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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :आप दोनों पर इस धन के द्वारा जिसे आप दोनों ने उधार लिया है, हज्ज करने में कोई आपत्ति की बात नहीं है, जबकि आपके पास सोना या उसके अलावा कोई अन्य चीज़ मौजूद है, जिसके द्वारा, अदायगी के दुर्लभ होने की स्थिति में, क़र्ज का भुगतान करना संभव है।
गिरवी रखना किताब व सुन्नत और इजमाअ (विद्वानों की सर्वसहमति) से जायज़ है।
और उसका उद्देश्य क़र्ज़ को सुदृढ़ करना है ; ताकि क़र्ज देनेवाला, क़र्ज़दार से अपने हक़ की अदायगी को सुनिश्चित कर सके।
अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَإِنْ كُنْتُمْ عَلَى سَفَرٍ وَلَمْ تَجِدُوا كَاتِبًا فَرِهَانٌ مَقْبُوضَةٌ فَإِنْ أَمِنَ بَعْضُكُمْ بَعْضًا فَلْيُؤَدِّ الَّذِي اؤْتُمِنَ أَمَانَتَهُ وَلْيَتَّقِ اللَّهَ رَبَّهُ [البقرة : 283]
''और यदि तुम सफ़र में हो और किसी लिखनेवाले को न पा सको, तो गिरवी रखकर मामला करो। फिर यदि तुम आपस में एक दूसरे से सन्तुष्ट हो, तो जिसे अमानत दी गई है उसे चाहिए कि वह उसे अदा कर दे और अल्लाह से डरता रहे, जो उसका रब (पालनहार) है।'' (सूरतुल बक़राः 283).
और इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है कि गिरवी सोने से हो, या चाँदी से या इसके अलावा अन्य धनों से हो, क्योंकि अल्लाह तआला का कथन ( (فَرِهَانٌ مَقْبُوضَةٌयानी ''गिरवी रख लिया करो'' सर्वसामान्य है।
स्थायी समिति के विद्वानों से प्रश्न किया गया :
हमारे पास एक दोस्त आता है, और उसके पास सोना है, वह एक धन राशि माँगता है, हम उसे धन राशि दे देते हैं और धन राशि के बदले में सोना ले लेते हैं यहाँ तक कि वह भुगतान कर दे। तो इसका क्या प्रावधान है?
तो समिति के विद्वानों ने उत्तर दिया : ''चाँदी में सोना, और सोना में चाँदी रहन (गिरवी) रखना जायज़ है।''
स्थायी समिति के फतावा (13/480) से समाप्त हुआ।
तथा समिति के विद्वानों से यह भी पूछा गया कि :
मेरे पास बिजली के उपकरणों को क़िस्तों पर बेचने के लिए एक संस्था है, और वह गिरवी रखने की विधि से है ; ग्राहक आता है और एक निर्धारित मूल्य पर मुझसे बिजली के सामान खरीदता है, तो मैं उससे सोने की गिरवी मांगता हूँ जो उस मूल्य के बराबर या उससे कुछ कम होता है। चुनाँचे वह मेरे पास अमानत रहता है यहाँ तक कि वह अपने ऊपर अनिवार्य सभी क़िस्तों का कुछ निर्धारित ज्ञात महीने के दौरान भुगतान कर दे। जब ग्राहक उन सभी क़िस्तों का उस अवधि में भुगतान कर देता है जिस पर समझौता किया गया है, तो मैं उसे पूरी गिरवी उसी तरह वापस कर देता हूँ जिस तरह कि मैं ने उससे प्राप्त किया था। तो क्या मैं जो तरीक़ा अपना रहा हूँ वही गिरवी का सहीह शरई तरीक़ा है?
तो उन्हों ने उत्तर दिया :
''आपका उस आदमी से, जो एक विलंबित समय के लिए क़र्ज़ के द्वारा कोई सामान खरीदता है, यह मुतालबा करना कि वह उस क़र्ज़ के बदले में उसके बराबर सोना या इसी तरह की कोई चीज़ गिरवी रखे, शरीअत की दृष्टि से जायज़ है ; क्योंकि गिरवी रखना क़ुरआन, हदीस और इजमाअ (विद्वानों की सर्वसहमति) से साबित है। क्योंकि गिरवी (रहन) की वास्तविकता क़र्ज़ को किसी ऐसी चीज़ के द्वारा सुदृढ़ करना है जिसका शरीअत की दृष्टि से बेचना जायज़ हो, ताकि यदि क़र्ज़दार से क़र्ज़ की आपूर्ति दुर्लभ हो जाए, तो रहन (गिरवी) या उसकी क़ीमत से क़र्ज़ की आपूर्ति की जा सके। लेकिन आपके ऊपर रहन की रक्षा करना अनिवार्य है ; क्योंकि वह आपके पास अमानत है, और जब रहन रखनेवाला अपने ऊपर अनिवार्य क़र्ज़ का भुगतान न करे, या रहन को बेचकर आपको उसकी क़ीमत से भुगतान न करे ; तो उसको बेचने और उससे आपका हक़ लेने के लिए शरई अदालत की तरफ लौटा जायेगा।''
''फतावा स्थायी समिति'' (11/140-141) से अंत हुआ।
तथा रहन (गिरवी) की वैधता की तत्वदर्शिता और रहस्य जानने के लिए प्रश्न संख्याः (132648) का उत्तर देखें।
दूसरा :
अगर गिरवी रखा हुआ सोना निसाब (अर्थात ज़कात अनिवार्य होने की न्यूनतम मात्रा) को पहुँच जाए, या आपके पास कोई दूसरा सोना हो जिसके साथ मिलकर वह निसाब को पहुँच जाए, तो उसपर साल बीत जाने पर उसमें ज़कात अनिवार्य है, और उसका क़र्ज के बदले में गिरवी रखा हुआ होना उसमें ज़कात अनिवार्य होने में रूकावट नहीं है ; क्योंकि वह उसका पूरी तरह से मालिक है।
इसके लिए प्रश्न संख्या : (99311) का उत्तर देखें।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।