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एक आदमी पर रमज़ान के रोज़ों की क़ज़ा करना अनिवार्य है। क्या उसके लिए उनका अलग-अलग दिनों में रोज़ा रखना जायज़ है?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
“हाँ, उसके लिए अपने ऊपर अनिवार्य रोज़ों की अलग-अलग दिनों की क़ज़ा करना जायज़ है, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
وَمَنْ كَانَ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ
[سورة البقرة: 185].
“और जो बीमार हो या यात्रा पर हो, तो वह दूसरे दिनों में उसकी संख्या पूरी करे।” (सूरतुल बक़रा : 185)
अल्लाह महिमावान ने रोज़ों की क़ज़ा करने में निरंतरता की शर्त नहीं लगाई है।
और अल्लाह ही सामर्थ्य प्रदान करने वाला है। अल्लाह हमारे नबी मुहम्मद और उनके परिवार और साथियों पर दया और शांति अवतरित करे।” उद्धरण समाप्त हुआ।
शैक्षणिक अनुसंधान एवं इफ़्ता की स्थायी समिति।
शैख़ अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़... शैख़ अब्दुर्रज़्ज़ाक़ अफ़ीफ़ी... शैख़ अब्दुल्लाह बिन ग़ुदैयान... शैख अब्दुल्लाह बिन क़ऊद
“फतावा अल-लजनह अद-दाईमह लिल-बुहूस अल-इल्मिय्यह वल-इफ़्ता” (10/346)।