शुक्रवार 7 जुमादा-1 1446 - 8 नवंबर 2024
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एक महिला उम्रा करने के बाद अपने बाल काटना भूल गई और उसके पति ने उसके साथ संभोग कर लिया।

प्रश्न

मैं अपनी पत्नी के साथ उम्रा करने के लिए मक्का में था। जब हम घर लौटे तो हमारे बीच संभोग हुआ। तब मेरी पत्नी को याद आया कि वह एहराम से हलाल नहीं हुई है। अब क्या हुक्म हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सिर मुंडवाना या बाल कटवाना उम्रा के वाजिबात (अनिवार्य कर्तव्यों) में से एक है, और जो इसे भूल जाता है, वह इसे याद आने पर करेगा। अगर उसने इससे पहले एहराम की अवस्था में निषिद्ध चीज़ों में से कोई चीज़ अज्ञानता में या भूलकर कर ली, तो विद्वानों की सबसे सही राय के अनुसार, उसे कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है।

इसके आधार पर, आपकी पत्नी के लिए अनिवार्य है कि वह अब अपने बाल काटे, और इस प्रकार वह अपने 'उम्रा' के एहराम से बाहर निकल जाएगी। तथा जो संभोग हुआ है, उसके बारे में उसे कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है; क्योंकि उसने ऐसा केवल इसलिए किया था; क्योंकि वह सोचती थी कि वह उम्रा से हलाल हो गई।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने एक ऐसी महिला के बारे में जिसने अपना उम्रा पूरा नहीं किया, फरमाया :

“जहाँ तक ​​एहराम के दौरान निषिद्ध चीजों में से उसने जो कुछ किया है, और हम मान लें कि उसके पति ने उसके साथ संभोग किया है – और हज्ज या उम्रा के अनुष्ठान में संभोग करना एहराम की स्थिति में वर्जित चीजों में से सबसे गंभीर है - तो उसपर कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है; क्योंकि वह (हुक्म से) अनजान थी। तथा हर वह व्यक्ति जो एहराम के निषेधों में से कोई निषेध अज्ञानता से, या भूलकर, या मजबूर किए जाने पर करता है, तो उसपर कुछ भी नहीं है।” (यानी कोई फ़िद्या अनिवार्य नहीं है)।

“मजमूओ फतावा इब्ने उसैमीन” (21/351) संक्षेप में।

कुछ विद्वानों का मत है कि सई करने के बाद और सिर मुँडवाने या बाल कटवाने से पहले संभोग करने में फ़िद्या अनिवार्य है, भले ही वह भूल गया हो या हुक्म (नियम) से अनजान था। लेकिन यह तकलीफ़ के फ़िद्या की तरह एक वैकल्पिक फ़िद्या है, अर्थात् ऐसे ही है जैसे किसी ने जूँ और इसी तरह की चीज़ों से तकलीफ़ पहुँचने के कारण अपना सिर मुँडवा लिया, जैसा कि अल्लाह के इस कथन से पता चलता है :

فَمَنْ كَانَ مِنْكُمْ مَرِيضًا أَوْ بِهِ أَذًى مِنْ رَأْسِهِ فَفِدْيَةٌ مِنْ صِيَامٍ أَوْ صَدَقَةٍ أَوْ نُسُكٍ

البقرة : 196

“फिर तुममें से जो व्यक्ति बीमार हो या उसके सिर में कोई तकलीफ़ हो (और उसके कारण सिर मुँडा ले), तो रोज़े या सदक़ा या क़ुर्बानी में से कोई एक फ़िदया है।” (सूरतुल बक़रह :196)

अतः वह तीन दिन रोज़ा रखे, या छह ग़रीबों को खाना खिलाए; प्रत्येक ग़रीब को आधा सा’ गेहूँ या अन्य मुख्य खाद्यपदार्थ देकर, या एक भेड़-बकरी ज़बह करे, जिसे हरम (मक्का) के गरीबों के बीच वितरित कर दिया जाए।

देखें : “शर्ह मुंतहा अल-इरादात” (1/556).

यदि आपकी पत्नी सावधानी का पक्ष अपनाते हुए इस दृष्टिकोण का पालन करती है, तो यह अच्छा है। इसलिए वह तीन दिन रोज़े रखेगी, या छह गरीबों को खाना खिलाएगी या एक बकरी ज़बह करेगी, जो हरम के गरीबों को दे दी जाएगी।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर