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क्या अल्लाह तआला अर्द्ध शाबान (पंद्रहवीं शाबान) की रात को पहले (निचले) आकाश पर उतरता है और दो प्रकार के लोगों को छोड़कर सभी लोगों को क्षमा कर देता है, और वे दोनों क़ाफ़िर और बैर व द्वेष रखने वाले लोग हैंॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
कुछ हदीसों में इसका उल्लेख किया गया है, लेकिन उन हदीसों की प्रामाणिकता के बारे में कुछ विद्वानों का मतभेद है, और पंद्रहवीं शाबान की रात की विशेषता के बारे में कोई हदीस प्रमाणित (सही) नहीं है।
अबू मूसा अल-अश्अरी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "अल्लाह तआला अर्द्ध शाबान की रात को देखता है, फिर मुश्रिक (अनेकेश्वरवादी) और (अपने मुसलमान भाई से) बैर व द्वेष रखने वाले के सिवाय अपनी सारी सृष्टि को क्षमा कर देता है।” इसे इब्न माजा (हदीस संख्याः 1391) ने रिवायत किया है।
“बैर व द्वेष रखने वाले” से अभिप्राय वह व्यक्ति है जिसके और उसके (मुसलमान) भाई के बीच दुश्मनी हो।
“अज़-ज़वाइद” में है कि : इसकी इसनाद, अब्दुल्लाह बिन लहीआ के ज़ईफ़ (कमज़ोर) होने और अल-वलीद बिन मुस्लिम के मुदल्लिस होने (अनअना के द्वारा रिवायत करने) के कारण, ज़ईफ़ (कमज़ोर) है।
तथा इस हदीस में “इज़्तिराब” (एक प्रकार का हदीस के विज्ञान संबंधी दोष) भी पाया जाता है जिसे अद्-दाराक़ुत्नी ने अपनी पुस्तक “अल-इलल” (6/50, 51) में किया है और इसके बारे में उन्होंने कहा है कि : “यह हदीस साबित (सिद्ध) नहीं है।”
यह मुआज़ बिन जबल, आयशा, अबू हुरैरा और अबू सालबा अल-खुशनी वग़ैरह की हदीस से (भी) वर्णित है, लेकिन कोई इसनाद कमज़ोरी से मुक्त नहीं हैं, और उनमें से कुछ बहुत कमज़ोर हैं।
इब्न रजब अल-हंबली कहते हैं :
“अर्द्ध शाबान (या पंद्रहवीं शाबान) की रात की विशेषता के बारे में कई हदीसें हैं, जिनके बारे में विद्वानों का मतभेद है। परन्तु उनमें से ज़्यादातर विद्वानों ने उन्हें ज़ईफ़ घोषित किया है, जबकि इब्न हिब्बान ने उनमें से कुछ को सही कहा है।”
“लताईफुल मआरिफ़” (261).
अल्लाह तआला का पहले आकाश पर उतरना अर्द्ध शाबान (पंद्रहवीं शाबान) की रात के साथ विशिष्ट नहीं है। बल्कि सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम वग़ैरह में साबित है कि अल्लाह तआला हर रात को उसके आखिरी तीसरे भाग में निचले आकाश पर उतरता है। और पंद्रहवीं शाबान की रात इस सामान्य अर्थ में शामिल है।
इसीलिए जब अब्दुल्लाह बिन अल-मुबारक से अल्लाह तआला के पंद्रहवीं शाबान की रात को उतरने के बारे में पूछा गया, तो उन्हों ने प्रश्न करनेवाले से कहाः “हे कमज़ोर! पंद्रहवीं रात!ॽ वह हर रात उतरता है।”
इसे अबू उसमान अस्साबूनी ने “एतिक़ादो अह्लिस् सुन्नह” (संख्याः 92) में रिवाय़त किया है।
तथा अल-उक़ैली रहिमहुल्लाह ने फरमाया : शाबान की पंद्रहवीं रात को अल्लाह के उतरने के बारे में कई हदीसें हैं जिनमें कमज़ोरी पाई जाती है, लेकिन हर रात को उतरने के बारे में वर्णित हदीसें सही और साबित (प्रमाणित और सिद्ध) हैं। अतः पंद्रहवीं शाबान की रात, इन शा अल्लाह, उसमें शामिल है।
“अज़-ज़ोअफ़ा” (3/29)
तथा प्रश्न संख्या (8907) का भी उत्तर देखें।
इस साइट पर शैख इब्न बाज़ रहिमहुल्लाह (अल्लाह तआला उनपर दया करे) का “पंद्रहवीं शाबान की रात का जश्न मनाने के हुक्म” के बारे में एक लेख भी मौजूद है, जो साइट पर "विशेष अवसरों से संबंधित विषय" के अनुभाग में उपलब्ध है।