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एक व्यक्ति के लिए अपने माता-पिता पर खर्च करना कब अनिवार्य है?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
रिश्तेदारों - जैसे माता-पिता और बच्चों - पर खर्च करने के संबंध में मूल सिद्धांत (मूल प्रमाण) क़ुरआन, सुन्नत और विद्वानों की सर्वसहमति है।
क़ुरआन से प्रमाण अल्लाह तआला का यह फरमान है :
وعلى المولود له رزقهن وكسوتهن بالمعروف [البقرة : 233].
“और बच्चे के पिता के ज़िम्मे परंपरा के अनुसार उन (औरतों) का खाना और उनका कपड़ा है।” (सूरतुल-बक़रह : 233)
तथा अल्लाह ने फरमाया :
وقضى ربك ألا تعبدوا إلا إياه وبالوالدين إحساناً [الإسراء : 23].
“और (ऐ बंदे!) तेरे पालनहार ने आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की इबादत न करो, तथा माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो।” (सूरतुल इसरा : 23)
माता-पिता के साथ एहसान (सद्व्यवहार) में उनकी आवश्यकता के समय उन पर खर्च करना भी शामिल है।
रही बात इज्मा' (विद्वानों की सर्वसहमति) की, तो इब्नुल-मुंज़िर ने कहा : “विद्वानों की इस बात पर सर्वसहमति हैं कि गरीब माता-पिता जिनके पास न तो कोई कमाई (आय) है और न ही धन, उनका भरण-पोषण बच्चे के धन में अनिवार्य है।”
खर्च के अनिवार्य होने के लिए यह शर्त है कि खर्च करने वाला मालदार (खर्च करने में सक्षम) हो, और जिसपर खर्च किया जा रा है वह तंगदस्त हो और उसे भरण-पोषण की आवश्यकता हो। और सामान्यतः इसपर सर्वसहमति है।