हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।“जो कुछ ज़ियारत करने वाले और अन्य लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़ब्र के पास जाकर क़ब्र की ओर मुँह करके अपने दोनों हाथों को उठाकर दुआ करते हैं, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा और भलाई के साथ उनका अनुसरण करने वाले पुनीत पूर्वजों के तरीक़े के विरूद्ध है।
बल्कि वह नयी गढ़ ली गई बिद्अतों में से है, जबकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है :
“तुम मेरी सुन्नत और मेरे बाद हिदायत से सम्मानित खुलफा-ए-राशिदीन की सुन्नत का पालन करो, उसे मज़बूती से पकड़ लो, और उसे दांतों से जकड़ लो, और (दीन में) नयी पैदा कर ली गई चीज़ों से बचो, क्योंकि (दीन के अंदर पैदा कर ली गई) हर चीज़ बिद्अत है और हर बिद्अत गुमराही (पथ भ्रष्टता) है।” इसे अबू दाऊद, तथा नसाई ने हसन इसनाद के साथ रिवायत किया है।
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिस ने हमारे इस (धर्म के) मामले में कोई ऐसी चीज़ निकाली जो उस से नहीं है तो वह मर्दूद (अस्वीकृत) है।” इसे बुखारी और मुस्लिम ने रिवायत किया है, तथा मुस्लिम की एक रिवायत में है कि :
“जिस ने कोई ऐसा काम किया जिस पर हमारा आदेश नहीं है तो वह काम मर्दूद (अस्वीकृत) है।”
तथा अली बिन अल हुसैन ज़ैनुल आबिदीन रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने एक आदमी को देखा जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की कब्र के पास दुआ कर रहा था तो आप ने उसे इससे मना किया और कहा : क्या में तुझे एक हदीस न सुनाऊँ जिसे मैं ने अपने पिता से सुना है, और उन्हों ने मेरे दादा से और मेरे दादा ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है कि आप ने फरमाया:
“मेरी क़ब्र को ईद (मेला ठेला) और अपने घरों को क़ब्रिस्तान न बनाओ, और मेरे ऊपर दरूद भेजते रहो, क्योंकि तुम कहीं भी रहो मुझ तक तुम्हारा दरूद पहुँचता रहता है।” इस हदीस को हाफिज़ मुहम्मद बिन अब्दुल वाहिद अल-मक़दसी ने अपनी किताब “अल-अहादीसुल मुख्तारा” में उल्लेख किया है।
इसी तरह जो कुछ ज़ियारत करनेवाले नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर सलाम पढ़ते समय अपने दायें हाथ को बायें हाथ पर रखकर, अपने सीने के ऊपर या उसके नीचे, नमाज़ पढ़ने वाले के आकार की तरह हाथ बांधकर खड़े होते हैं, तो यह आकार (आसन) आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर सलाम पढ़ते समय जायज़ नहीं है, और न ही आप के अलावा राजाओं और नेताओं और दूसरों को सलाम करते समय ही यह आकार जायज़ है ; क्योंकि यह उपासना, अधीनता और विनम्रता की मुद्रा है जो केवल अल्लाह के लिए ही योग्य है, जैसाकि हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने फत्हुल बारी में विद्वानों से उल्लेख किया है, और इस बारे में उस व्यक्ति के लिए मामला बिल्कुल स्पष्ट है जो मननचिंतन करे और उसका उद्देश्य सलफ सालेहीन के तरीक़े का अनुसरण करना हो।
किंतु जिस व्यक्ति के ऊपर पक्षपात (कट्टरपंथ), इच्छा, अंधा अनुकरण और पुनीत पूर्वजों के तरीक़े की ओर निमंत्रण देने वालों के साथ बदगुमानी का वर्चस्व है तो उसका मामला अल्लाह के ज़िम्मे है, हम अल्लाह तआला से अपने और आपके लिए मार्गदर्शन, तौफीक़ और हक़ को उसके अलावा पर वरीयता देने का प्रश्न करते हैं, निःसंदेह वह सबसे बेहतरीन व्यक्तित्व है जिससे प्रश्न किया जाता है।” अंत हुआ।
फज़ीलतुश्शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह।