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दुआ और क़ुरआन का पाठ करने के लिए इकट्ठा होने का हुक्म

07-01-2018

प्रश्न 22722

हमारे विश्वविद्यालय के नमाज़-स्थल में दुआ और बैठक के लिए इकट्ठा होने के विषय में विवाद पैदा हो गया, जहाँ उपस्थित व्यक्तियों पर क़ुरआन के पारे वितरित किए जाते हैं और उनमें से प्रत्येक व्यक्ति उसी समय एक-एक पारा पढ़ता है यहाँ तक कि पूरे क़ुरआन का पाठ कर लिया जाता है। फिर वे लोग किसी निर्धारित उद्देश्य जैसे उदाहरण के लिए परीक्षाओं में सफलता के लिए दुआ करते हैं। प्रश्न यह है कि क्या इस प्रार्थना का तरीक़ा शरीयत में वर्णित हैॽ मुझे उम्मीद है कि आपका उत्तर क़ुरआन, हदीस और पूर्वजों के इज्माअ (सर्वसम्मत) के द्वारा समर्थित होगा।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

इस प्रश्न में दो मुद्दे शामिल हैं :

पहला:

क़ुरआन को पढ़ने के लिए एकत्रित होने का हुक्म, इस प्रकार कि प्रत्येक उपस्थिति व्यक्ति एक ही समय में क़ुरआन का एक-एक पारा लेता है यहाँ तक कि प्रत्येक आदमी उस पारे का पूरा पाठ कर लेता है जो उसके पास होता है।

तो इसका उत्तर वह है जो स्थायी समिति के फत्वा (2/480) में दिया गया है, जो निम्नानुसार है :

(सबसे पहले : क़ुरआन का पाठ और उसका अध्ययन करने के लिए इकट्ठा होना, इस प्रकार कि उनमें से एक पाठ करे और शेष लोग सुनें और जो कुछ उन्हों ने पढ़ा हो उसका अध्ययन करें और उसके अर्थ को समझें, यह धर्मसंगत और अल्लाह की निकटता का कार्य है जिसे अल्लाह तआला पसंद करता है और उसपर व्यापक बदला देता है। इमाम मुस्लिम ने अपने सहीह में और अबू दाऊद ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से सि रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "जो लोग भी अल्लाह के घरों में से किसी घर में इकट्ठे होकर अल्लाह तआला की पुस्तक (क़ुरआन) का पाठ करते हैं, और उसे आपस में एक दूसरे को समझाते और अध्ययन करते हैं, तो उनपर शांति उतरती है, दया उन्हें ढाँप लेती है, फरिश्ते (स्वर्गदूत) उन्हें चारों ओर से घेर लेते हैं, और अल्लाह तआला उनका चर्चा उन लोगों के बीच करता है जो उसके साथ हैं।"

क़ुरआन को पूर्ण रूप से पढ़कर ख़त्म करने के बाद दुआ करना भी धर्मसंगत है, लेकिन सदैव ऐसा नहीं किया जाएगा और न ही उसमें किसी निश्चित सूत्र (विशिष्ट शब्द) का (इस तरह) पालन किया जाएगा कि मानो वह एक अनुकरणीय सुन्नत है। क्योंकि यह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित नहीं है, बल्कि इसे कुछ सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने किया है।

इसी तरह क़ुरआन के पठन में भाग लेने वालों को भोजन के लिए आमंत्रित करने में कुछ भी गलत नहीं है, जब तक कि इसे हर पठन के बाद आदत न बना लिया जाए।

दूसरी बात यह है की :

सभा में उपस्थित होने वालों को क़ुरआन के पारे देना ताकि उनमें से प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए क़ुरआन का एक ह़िज़्ब (अंश) पढ़े, इसे उनमें से प्रत्येक की ओर से आवश्यक रूप से क़ुरआन को खत्म करना (पूरा क़ुरआन पढ़ना) नहीं समझा जाएगा।

उन लोगों का केवल तबर्रुक (आशीर्वाद) प्राप्त करने के प्रयोजन के लिए क़ुरआन पढ़ने का इरादा, इसमें कमी पाई जाती है, क्योंकि क़ुरआन पढ़ने का प्रयोजन अल्लाह तआला की निकटता चाहना, क़ुरआन याद करना, उसके अर्थ में विचार करना, उसके प्रावधानों को समझना, उससे सबक सीखना, अज्र व सवाब (पुण्य) की प्राप्ति, उसके पठन पर ज़ुबान का प्रशिक्षण ... और इनके अलावा अन्य लाभ हैं। और अल्लाह तआला ही तौफ़ीक़ प्रदान करनेवाला (शक्ति का स्रोत) है।)'' उद्धरण समाप्त हुआ।

दूसरा मुद्दा :

यह विश्वास रखना कि इस कार्य (उपर्युक्त ढंग के अनुसार क़ुरआन पढ़ने के लिए इकट्ठा होने) का दुआ के स्वीकार किए जाने में कोई प्रभाव है, इस बात का कोई सबूत ज्ञात नहीं है, अतः यह धर्मसंगत नहीं है। दुआ के स्वीकृति के कई कारण हैं जो सर्वज्ञात हैं, जिस तरह कि दुआ की स्वीकृति को रोकनेवाली कई प्रसिद्ध बाधाएं हैं। इसलिए दुआ करनेवाले व्यक्ति को चाहिए कि दुआ के स्वीकृति के कारणों को अपनाए और उसकी बाधाओं से दूर रहे तथा अपने पालनहार के प्रति अच्छा गुमान रखे, और अल्लाह तआला अपने बंदे के उसके प्रति गुमान के अनुसार होता है।

तथा प्रश्न संख्या (5113) देखें।

चेतावनीः सबूत और प्रमाण उस व्यक्ति से मांगा जाता है जो शरीअत के मुद्दों में से कोई मुद्दा साबित करना चाहता है। अन्यथा इबादत के कृत्यों के संबंध में बुनियादी सिद्धांत निषेध है यहाँ तक कि उसके वैध होने का प्रमाण (सबूत) सिद्ध हो जाए, जैसाकि विद्वानों ने इसे निर्धारित किया है। इसके आधार पर, उस विश्वास की अवैधता का प्रमाण और सबूत यह है कि उसके वैध होने को इंगित करनेवाला कोई प्रमाण नहीं है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक जानता है।

कुर्आन की विशेषता बिद्अत प्रार्थना (दुआ)
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