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''रमज़ान में तीस दिनों के लिए तीस दुआयें'' नामी पत्रक पर टिप्पणी

24-08-2014

प्रश्न 139822

कुछ वेबसाइट्स पर ”रमज़ान में तीस दिनों के लिए तीस दुआयें” के शीर्षक से एक प्रसिद्ध पत्रक प्रकट हुआ है। जिस में पहले दिन की दुआ यह है :

اَللّهُمَّ اجْعَلْ صِيامي فيهِ صِيامَ الصّائِمينَ وَ قِيامي فيِهِ قِيامَ القائِمينَ ، وَ نَبِّهْني فيهِ عَن نَوْمَةِ الغافِلينَ ، وَهَبْ لي جُرمي فيهِ يا اِلهَ العالمينَ ، وَاعْفُ عَنّي يا عافِياً عَنِ المُجرِمينَ

दूसरे दिन की दुआ यह है :

اَللّهُمَّ قَرِّبْني فيهِ اِلى مَرضاتِكَ ، وَجَنِّبْني فيهِ مِن سَخَطِكَ وَنَقِماتِكَ ، وَ وَفِّقني فيهِ لِقِراءةِ آياتِِكَ ، بِرَحمَتِكَ يا أرحَمَ الرّاحمينَ

तीसरे दिन की दुआ यह है :

اَللّهُمَّ ارْزُقني فيهِ الذِّهنَ وَالتَّنْبيهِ ، وَباعِدْني فيهِ مِنَ السَّفاهَةِ وَالتَّمْويهِ ، وَ اجْعَل لي نَصيباً مِن كُلِّ خَيْرٍ تُنْزِلُ فيهِ ، بِجودِكَ يا أجوَدَ الأجْوَدينَ

तीसवें दिन की दुआ यह है :

أللّهُمَّ اجْعَلْ صِيامي فيهِ بالشُّكرِ وَ القَبولِ عَلى ما تَرضاهُ وَ يَرضاهُ الرَّسولُ مُحكَمَةً فُرُوعُهُ بِالأُصُولِ ، بِحَقِّ سَيِّدِنا مُحَمَّدٍ ، وَآلهِ الطّاهِرينَ ، وَ الحَمدُ للهِ رَبِّ العالمين

तो इस पत्रक को वितरित और प्रकाशित करने के लिए इस पर भरोसा करने का क्या हुक्म है, और रमज़ान में इसके द्वारा दुआ करने का हुक्म क्या है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

”दुआ ही इबादत है।” जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है, इसे तिर्मिज़ी वगैरह ने सहीह इसनाद से रिवायत किया है, और इबादतों के अंदर बुनियादी सिद्धांत ”तौक़ीफ” और निषेद्ध है (अर्थात जो शरीअतसे प्रमाणित है उसी की सीमा पर ठहर जाना, और किसी भी इबादत का करना निषेद्धहै यहाँ तक कि शरीअत से उसका प्रमाण आ जए). अतः स्वयं कोई इबादत ईजाद कर लेना, या उसे किसी समय या अवसर के साथ जोड़ देना जायज़ नहीं है, सिवाय इसके कि शरीअत सेउस पर कोई प्रमाण मौजूद हो।

अतः किसी भी व्यक्ति के लिएजायज़ नहीं है कि वह लोगों के लिए ऐसी दुआयें निर्धारित करे जिन्हें वे विशिष्ट अवसरोंपर पढ़ें।

तथा – इस बारे में – प्रश्नसंख्या : (21902) और (27237) के उत्तर देखें।

रमज़ान में दुआ करने की अभिरूचिदिलाई गई है, परंतु यह अभिरूचि किसी आदमी के लिए इस बात की अनुमति नहींप्रदान करती है कि वह अपनी ओर से दुआयें अविष्कार करे, और उसे किसी निर्धारित समय के साथ विशिष्ट कर दे, मानो कि वे नबी सल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम की दुआयें हैं। बल्कि मुसलमान किसी भी समय में और जो भी शब्द उसके लिए आसानहों उनके द्वारा दुनिया व आखिरत की जिस भलाई के लिए भी चाहे दुआ करेगा।

तथा इसी के समान : वह भी हैजिससे विद्वानों ने बचने की चेतावनी दी है, जो जनसाधारण के यहाँ प्रसिद्ध है कि वे हज्ज और उम्रा में, तवाफ या सई के हर चक्कर के लिए निर्धारित दुआ विशिष्ट कर रखे हैं।

शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाहने फरमाया :

”इस तवाफ़ में, और न ही इसके अलावा अन्य तवाफ में, और न ही सई में : कोई विशिष्टज़िक्र,तथा कोई विशिष्ट दुआ अनिवार्य नहीं है। रही बात उस चीज़की जिसे कुछ लोगों ने आविष्कार कर लिया है कि वे तवाफ़ या सई के हर चक्कर को कुछ विशिष्टअज़कार या विशिष्ट दुआओं के साथ विशिष्ट कर लिया है : तो इसका कोई आधार नहीं है, बल्कि जो भी ज़िक्र व दुआ आसान हो काफी है।

”फतावा शैख इब्ने बाज़” (16/61,62)

हर चक्कर की कोई निर्धारितदुआ नहीं है, बल्कि हर चक्कर को किसी निर्धारित दुआ के साथ विशिष्टकरना : बिदअतों में से है ; क्योंकि यह नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम से वर्णित नहीं है। बल्कि अधिक से अधिक जो वर्णित है वह हज्र-अस्वद कोस्पर्श करते समय ‘अल्लाहु अक्बर’ कहना, तथा यमानी कोने और हज्र अस्वदके बीच :

رَبَّنَا آَتِنَا فِي الدُّنْيَاحَسَنَةً وَفِي الآخرة حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ[البقرة :201].

पढ़ना है। रही बात शेष चक्करकी : तो वह सामान्य ज़िक्र, क़़ुरआन की तिलावत, और दुआ में बितायेगा, यह किसी चक्कर के साथ विशिष्टनहीं है।

”मजमूओ फतावा शैख इब्ने उसैमीन”(22/336).

एक और बात :

यह है कि अंतिम दिन की दुआमें ऐसी चीज़ आई है जो बुरी (आपत्तिजनक) और शरीअत के विरूध है, और वह यह कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के हक़ (अधिकार), और आप के अह्ले बैत के अधिकार के द्वारा दुआ के अंदर वसीला पकड़ा गया है।

दुआ के अंदर इस प्रकार के वसीलापकड़ने के बिदअत होने और उसके बारे में विद्वानों के कथनों का वर्णन : प्रश्न संख्या:(125339) के उत्तर में हो चुका है, सो उसे देखना चाहिए।

अतः मुसलमान को चाहिए कि उसपत्र को प्रकाशित करने में भाग न ले, बल्कि उसे चाहिए कि वह अपनीशक्ति भर लोगों को उससे सावधान रहने की चेतावनी दे।

तथा मुसलमान को अचछी तरह जानलेना चाहिए कि बिदअत के अंदर कोई भलाई नहीं है कि मुसलमान उसके द्वारा अपने पालनहारकी निकटता प्राप्त करे, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने फरमाया है : ”हर बिदअत पथ-भ्रष्टता है।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या: 867) ने रिवायतकिया है।

तथा धर्म के अंदर बिदअतें आविष्कारकरने के निषेद्ध में प्रमाणित हदीसों और उससे सावधान करने के बारे में विद्वानों केकथनों को : प्रश्न संख्या: (118225) और (864) के उत्तरों में देखें।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिकज्ञान रखता है।

रोज़े के मसाईल बिद्अत
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