शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
हिन्दी

क्या उसके लिए जायज़ है कि वह केवल उम्रा का एहराम बांधे फिर मक्का से हज्ज की नीयत करे?

प्रश्न

क्या यह जायज़ है कि एक मुसलमान केवल उम्रा करे, क्योंकि वह मीक़ात को पारकर आगे जाएगा और मक्का में रहेगा, और फिर अनिवार्य हज करेगा?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हाँ, मुसलमान के लिए यह जायज़ है कि वह मीक़ात से केवल उम्रा का एहराम बांधे, फिर जब उससे फारिग हो जाए तो हलाल हो जाए और मक्का में ठहरा रहे यहाँ तक कि ज़ुल-हिज्जा के महीने के आठवें दिन मक्का में अपने स्थान ले हज्ज का एहराम बांधे। इस हज्ज को तमत्तुअ (तमत्तो) हज्ज कहते हैं। क्योंकि उसने अपने सफ़र में (स्थायी तौर पर) एक उम्रा और एक हज्ज किया है। और उन दोनों के दरमियान एहराम (के प्रतिबंध) से हलाल हो गया है।

हज्ज तमत्तुअ यह है कि मनुष्य हज्ज के महीनों : शव्वाल, ज़ुल-क़ादा, और ज़ुल-हिज्जा के दस दिनों में उम्रा करे, फिर उसी वर्ष में हज्ज करे।

हज्ज तमत्तुअ करनेवाले पर मक्का में हदी का जानवर ज़बह करना अनिवार्य है, जिसे वहाँ के गरीबों को वितरित कर दिया जाएगा। यदि उसके पास हदी का जानवर खरीदने के लिए कीमत नहीं है तो तीन दिन हज्ज के दौरान रोज़ा रखे, और सात दिन अपने देश लौटने के बाद रोज़ा रखे। क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान हैः

فَمَنْ تَمَتَّعَ بِالْعُمْرَةِ إِلَى الْحَجِّ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ فَمَنْ لَمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلَاثَةِ أَيَّامٍ فِي الْحَجِّ وَسَبْعَةٍ إِذَا رَجَعْتُمْ تِلْكَ عَشَرَةٌ كَامِلَةٌ ذَلِكَ لِمَنْ لَمْ يَكُنْ أَهْلُهُ حَاضِرِي الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ [البقرة : 196] .

''जिसने उम्रा से लेकर हज्ज तक लाभ उठाया तो जो हदी (क़ुर्बानी का जानवर) उपलब्ध हो उसकी क़ुर्बानी करे। फिर जो व्यक्ति (क़ुर्बानी का जानवर) न पाए तो वह तीन रोज़े हज्ज के दिनों में रखे और सात रोज़े उस समय जब तुम घर लौट आओ। ये पूरे दस (रोज़े) हैं। यह हुक्म उस व्यक्ति के लिए है जिसके घर वाले मस्जिदे हराम के पास न रहते हों।'' (सूरतुल बक़रा : 196).

तथा मनुष्य के लिए जायज़ है कि वह केवल हज्ज करे, इस प्रकार कि वह मीक़ात के पास हज्ज की नीयत करे, उम्रा की नीयत न करे और अपने एहराम पर (ज़ुल-हिज्जा के महीने के) आठवें दिन तक बना रहे, फिर अपना हज्ज पूरा करे, और उसके ऊपर हदी (क़ुर्बानी) अनिवार्य नहीं है।

इसी तरह जायज़ है कि वह क़िरान हज्ज करे, इस तरह कि वह मीक़ात से हज्ज और उम्रा की एकसाथ नीयत करे। फिर जब मक्का पहुंचे तो तवाफ़ और सई करे और हलाल न हो, बल्कि अपने एहराम पर बना रहे यहाँ तक कि हज्ज के कार्य पूरे कर ले, और उस पर हज्ज तमत्तुअ करनेवाले के समान हदी अनिवार्य है।

हज्ज के ये तीनों प्रकार सब के सब जायज़ हैं, लेकिन इनमें सबसे अफ़ज़ल (सर्वश्रेष्ठ) तमत्तुअ (हज्ज) है।

इसका उल्लेख प्रश्न संख्याः (31822) और (27090) के जवाब में किया जा चुका है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर