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जब ग्रहण एक प्राकृतिक घटना है तो हम क्यों डरते और नमाज़ पढ़ते हैं ?

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प्रकाशन की तिथि : 16-01-2010

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प्रश्न

अब यह ज्ञात हो गया है कि ग्रहण एक सामान्य प्रक्रिया है जो एक ऐसी अवधि में होता है जिस में चाँद, सूरज और पृथ्वी के बीच में आ जाता है। (जिस के घटित होने का समय पहले से जाना जा सकता है).
तो फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उस समय नमाज़ क्यों पढ़ते थे ? हालांकि यह किसी नुक़सान का कारण नहीं बनता है।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

अल्लाह की प्रशंसा और गुणगान के बादः जब अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समय काल में सूरज ग्रहण हुआ तो आप ने एक गुहार लगाने वाले को आदेश दिया कि वह यह गुहार लगाये कि "अस्सलातो जामिअ़ह" (अर्थात् आपात कालीन नमाज़ के लिए एकत्र हो जाओ)। फिर आप ने लोगों को नमाज़ पढ़ाई फिर भाषण (ख़ुत्बा) दिया, और उन के लिए ग्रहण की हिकमत (तत्व और कारण) स्पष्ट किया और अज्ञानता के समय काल के विश्वासों का खण्डन किया, और उन को बतलाया कि उन्हें ऐसी स्थिति में नमाज़ (ग्रहण की नमाज़) पढ़ना, दुआ करना और दान करना चाहिए, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "सूरज और चाँद अल्लाह की निशानियों में से दो निशानियाँ हैं, किसी की मृत्यु या जीवन के कारण उन में ग्रहण नहीं लगता है। अत: जब तुम उसे देखो तो अल्लाह से दुआ करो, तकबीर कहो, नमाज़ पढ़ो और दान (खैरात) करो।" इस का अर्थ यह है कि मुसलमान ग्रहण का समय नहीं जानते थे, किन्तु जब ग्रहण होता था तो उस चीज़ की तरफ जल्दी करते थे जिसे अल्लाह तआला ने उन के लिए नमाज़ इत्यादि मसनून किया है।

तथा वे लोग ग्रहण लगने के समय इस बात से डरते थे कि कहीं वह किसी आपदा और संकट के उतरने का सूचक न हो, इसलिए वे लोग अल्लाह से प्रार्थना करते थे कि उन से उस चीज़ को टाल दे जिस से वे डरते हैं। जब बाद के समय में खगोल विज्ञान, तथा सूर्य और चंद्रमा की गतिविधियों की गणना का ज्ञान फैल गया, और यह ज्ञात हो गया कि इस के विशेषज्ञगों को ग्रहण के लगने के समय का पता चल सकता है, तो उलमा (धर्म शास्त्रियों) ने इस बात को स्पष्ट किया कि इस का पहले से ज्ञान होना उसके हुक्म को नहीं बदल सकता, और यह कि मुसलमानों पर अनिवार्य है कि वे उस चीज़ को करें जिस का उन्हें ग्रहण लगते समय आदेश दिया गया है भले ही वे पहले से उस का ज्ञान रखते हों। किन्तु मुसलमा के लिए धर्म संगत नहीं है कि वह ग्रहण के लगने के समय की जानकारी को चिंता का विषय बनाये, क्योंकि यह उन चीज़ों में से है जिस का अल्लाह तआला और उस के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें हुक्म नहीं दिया है। तथा उलमा (विद्वानों) ने वर्णन किया है कि ग्रहण किसी ऐसी बुराई (आपदा) के घटित होने का कारण या निशानी हो सकता है जिस से बन्दों को नुक़सान पहुँच सकता है। और प्रश्न करने वाले का यह कहना कि ग्रहण से कोई नुक़सान नहीं होता है, ज्ञान पर आधारित नहीं है (बिना ज्ञान की बात है), और अल्लाह की शरीअत पर आपत्ति व्यक्त करना है, और यह ज़रूरी नहीं है कि लोग उस चीज़ को जान लें जिसे अल्लाह तआला ग्रहण लगने के समय घटित करता है, संभव है कि कुछ लोग इसे जानें और कुछ को ज्ञात न हो, और ऐसा भी हो सकता है कि अल्लाह तआला मुसलमानों के नमाज़ पढ़ने और दुआ करने के कारण बन्दों से ऐसी बुराईयों और आपदाओं को टाल देता हो जिसे अल्लाह के सिवाय कोई नहीं जानता। अत: मुसलमान पर अनिवार्य है कि वह अल्लाह के हुक्म को स्वीकार करे, उसकी शरीअत पर अमल करे, और उसकी हिकमत पर विश्वास रखे, क्योंकि अल्लाह सुब्हानहू व तआला सर्वज्ञानी और सर्वबुद्धिमान (सर्वतत्वदर्शी) है।

इसे आदरणीय शैख अब्दुर्रहमान अल-बर्राक ने लिखाया है।

सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण अल्लाह की निशानियों में से दो निशानियाँ हैं जिन के द्वारा अल्लाह तआला अपने बन्दों को डराता है और उन्हें क़ियामत के दिन (पुनर्जीवन के दिन) घटित होने वाली कुछ चीज़ों की याद दिलाता है, जब सूर्य लपेट दिया जायेगा और जब सितारे रोशनी खो देंगे, और जब निगाह चौंधिया जाएगी, और चंद्रमा को ग्रहण लग जाएग, और सूर्य और चंद्रमा इकट्ठे कर दिए जायेंगे। और यही डराने और सावधान करने का पहलू है। जब पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जीवन काल में सूरज को ग्रहण लगा तो आप अल्लाह तआला के अत्यंत डर और भय के कारण घबराये हुए बाहर निकले, आप यह सोच रहे थे कि क़ियामत आ गई। और यह इस कारण था कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़ियामत के आगमन को सदैव अपने दिल में उपस्थित रखते थे और उस से भयभीत रहते थे। लेकिन जहाँ तक हमारा मामला है तो हम ग़फलत और लापरवाही में लिप्त हैं यहाँ तक कि अधिकांश लोगों को इस में मात्र एक प्राकृतिक घटना नज़र आती है जिस में वे विशेष चश्मा पहनने, केमरा उठाने और उसकी सांसारिक वैज्ञानिक व्याख्या करने पर बस करते हैं, और इस के पीछे जो आखिरत को याद दिलाने का तत्व है उस से अनभिग होते हैं। और यह दिल की कठोरता, आखिरत के मामलों के बारे में चिंता के अभाव, क़ियामत के घटित होने से डर और भय की कमी, शरीअत के उद्देश्यों और सूर्य एंव चंद्र ग्रहण के समय नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित घबराहट और डर से अज्ञानता की निशानी और पहचान है। सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम सूर्य और चंद्र ग्रहण की नमाज़ के लिए खड़े होते थे तो उन के दिल में यह बात होती थी कि अगर यह नमाज़ क़ियामत के आने के लिए है तो वे अपनी नमाज़ के कारण गाफिल और लापरवाह नहीं समझे जायेंगे, और अगर सूर्य या चंद्र ग्रहण की नमाज़ इसलिए नहीं है कि क़ियामत घटित हो गई, तो वे अपनी नमाज़ के कारण किसी घाटे के शिकार नहीं होंगे, बल्कि उन्हें एक महान उपहार और बड़ा अज्र व सवाब प्राप्त होगा। हम अल्लाह तआला से प्रश्न करते हैं कि वह हमें उन लोगों में से बनाये जो उस से डरते हैं और क़ियामत से भयभीत रहते हैं, तथा हमारे पैगंबर और ईश्दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अल्लाह तआला की शांति अवतरित हो।

स्रोत: शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद