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क्या मुसलमान पर अनिवार्य ज़कात, जो कि (इस्लाम के) पाँच स्तंभों में से है, रमज़ान की ज़कात के अलावा हैॽ
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जी हाँ, वह ज़कात जो इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है, उस ज़कात के अलावा है, जो रमज़ान के रोज़े का अंत होने पर अनिवार्य होती है (जिसे ज़कातुल–फ़ित्र कहा जाता है)।
पहली धन की ज़कात है, जो केवल कुछ विशिष्ट प्रकार के धन में ही अनिवार्य होती है, जो ये हैं :
पहली : फसलें और फल
विद्वानों ने सर्वसम्मति से सहमति व्यक्त की है कि ज़कात चार प्रकारों में अनिवार्य है : गेहूं, जौ, खजूर और किशमिश। इन चार प्रकारों के अलावा के बारे में उनके बीच मतभेद है।
दूसरी : रिकाज़ (धरती में गड़ा ख़ज़ाना)
इससे अभिप्राय जमीन में दबा काफिरों का धन है, जिसे कोई मुसलमान पाता है।
शैख़ुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह ने “मजमूउल-फतावा” (25/10) में इब्नुल-मुंज़िर रहिमहुल्लाह से वर्णन किया है कि उन्होंने ने कहा :
“विद्वानों ने सर्वसम्मति से इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि ज़कात नौ चीजों में अनिवार्य है : ऊँट, गाय, भेड़-बकरी, सोना, चाँदी, गेहूं, जौ, खजूर और किशमिश, जब इनमें से प्रत्येक प्रकार उस मात्रा तक पहुँच जाए, जिसमें ज़कात अनिवार्य होती है।”
इन धनों के अलावा के बारे में उनके बीच मतभेद पाया जाता है।
इन धनों में ज़कात कुछ शर्तों के साथ अनिवार्य होती है, तथा धन की एक निश्चित राशि का भुगतान करना अनिवार्य है जिसे शरीयत ने निर्दिष्ट किया है।
अधिक विवरण के लिए ज़कात अनुभाग में साइट के प्रश्न देखें।
यह ज़कात (धन की ज़कात) इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक स्तंभ है, जिसका इनकार करने वाला काफिर हो जाता है, और इसे रोकने वाला निश्चित रूप से फ़ासिक़ (पापी) है। मुस्लिम शासक को चाहिए कि बलपूर्वक उससे ज़कात वसूल करे। यदि वह ज़कात रोकने पर अडिग रहता है और अपने क़बीले का संरक्षण लेता है, तो उससे लड़ाई की जाएगी यहाँ तक कि उसका भुगतान कर दे।
बुखारी (हदीस संख्या : 8) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 12) ने अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यह कहते सुना : “निःसंदेह इस्लाम की नीव पाँच चीज़ों पर आधारित है : इस बात की गवाही देना कि अल्लाह के अलावा कोई सच्चा पूज्य (मा’बूद) नहीं, नमाज़ स्थापित करना, ज़कात देना, रमज़ान के महीने के रोज़े रखना और अल्लाह के घर (का’बा) का हज्ज करना।"
तथा बुख़ारी (हदीस संख्या : 25) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 22) ने इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मुझे आदेश दिया गया है कि मैं लोगों से युद्ध करूँ, यहाँ तक कि वे इस बात की गवाही दें कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के रसूल हैं, नमाज़ क़ायम करें और ज़कात अदा करें। अगर उन्होंने इतना कर लिया, तो उन्होंने मुझसे अपने खून और अपने धन को सुरक्षित कर लिया, सिवाय इस्लाम के हक़ के बदले, और उनका हिसाब अल्लाह पर है।”
तथा सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ज़कात को रोकने वालों से लड़ाई करने पर सर्वसम्मति से सहमत थे। बुखारी (हदीस संख्या : 1400) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 20) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का निधन हो गया, और अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ख़लीफा बनाए गए, और अरब के कुछ लोग धर्म से फिर गए, तो उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने (उनसे) कहा : आप लोगों से कैसे लड़ेंगे, जबकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : “मुझे लोगों से लड़ने का आदेश दिया गया है जब तक कि वे “ला इलाहा इल्लल्लाह” (अल्लाह के सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं) न कहें। फिर जिसने उसे कह लिया, तो उसने मुझसे अपने धन और अपनी जान को बचा लिया, सिवाय उसके हक़ के बदले, और उसका हिसाब अल्लाह के पास होगा।” अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : अल्लाह की क़सम! मैं तो उस व्यक्ति से लड़ूँगा जिसने नमाज़ और ज़कात में फ़र्क़ किया। क्योंकि ज़कात धन का हक़ है। अल्लाह की क़सम!, यदि वे मुझे बकरी के एक बच्चे को भी देने से इनकार करेंगे, जो वे अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को दिया करते थे, तो मैं उसके रोकने पर (भी) उनसे लड़ाई करूँगा। उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : अल्लाह की क़सम! फिर कुछ न था परंतु यह कि अल्लाह ने अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु का सीना खोल दिया। तो मैंने जान लिया कि यही सत्य है।”
जहाँ तक रमज़ान के अंत में अनिवार्य होने वाली ज़कात की बात है, तो वह ज़कातुल-फ़ित्र है। विद्वानों ने सर्वसम्मति से सहमति व्यक्त की है कि यह अनिवार्य है, सिवाय उसके जो आम सहमति से विचलित हो गया।
देखिए : “तर्ह अत-तसरीब” (4/46).
यह अनिवार्यता और स्थान में धन की ज़कात से कम है। चुनाँचे ज़कातुल-फ़ित्र इस्लाम के स्तंभों में से नहीं है, और न ही इसका इनकार करने वाला काफिर होता है।
ज़कातुल-फ़ित्र का उल्लेख कई हदीसों में हुआ है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
बुखारी (हदीस संख्या : 1503) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 984) ने इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : "अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ज़कातुल फ़ित्र एक सा’अ खजूर, या एक सा’अ जौ, ग़ुलाम और आज़ाद, पुरूष और स्त्री, छोटे और बड़े हर मुसलमान पर अनिवार्य किया है। और आपने आदेश दिया है कि लोगों के नमाज़ के लिए बाहर जाने से पहले इसे अदा कर दिया जाए।
अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1609) ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ज़कातुल-फ़ित्र रोज़ेदार को बेकार और अश्लील बातों से शुद्ध करने के लिए और मिसकीनों के खाने के लिए अनिवार्य किया है। अतः जिस व्यक्ति ने उसे नमाज़ से पहले अदा कर दिया, तो वह मक़बूल (स्वीकार्य) ज़कात है और जिस आदमी ने उसे नमाज़ के बाद अदा किया, तो वह सामान्य सदक़ों में से एक सदक़ा है।” अल्बानी ने “सहीह अबू दाऊद” में इसे हसन कहा है।
अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्या (12459 ) देखें।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।