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जब मैं छोटी थी तो मैं ने अपने परिवार वालों के साथ विदेश का सफर किया, यात्रा के दौरान हमें सुअर तत्व युक्त बिस्कुट दिया गया। जब मेरी मां को इस का पता चला तो उन्हों ने हमें खाने से रोक दिया। जैसाकि मुझे याद आ रहा है कि हम ने अपने हाथ और मुँह पानी और मिट्टी से (एक बार मिट्टी समेत सात बार) नहीं धुले थे, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आदेश है कि जब कोई व्यक्ति सुअर या उस का कोई भाग छू लेने पर करे। कुछ वर्षों के बाद मैं अपने देश से बाहर थी और गलती से पोर्क खा लिया और अपने मुँह को पानी और मिट्टी से नहीं धोया। ये दोनों मामले कुछ वर्षों पहले पेश आये थे। मेरे मुँह या हाथ पर सुअर का कोई प्रभाव (स्वाद), या गंध, या रंग बाक़ी नहीं था, तो क्या अब ज़रूरी है कि हम उन्हें धुल लें ? मुझे भय है कि इन दोनो मामलों के कारण अल्लाह हमारी नमाज़ को स्वीकार नहीं करेगा। कृप्या इसका स्पष्टीकरण करें।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
बिना जाने-बूझे (अनजाने में) सुअर का मांस खा लेने में आप पर कोई गुनाह नहीं है, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
"तुम से भूल चूक में जो कुछ हो जाए उस में तुम्हारे ऊपर कोई पाप नहीं, किन्तु पाप वह है जिसका तुम हृदय से इरादा करो।" (सूरतुल अहज़ाब: 5)
तथा पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म का फरमान है :
"अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत से गलती, भूल-चूक और जिस पर वह बाध्य (मजबूर) किए गए हों, क्षमा कर दिया है।" (इब्ने माजा हदीस नं.: 2043, अल्बानी ने इसे सहीह कहा है)
मुसलमान जो कुछ भी खाता पीता है उसमें उसे सावधानी, सतर्कता और एहतियात से काम लेना चाहिए विशेष कर जब वह गैर-इस्लामी देश में हो, जहाँ के लोग अशुद्ध और अपवित्र चीजें खाते हैं।
जहाँ तक सुअर की नापाकी से पवित्रता हासिल करने की विधि का प्रश्न है, तो कुछ धर्म शास्त्री इस बात की ओर गए हैं कि कुत्ता पर क़ियास करते (अनुमान लगाते) हुए उसे सात बार धोया जायेगा, जिनमें एक बार मिट्टी से होगा।
लेकिन सहीह बात यह है कि सुअर की नापाकी में एक बार ही धुल लेना पर्याप्त है, इमाम नववी रहिमहुल्लाह मुस्लिम की शरह में कहते हैं : (अधिकतर उलमा इस बात की ओर गए हैं कि सुअर को सात बार धुलने की आवश्यकता नहीं है, और यही इमाम शाफेई का भी मत है, और प्रमाण की दृष्टि से यही मज़बूत़ है।)
शैख उसैमीन रहिमहुल्लाह ने इसी को राजेह (उचित) ठहराया है, जैसाकि वह अश्शर्हुल मुम्ते (1/495) में कहते हैं :
"फुक़हा रहिमहुमुल्लाह ने सुअर की नापाकी को कुत्ते की नापाकी से संबंधित किया है ; क्योंकि यह कुत्ते से भी अधिक अशु़द्ध और गंदा होता है, अत: यह इस हुक्म के अधिक योग्य है।
लेकिन यह एक कमज़ोर क़ियास है, क्योंकि सुअर का वर्णन कु़रआन में हुआ है, तथा यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के समय काल में भी मौजूद था, और कहीं भी उसे कुत्ते से संबंधित किए जाने का उल्लेख नही किया गया है। अत: सहीह यही है कि उसकी नापाकी उसके अतिरिक्त अन्य चीज़ों की नापाकी के समान है, अत: जिस प्रकार दूसरी नापाक चीज़ों को धोया जाता है उसी के समान इसे भी धोया जायेगा।"
तथा प्रश्न संख्या (22713) का उत्तर देखिये।
सहीह बात यह है कि अन्य दूसरी नापाकियों के धुलने के विषय में केवल इतना काफी है कि नापाकी दूर हो जाये, इसके लिए किसी निर्धारित संख्या की शर्त नहीं है।
सुअर छूने से पवित्रता हासिल करने की विधि के बारे में जो भी कथन (मत) हो, लेकिन अब आप लोगों पर अपने शरीर का कुछ भी भाग धुलना ज़रूरी नहीं है, और न ही इसका आप की नमाज़ पर कोई प्रभाव ही पड़ता है।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखने वाला है।