन्य दायित्वों की उपेक्षा करना।
5- खिलाड़ी या कोच के सामने न झुकना।
6- पथ-भ्रष्ट विचारों, जादू-टोने और मूर्तिपूजक धर्मों से जुड़ी किसी भी चीज़ से सुरक्षा।
7-व्यायाम करते समय संगीत, ड्रम और अन्य संगीत वाद्ययंत्रों से बचना।
यदि खेल इन शरई निषेधों से मुक्त है, तो इसका अभ्यास करने में कोई बुराई नहीं है।
दूसरी बात :
मय थाई खेलने का हुक्म
मय थाई, या थाई मुक्केबाजी में ऊपर उल्लिखित कई शरई निषेध शामिल हैं, जैसे चेहरे पर मारना, प्रतिद्वंद्वी को नुकसान पहुँचाना, निजी अंगों (गुप्तांगों) को उजागर करना और संगीत वाद्ययंत्र का उपयोग करना।
जब तक इन शरई निषेधों से नहीं बचा जाता, इस खेल में शामिल होना जायज़ नहीं है।
तीसरा :
मार्शल आर्ट प्रशिक्षक के रूप में कार्य करने का हुक्म
यदि कोई व्यक्ति मार्शल आर्ट प्रशिक्षक के रूप में काम करता है, तो इसमें कोई बुराई नहीं है यदि वह खिलाड़ियों को इन बुराइयों से बचा सकता है। यदि वह ऐसा करने में सक्षम नहीं है, तो यह उसके लिए जायज़ नहीं है। क्योंकि उस स्थिति में उसका कार्य पाप में सहयोग के अंतर्गत आएगा। और सर्वशक्तिमान अल्लाह का फरमान है :
وَتَعَاوَنُوا عَلَى الْبِرِّ وَالتَّقْوَى وَلا تَعَاوَنُوا عَلَى الْإثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ
المائدة/2
"नेकी और तक़्वा (परहेज़गारी) के कामों में एक-दूसरे का सहयोग किया करो तथा पाप और अत्याचार में एक-दूसरे का सहयोग न करो, और अल्लाह से डरते रहो। नि:संदेह अल्लाह कड़ी यातना देने वाला है।" (सूरतुल मायदा : 2)
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।