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क्या मत को हदीस पर प्राथमिकता दी जायेगी ॽ

13-05-2012

प्रश्न 5459

मेरा प्रश्न हदीसों और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत और मत से संबंधित है, मेरे देश के लोग इमाम शाफई के मत का अनुकरण करते हैं। कुछ स्थितियों में मत को हदीस और सुन्नत पर प्राथमिकता दी जाती है, तो इस हालत में, क्या मैं मत का पालन करूँ या सुन्नत की ॽ
उदाहरण के तौर पर, शाफई मत में यदि आदमी किसी औरत को छू ले, चाहे वह जानबूझकर हो या गलती से, तथा चाहे वह महिला उसके महारिम में से हो या महारिम में से न हो, तो उसका वुज़ू टूट जायेगा। तथा मुझे यह बात मिली है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा के पैर को नमाज़ पढ़ते हुए हरकत देते थे।
उदाहरण के तौर पर, मेरे देश में मुसलमानों को सिखाया जाता है कि हज्ज के दौरान वुज़ू की नीयत शाफई मत से हंबली मत में परिवर्तित हो जाती है, और वे उसी तरह वुज़ू करते हैं जिस तरह हंबली मत के पैरोकार करते हैं, और उसका कारण वही है जो पूर्व उदाहरण में वर्णित है। तो क्या यह अर्थात हज्ज के दौरान एक मत से दूसरे मत में परिवर्तित होना सही है ॽ
उदाहरणार्थ, शाफई मत में, फज्र की नमाज़ में क़ुनूत की दुआ सुन्नत मुअक्कदह है। तो क्या नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फज्र की नमाज़ में ऐसा किया है ॽ और जो क़ुनूत नहीं पढ़ता है उसका क्या हुक्म है ॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

अनिवार्य यह है कि किताब व सुन्नत का प्रमाण जिस चीज़ का तर्क देता है उसका पालन किया जाए यद्यपि वह उस मत के विपरीत और खिलाफ हो जिसका वह पालन कर रहा है, किंतु क़ुर्आन वा हदीस की समझ उसी तरह हो जिस तरह की सलफ –पूर्वजों - ने उसे समझा है, मात्र हमारी समझ के आधार पर न हो,और सलफ से अभिप्राय सहाबा और ताबईन हैं।

तथा जिस उदाहरण का आपने उल्लेख किया है तो सही कथन यह है कि महिला को छूना निश्चित रूप से वुज़ू को नहीं तोड़ता है,चाहे वह शहवत के साथ हो या उसके बिना हो, क्योंकि इसका प्रमाण यह हदीस है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी कुछ पत्नियों को चुंबन किया फिर नमाज़ के लिए निकल गए और वुज़ू नहीं किया।” सिवाय इसके कि शहवत के कारण उससे कोई चीज़ निकल आए तो वह वुज़ू करेगा लेकिन छूने के कारण नही बल्कि उस से निकलने वाली चीज़ के कारण।

जहाँ तक आयत का संबंध है और वह अल्लाह तआला का यह फरमान है : “या तुम ने औरतों को छुआ है।” तो सही कथन के अनुसार इस से अभिप्राय संभोग करना है।

2- आपको एक मत से दूसरे मत में परिवर्तित होने की आवश्यकता नहीं है, और हज्ज के कर्तव्य का पालन उसी तरह किया जायेगा जिस तरह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किया है, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: “मुझसे अपने हज्ज के कार्य सीख लो।”

3- फज्र की नमाज़ में क़ुनूत के बारे में सही बात यह है कि वह केवल नवाज़िल – आपदा - के समय सुन्नत है, अर्थात जब मुसलमानों या उनमें से कुछ पर कोई आपदा आ पड़े तो उस समय मुस्तहब – ऐच्छिक - है कि क़ुनूत पढ़ा जाए और अल्लाह तआला से दुआ किया जाये कि वह उसे उनसे टाल दे, किंतु सामान्य परिस्थितियों में सही बात यह है कि क़ुनूत मुस्तहब नहीं है,प्रमाणों से यही पता चलता है। तथा जिस व्यक्ति ने क़ुनूत को छोड़ दिया उसकी नमाज़ शाफईया रहिमहुमुल्लाह के यहाँ भी सही है। और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

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