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पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्मदिवस का जश्न, बच्चों के जन्मदिन जश्न, मदर-डे, वृक्ष सप्ताह तथा राष्ट्रदिवस का जश्न मनाने के बारे में शरीअत (इस्लामी शास्त्र) का हुक्म क्या है ?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्वप्रथमः
ईद (त्योहार, अवसर) नाम है उस सभा (बैठक) का जो यथापद्वति या तो प्रति वर्ष या प्रति महीना या प्रति सप्ताह इत्यादि, लौटता (बार-बार आता) रहता है, इस प्रकार ईद कई चीज़ों को सम्मिलित हैः 1- एक ऐसा दिन जे बार-बार लौटकर आता है जैसेः ईद का दिन तथा जुमा का दिन। 2- उस दिन में लोगों का इकट्ठा होना। 3- उस दिन में की जाने वाली उपासनायें (इबादतें) और स्वभाविक कार्य।
द्वितीयः
उपर्युक्त कार्यों में से जिसका उद्देश्य पुन्य (अज्र व सवाब) प्राप्त करने के लिए पूजा व उपासना करना और अल्लाह की निकटता प्राप्त करना या सम्मान करना है, या उसमें अज्ञानता काल के लोगों या उन्हीं की तरह अन्य काफिरों के समुदायों की समानता पायी जाती है, तो वह एक नवाचारित (मनगढ़ंत) निषिध बिद्अत है और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस कथन के अंतरगत आता हैः
"जिस ने हमारी इस शरीअत में कोई ऐसी चीज़ ईजाद की जिसका इस से कोई संबंध नहीं है तो उसे रद्द (अस्वीकृत) कर दिया जाये गा।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 267) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1718) ने रिवायत किया है।
इसका उदाहरण आप सल्लल्लाहु आलैहि व सल्लम के जन्मदिवस का जश्न, मदर-डे और राष्ट्रदिवस का जश्न मनाना है। क्योंकि पहले (अर्थात मीलादुन्नबी समारोह) में एक ऐसी इबादत का अविष्कार पाया जाता है जिसकी अल्लाह तआला ने अनुमति नहीं दी है, इसी प्रकार इस में ईसाईयों और उन्हीं की तरह दूसरे काफिरों की समानता पाई जाती है। तथा दूसरे और तीसरे (अर्थात मदर-डे और राष्ट्रदिवस) के अंदर काफिरों की मुशाबहत (समानता) पाई जाती है।
और इसमें से जिसका मक़सद उदाहरण के तौर पर राष्ट्र की भलाई (हित) और उसके मामलों के नियंत्रण के लिए कार्यों को संगठित करना, पढ़ाई और कर्मचारियों की बैठक की तारीखों का संगठन इत्यादि है जिनका पूजा, उपासना, अल्लाह की निकटता प्राप्त करने और सम्मान करने से कोई संबंध नहीं है, तो यह स्वभाविक बिदअतों (नवाचार) में से है जो नबी सल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथनः ("जिस ने हमारी इस शरीअत में कोई ऐसी चीज़ ईजाद की जिसका इस से कोई संबंध नहीं है तो उसे रद्द (अस्वीकृत) कर दिया जाये गा।") के अंतर्गत नहीं आता है। अतः इसमें कोई पाप की बात नहीं है, बल्कि वह वैद्ध (धर्मसंगत) है। और अल्लाह तआला ही तौफिक प्रदान करने वाला (शक्ति का स्रोत) है, तथा अल्लाह तआला हमारे संदेष्टा मुहम्मद, आपके परिवाऱ एवं साथियों पर दया और शांति अवतिरित करे।
फतावा स्थायी समिति 3/59.