हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
“एक मुसलमान के लिए जीवन से घृणा करना और सर्वशक्तिमान अल्लाह के पास जो राहत और भलाई है, उससे निराश हो जाना जायज़ नहीं है। उसे चाहिए कि अल्लाह की तक़दीर (नियति) का सामना करने पर धैर्य रखे और उन विपत्तियों पर जिनसे वह पीड़ित होता है अल्लाह के पास अज्र व सवाब की आशा रखे, तथा सर्वशक्तिमान अल्लाह से प्रश्न करे कि उन्हें उससे टाल दे और उसकी सहायता करे और उसपर जो कुछ विपत्ति नियत करता है उसपर उसे अज्र व सवाब प्रदान करे और सर्वशक्तिमान अल्लाह की ओर से राहत व आसानी की प्रतीक्षा करे। महिमावान अल्लाह ने फरमाया :
فَإِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا * إِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا [الشرح : 5-6]
“निःसंदेह हर कठिनाई के साथ एक आसानी है। निःसंदेह (उस) कठिनाई के साथ एक (और) आसानी है।” (सूरतुश्-शर्ह : 5-6)
मुसलमान के लिए किसी विपत्ति जैसै कि बीमारी, या सांसारिक संकट, या किसी अन्य चीज़ से ग्रस्त होने के कारण मृत्यु की कामना करना नापसंद है। सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम में अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “तुम में से कोई व्यक्ति किसी विपत्ति से ग्रस्त होने के कारण मृत्यु की कामना न करे। अगर उसे ऐसा करना ही हो, तो उसे इस तरह कहना चाहिए : “अल्लाहुम्मा अह्यिनी मा कानतिल हयातु खैरन ली, व-तवफ़्फ़नी इज़ा कानतिल वफ़ातु ख़ैरन ली” (ऐ अल्लाह! जब तक जीवन मेरे लिए बेहतर है, मुझे जीवित रख और जब मृत्यु मेरे लिए बेहतर हो, तो मुझे उठा ले।)”
उक्त हदीस में वर्णित रूप में एक प्रकार का अल्लाह के फैसले के प्रति अर्पण और समर्पण है। तथा इस दुनिया में मुसलमान को जो भी विपत्ति पहुँचती है, वह उसके लिए प्रायश्चित होती है, अगर वह उससे सर्वशक्तिमान अल्लाह के पास अज्र व सवाब की आशा रखता है और गुस्सा नहीं करता है, तथा उसमें उसके दिल को लापरवाही से जगाना और भविष्य में एक सदुपदेश है।
और अल्लाह ही तौफ़ीक़ (सामर्थ्य) प्रदान करने वाला है, तथा अल्लाह हमारे पैगंबर मुहम्मद, उनके परिवार और साथियों पर दया और शांति अवतरित करे।”
शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ .. शैख अब्दुल अज़ीज़ आलुश-शैख .. शैख सालेह अल-फ़ैज़ान .. शैख बक्र अबू ज़ैद।
“फतावा अल-लज्नह अद-दाईमह लिल-बुहूस अल-इल्मिय्यह वल-इफ़्ता” (25/398)।