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एक ईसाई इस्लाम में रुचि रखता है

प्रकाशन की तिथि : 07-01-2016

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प्रश्न

मुझे नहीं पता यदि आप मेरी सहायता कर सकते हैं, मैं वर्तमान समय में स्कूल में इस्लाम का अध्ययन करता हूँ। और मुझे इस धर्म में रूचि हो गई है। मुझे नहीं पता कि आप लोग मुझे ई-मेल के द्वारा इस धर्म के बारे में मेरे लिए अपने विचार स्पष्ट कर सकते हैं, और मेरे लिए उन कारणों की व्याख्या कर सकते हैं जो मेरे लिए इस्लाम में प्रवेश करना अनिवार्य कर देते हैं। मुझे संदेह नहीं कि आपके पास मुसलमानों की ओर से ढेर सारे प्रश्न आते हैं। लेकिन यदि आप मुझे ई-मेल करने के लिए एक पल का भी समय निकाल सकते हैं, तो मैं आपका अति आभारी हूँगा।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

आपके इस अच्छे पत्र पर आपका धन्यवाद, आपका अनुरोध स्वीकार्य है और हमें उसका उत्तर देते हुए खुशी हो रही है, खासकर हमें इससे खुशी हुई कि आप इस्लाम धर्म की ओर आकर्षण और उसमें रूचि रखते है। जहाँ तक आपके प्रश्न का संबंध है तो यदि आप इस्लाम धर्म और उसके अलावा के बीच तुलना करें, तो आपको इस्लाम की, उसकी व्यापकता में, उसकी दृढ़ता में, उसके निपटारों और समाधानों में, उसके लाए हुए समाचारों की प्रामाणिकता (सच्चाई) और उसमें आए हुए प्रावधानों (नियमों) के न्याय में, अन्य सभी धर्मो पर (उसकी) श्रेष्ठता स्पष्ट हो जायेगी, (कृपया प्रश्न संख्या : (219) और (3143) देखें) मात्र यही श्रेष्ठता इस धर्म को स्वीकार करने के कारण के तौर पर पर्याप्त है। जबकि मामला यह है कि यह धर्म सभी धर्मों को निरस्त करनेवाला है और अल्लाह सर्वशक्तिमान अपने बंदों से इसके अलावा कोइ अन्य धर्म स्वीकार नहीं करेगा। जैसाकि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने मानव पर उतारी हुई अपनी अंतिम किताब में अपने इस कथन के द्वारा उल्लेख किया है :

وَمَنْ يَبْتَغِ غَيْرَ الإِسْلامِ دِينًا فَلَنْ يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الآخِرَةِ مِنْ الْخَاسِرِين

سورة آل عمران: 85

''और जो कोई इस्लाम के अलावा कोई अन्य धर्म तलाश करे, तो अल्लाह तआला उससे कदापि स्वीकार नहीं करेगा। और वह परलोक में घाटा उठाने वालों में से होगा।’’ (सूरत आल इम्रान : 85)

इस विषय के संबंध में अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्या : (4548) और (4524) और (6389) और (2585) और (4319) देखें।

तथा आपका एक प्रश्नकर्ता के रूप में, इस साइट का दर्शन करने और इससे लाभान्वित होने के रूप में, हर समय स्वागत है।

स्रोत: शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद