हम आशा करते हैं कि आप साइट का समर्थन करने के लिए उदारता के साथ अनुदान करेंगे। ताकि, अल्लाह की इच्छा से, आपकी साइट – वेबसाइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर - इस्लाम और मुसलमानों की सेवा जारी रखने में सक्षम हो सके।
अगर मैंने कुछ पैसे उधार लिए, लेकिन इससे पहले कि मैं उसे उस व्यक्ति को लौटाता जिससे मैंने उसे उधार लिया था, उसने मुझसे अपने लिए कुछ खरीदने के लिए कहा और यह कि वह मुझे बाद में भुगतान करेगा, तो क्या मैं, उसके मुझे पैसे का भुगतान करते समय, उससे कह सकता हूँ कि उसे ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि जो मैंने उसके लिए खरीदा है वह उसके बदले में है जो मैंने उससे क़र्ज़ लिया था, भले ही मैंने उससे जो उधार लिया था वह उससे कम है जो उसपर मुझे भुगतान करना हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
ऋण देना उपकार करने और अनुदान देने के अनुबंधों में से एक है और ऋणदाता के लिए किसी लाभ की शर्त लगाना या उसके लिए लाभ की प्राप्ति पर मिलीभगत करना अनुमेय नहीं है। विद्वानों ने सर्वसम्मति से इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि प्रत्येक ऋण जो लाभ लाता है, वह सूद (रिबा) है।
आपने जिस बारे में प्रश्न किया है उसमें दो चीज़ें शामिल हैं :
पहली : आपका उसके लिए कुछ खरीदना। यदि आपको इसके लिए कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ता है, या उधार लेने से पहले यह रिवाज था कि आप उसके लिए चीज़ें खरीदते थे, तब इसमें कोई समस्या नहीं है। लेकिन अगर इसके लिए कुछ लागत की आवश्यकता होती है और आमतौर पर इसे करने लिए कुछ भुगतान करना पड़ता है, और उससे उधार लेने से पहले आप दोनों के बीच ऐसा करने का रिवाज नहीं था, तो आपके लिए इसे मुफ्त में करना जायज़ नहीं है। क्योंकि यह ऋण से निष्कर्षित होने वाला लाभ होगा, जो कि रिबा (सूद) है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है।
उन्होंने “ज़ादुल-मुस्तक़्ने’” में कहा : “यदि वह ऋण का भुगतान करने से पहले अपने ऋणदाता को कुछ अनुदान देता है, जो वह आमतौर पर नहीं दिया करता था, तो यह अनुमेय नहीं है। सिवाय इसके कि वह [यानी ऋणदाता] उसे उसका बदला देने [अर्थात् उसी के समान कुछ लौटाने] का इरादा रखता हो, या उसे उसके क़र्ज से काट दे।”
दूसरी चीज़ : आप अपने ऊपर अनिवार्य ऋण से अधिक राशि को उसे दान करना चाहते हैं। तो इस अनुदान में कोई आपत्ति की बात नहीं है अगर ऋण में इसकी शर्त नहीं निर्धारित की गई थी। इसका प्रमाण यह हदीस है जिसे बुखारी (हदीस संख्या : 2393) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : एक आदमी का नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर एक निश्चित उम्र का ऊँट बक़ाया था। वह व्यक्ति नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास उसे माँगने के लिए आया। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : “उसे (ऊँट) दे दो।” सहाबा ने उसी उम्र के ऊँट को तलाश किया, लेकिन उन्हें एक ऐसा ही ऊँट मिला जो उसके ऊँट से बेहतर उम्र का था। इसपर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : “उसे वही दे दो। तुममें सबसे अच्छा व्यक्ति वह है जो क़र्ज चुकाने में सबसे अच्छा है।”
इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने कहा : “यदि वह उसे बिना किसी शर्त के सामान्य रूप से उधार देता है, तो यदि वह (उधारकर्ता) उसे मात्रा, या गुणवत्ता में उससे बेहतर, या उससे कमतर वापस भुगतान करता है, उनकी परस्पर सहमति से, तो यह अनुमेय है... इब्ने उमर, सईद इब्नुल-मुसैयिब, हसन, नखई, शा’बी, ज़ोहरी, मकहूल, क़तादा, मालिक, शाफेई और इसहाक़ ने इसकी रुख़्सत (रियायत) दी है।
तथा इसलिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक युवा ऊँट को उधार लिया और उससे बेहतर वापस लौटाया। और आपने फरमाया : “तुममें से सबसे अच्छा वह है जो क़र्ज चुकाने में सबसे अच्छा है।” (बुख़ारी व मुस्लिम) बुखारी के शब्द ये हैं : “तुममें सर्श्रेष्ठ वह है जो क़र्ज़ चुकाने में सबसे अच्छा है।” और क्योंकि आपने उस अतिरिक्त राशि को ऋण के मुआवजे के रूप में नहीं बनाया, न ही इसे प्राप्त करने का साधन, न ही अपने ऋण का भुगतान करने के लिए, इसलिए यह जायज़ हो गया, जैसे कि यह ऋण नहीं था ...
अगर कोई आदमी क़र्ज चुकाने में अच्छा होने के लिए जाना जाता है, तो उसे उधार देना मकरूह नहीं है। क़ाज़ी ने कहा : इसमें एक और राय है, कि यह मकरूह है। क्योंकि वह उसकी अच्छी आदत की लालच करता है। लेकिन यह विचार सही नहीं है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़र्ज चुकाने में अच्छा होने में मशहूर थे। तो क्या किसी के लिए यह कहना उचित है कि आपको उधार देना मकरूह है। तथा यह बात भी है कि जो ऋण चुकाने में अच्छा होने के लिए जाना जाता है, वह लोगों में सबसे अच्छा है और सर्वश्रेष्ठ है, और वह लोगों में इस बात का सबसे योग्य है कि उसकी ज़रूरत पूरी की जाए, उसके अनुरोध का जवाब दिया जाए और उसके संकट को दूर किया जाए। इसलिए वह मकरूह नहीं हो सकता। बल्कि केवल सशर्त वृद्धि से मना किया जाएगा।”
“अल-मुग़्नी” (4/212) से उद्धरण समाप्त हुआ।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।