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क्या अपने पति की मृत्यु की इद्दत गुज़ारने वाली महिला तरावीह की नमाज़ और काम काज के लिए बाहर निकल सकती है ?

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प्रकाशन की तिथि : 21-08-2012

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प्रश्न

पैंतालीस (45) दिन हुए मेरे पति का निधन हो गया और मेरी रमज़ान के महीने में तरावीह की नमाज़ के लिए मस्जिद जाने की आदत है, तो क्या मैं अपनी इद्दत पूरी किए बिना नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद जा सकती हूँ ॽ और क्या मैं दूकान मैं काम कर सकती है ॽ ज्ञात होना चाहिए कि दुकान उसी घर ही में है। क्या क़ब्रिस्तान की ज़ियारत करने वाले के लिए क़ब्रिस्तान के अंदर लगाए गए किसी भी पेड़ से खाना जायज़ है ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

हम अल्लाह सर्वशक्तिमान से दुआ करते हैं कि आपको आपकी विपदा में पुण्य से पुरस्कारित करे, और आप को उससे बेहतर उत्तराधिकारी प्रदान करे।

दूसरा : पति की मृत्यु की इद्दत काटने वाली महिला बिनी किसी आवश्यकता के रात के समय बाहर नहीं निकलेगी, और आपका तरावीह की नमाज़ के लिए निकलना कोई आवश्यकता (जरूरी चीज़) नहीं है, अतः इस आधार पर आप अपने घर में तरावीह की नमाज़ पढ़ेंगी।

तीसरा :

पति की मृत्यु की इद्दत बिताने वाली महिला के लिए काम काज के लिए दिन में निकलना जायज़ है, और जब रात आ जाए तो उसका अपने घर ही में रहना आवश्यक है।

इसलिए आपके लिए दुकान में काम करना जायज़ है लेकिन यह केवल दिन में होना चाहिए।

इब्ने क़ुदाम रहिमहुल्लाह ने ‘‘अल-मुग़नी’’ (8/130) में फरमाया : ‘‘इद्दत गुज़ारने वाली महिला के लिए अपनी आवश्यकता की चीज़ों में दिन के समय बाहर निकलने की अनुमति है, चाहे वह तलाकशुदा महिला हो या पति की मृत्य पर इद्दत काटने वाली हो। क्योंकि जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : मेरी खाला को तीन तलाक हो गया, तो वह अपना खजूर तोड़ने के लिए निकलीं, तो उनसे एक आदमी मिला और उसने उन्हें (बाहर निकलने से) मना किया, उन्हों इसका चर्चा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से किया तो आप ने फरमाया : ‘‘तुम बाहर निकलो और अपने खजूर को तोड़ो, हो सकता है कि तुम उससे सदक़ा व ख़ैरात करो, या भलाई करो।” इसे नसाई और अबू दाऊद ने रिवायत किया है। तथा मुजाहिद ने रिवायत किया है किः ‘‘उहुद की लड़ाई में कुछ लोग शहीद हो गए, तो उनकी पत्नियाँ अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आईं और कहने लगीं : ऐ अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, हम रात को घबराहट महसूस करते हैं, तो क्या हम अपने में से किसी एक के यहाँ रात बिताएं और सुबह होते ही अपने घरों में लौट आएं ॽ तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : तुम अपने में से किसी एक के यहाँ बात चीत करो यहाँ तक कि जब तुम सोने का इरादा करो तो हर एक अपने घर लौट आए।’’

ऐसी महिला के लिए बिना किसी ज़रूरत के अपने घर के अलावा में रात बिताना तथा रात को बाहर निकलना जायज़ नहीं है, क्योंकि रात खराबी का संभावित जगह है, दिन के विपरीत, जो कि आवश्यकताओं की पूर्ति और जीवनोपाय और ज़रूरत की चीज़ों के खरीदने का संभावित स्थान है।” अंत हुआ।

तथा ‘‘फतावा स्थायी समिति’’ (20/440) में आया है : मूल सिद्धांत यह है कि : महिला अपने पति के उस घर में इद्दत बिताए जिसमें वह उसकी मृत्यु के समय उपस्थित थी, और उससे किसी आवश्यकता या ज़रूरत के समय ही बाहर निकले, जैसे - बीमार होने की अवस्था में हस्पताल जाना, बाज़ारा से अपनी ज़रूरत की चीज़ें जैसे रोटी आदि खरीदना यदि उसके पास ऐसा व्यक्ति न हो जो इस आवश्यकता को पूरी कर सकता हो।” अंत हुआ।

जहाँ तक क़ब्रिस्तान में लगे हुए पेड़ों से खाने की बात है तो इसमें कोई आपत्ति (पाप) की बात नहीं है, लेकिन आप को मालूम होना चाहिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने महिलाओं को क़ब्रों की ज़ियारत करने से मना किया है, और इसका वर्णन प्रश्न संख्या (8198) के उत्तर में हो चुका है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर