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हम इस बात को जानते है कि औरत के लिए क़ब्रिस्तान की ज़ियारत करना वर्जित है, किंतु हम उस औरत के बारे में क्या कहेंगे जो क़ब्रिस्तान की चहारदीवारी से गुज़री, जबकि वह अपने रास्ते में थी, और उसने क़ब्रों को देखा तो क्या वह वर्णित ज़िक्र (दुआ) को पढ़ेगी या उस से बाज़ रहेगी या वह क्या करेगी ?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
उसके लिए वर्णित दुआ (अस्सलामो अलैकुम अह्लद्दियारे मिनल-मोमिनीन वल-मुस्लिमीन, व-इन्ना इन्-शा-अल्लाहो बिकुम लाहिक़ून, नस्अलुल्लाहा लना व-लकुमुल आफियह) पढ़ने में कोई आपत्ति नहीं है, और उसके ऊपर कोई गुनाह नहीं है, क्योंकि उसने क़ब्रों की ज़ियारत का इरादा नहीं किया था और न ही वह क़ब्रिस्तान के अंदर गई, बल्कि वह बिना इरादे के उसके पास से गुज़री है।