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क़ुर्बानी से अभिप्राय क्या है? और क्या यह वाजिब (अनिवार्य) है या सुन्नत है?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
क़ुर्बानी :ईदुल अज़्हा के दिनों में अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ला की निकटता प्राप्त करने के लिए बहीमतुल अनआम (चौपाये जानवरों यानी, ऊंट, गाय, भेड़ या बकरी) में से जो जानवर ज़ब्ह (वध) किया जाता है उसी को क़ुर्बानी कहते हैं।
यह इस्लाम के प्रतीकों में से है जो अल्लाह तआला की किताब, उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत और मुसलमानों के इज्माअ (सर्वसहमति) से धर्मसंगत है।
अल्लाहकीकिताबसेप्रमाण:
1 – अल्लाह तआला का फरमान है :
(فَصَلِّ لِرَبِّكَ وَانْحَرْ)
‘‘तो तू अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ और क़ुर्बानी कर।‘’ (सूरतुलकौसरः 2)
2 – अल्लाह तआला ने फरमाया :
قُلْ إِنَّ صَلاَتِى وَنُسُكِى وَمَحْيَاىَ وَمَمَاتِى للَّهِ رَبِّ الْعَـلَمِينَ * لاَ شَرِيكَ لَهُ وَبِذَلِكَ أُمِرْتُ وَأَنَاْ أَوَّلُ الْمُسْلِمِينَ.
‘’आप कह दीजिए कि बेशक मेरी नमाज़ और मेरी सभी इबादतें और मेरा जीना और मेरा मरना सबसर्वसंसार के पालनहार अल्लाह के लिए है। उसका कोई शरीक (साझी) नहीं, मुझे इसी का हुक्म दिया गया है। और मैं सबसे पहला मुसलमान (आज्ञाकारी) हूँ।‘’ (सूरतुल अन्आम 162-163)
आयत में ‘नुसुक’ से अभिप्राय क़ुर्बानी है, यह सईद बिन जूबैर का कथन है। एक दूसरे कथन के अनुसार उससे अभिप्राय सभी इबादते हैं जिनमें क़ुर्बानी भी शामिल है, यह कथन अधिक व्यापक है।
3 – और अल्लाह तआला ने फरमाया :
[ وَلِكُلِّ أُمَّةٍ جَعَلْنَا مَنسَكًا لِّيَذْكُرُواْ اسْمَ اللَّهِ عَلَى مَا رَزَقَهُمْ مِّن بَهِيمَةِ الاَنْعَـامِ فَإِلَـهُكُمْ إِلَـهٌ وَاحِدٌ فَلَهُ أَسْلِمُواْ وَبَشِّرِ الْمُخْبِتِينَ ].
‘’और हर उम्मत (समुदाय) के लिए हम ने क़ुर्बानी का तरीक़ा निर्धारित किया है ताकि वे उन चौपाये जानवरों पर अल्लाह का नाम लें जो अल्लाह ने उन्हें प्रदान किए हैं। तुम सब का सच्चा पूज्य केवल एक ही है, तो तुम उसी के आज्ञाकारी बनकर रहो और विनम्रता अपनानेवालों को शुभ सूचना दे दीजिए।‘’ (सूरतुल हज्जः 34)
सुन्नत(हदीस)सेप्रमाण:
1 - सहीह बुखारी (हदीस संख्याः 5558) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 1966) में अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है, वह कहते हैं : (नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दो सफेद व काले रंग के भेड़ों की क़ुर्बानी की, उन्हें अपने हाथ से ज़ब्ह किया और ‘बिस्मिल्लाह, अल्लाहु अक्बर’ कहा और अपना पैर उनकी गर्दन पर रखा। )
2 – अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं : (नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीना में दस वर्ष रहे और हर वर्ष क़ुर्बानी करते रहे।) इसे अहमद (हदीस संख्याः 4935) और तिर्मिज़ी (हदीस संख्याः 1507) ने रिवायत किया है और शैख अल्बानी ने ‘’मिश्कातुल मसाबीह’’ (हदीस संख्याः 1475) में इसे हसन क़रार दिया है।
3 – उक़्बा बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने सहाबा के बीच क़ुर्बानी के जानवर वितरण किये तो उक़्बा के भाग में जज़आ (छह महीने का भेड़) आया, तो वह कहने लगे ऐ अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम), मेरे भाग में जज़आ आया है। आप ने फरमायाः तुम उसी की क़ुर्बानी करो।) इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5547) ने रिवायत किया है।
4 – बरा बिन आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ( जिस ने ईद की नमाज़ के बाद क़ुर्बानी किया तो उसकी क़ुर्बानी पूरी हो गई और उसने मुसलमानों की सुन्नत को पा लिया।) इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5545) ने रिवायत किया है।
मालूम हुआ कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्वयं क़ुर्बानी की है, और आप के सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने भी क़ुर्बानी की है, और आप ने बतलाया कि क़ुर्बानी मुसलमानों की सुन्नत यानी उनका तरीक़ा है।
यही वजह है कि क़ुर्बानी के धर्मसंगत होने पर मुसलमान एकमत हैं। जैसा कि कई एक विद्वानो ने उल्लेख किया है।
जबकि इस मुद्दे में उलमाकेबीचइख्तिलाफहैकि क्याक़ुर्बानीसुन्नतेमुअक्कदाहैयावाजिब (अनिवार्य)हैकिजिसकाछोड़नाजायज़नहींहै?
जम्हूर उलमा इस तरफ गए हैं कि क़ुर्बानी करना सुन्नते मुअक्कदा है। यह इमाम शाफई का मत, तथा इमाम मालिक और इमाम अहमद का प्रसिद्ध मत है।
जबकि दूसरे उलमा इस तरफ गये हैं कि क़ुर्बानी करना वाजिब (अनिवार्य) है। यह इमाम अबू हनीफा का मत, और इमाम अहमद से दो रिवायतों मे से एक यही है। और शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या ने भी इसी मत को इख्तियार किया है। वह कहते हैं : यही इमाम मालिक के मत में दो कथनों में से एक है या इमाम मालिक का ज़ाहिरी मत यही है।‘’ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह की पुस्तक ‘’अहकामुल उज़्हिया वज़्ज़कात’’ से समाप्त हुआ।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं : ‘’क़ुर्बानी का सामर्थ्य रखने वाले व्यक्ति पर क़ुर्बानी करना सुन्नते मुअक्कदा है। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह स्वयं अपनी ओर से और अपने घर वालों की ओर से क़ुर्बानी करे।‘’ फतावा इब्ने उसैमीन (2/661)