हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जानबूझ कर हत्या करना यदि वधित व्यक्ति मुसलमान है तो महा पाप है,अल्लाह तआला ने फरमाया :
ومن يقتل مؤمناً متعمداً فجزاؤه جهنم خالداً فيها وغضب الله عليه ولعنه وأعد له عذاباً عظيماً [ النساء : 93].
“और जो किसी मोमिन को जान बूझ कर क़ल्त कर दे,उसका दण्ड नर्क है,उस पर अल्लाह तआला क्रोधित हुआ है और उस पर अल्लाह की लानत (फटकार) है,और उसके लिए बड़ी यातना तैयार कर रखा है।” (सूरतुन्निसा : 93)
तथा हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आप ने फरमाया :
“मनुष्य अपने धर्म के मामले में विस्तार में होता है जब तक कि वह कोई अवैध – निषिद्ध - खून न बहाए।”
और आप ने यदि किसी ईमान वाले को जानबूझ कर क़त्ल किया है तो आपकी हत्या से तीन हक़ संबंधित होते हैं : अल्लाह सर्वशक्तिमान का हक़, एक हक़ मारे गए व्यक्ति का औ एक हक़ वधित किए गए व्यक्ति के सरपरस्तों का।
जहाँ तक अल्लाह सर्वशक्तिमान के हक़ का संबंध है तो यदि आप अपने पालनहार से विशुद्ध और सच्ची तौबा करें, तो अल्लाह तआला आप की तौबा को स्वीकार कर लेगा। क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
قل يا عبادي الذين أسرفوا على أنفسهم لا تقنطوا من رحمة الله إن الله يغفر الذنوب جميعاً إنه هو الغفور الرحيم [الزمر : 53].
“आप कह दीजिए कि ऐ मेरे बन्दों ! जिन्हों ने अपनी जानों पर अत्याचार किया है अल्लाह की रहमत से निराश न हो,निःसन्देह अल्लाह तआला सभी गुनाहों को माफ कर देता है, वह बड़ा माफ करने वाला दयालू है।” (सूरतुज़्ज़ुमर : 53)
जहाँ तक मारे गए व्यक्ति के अधिकार का संबंध है,तो वह अब जीवित नहीं है कि आप उसकी छति पूर्ति कर सकें,इसलिए उसका मामला परलोक के दिन तक बाक़ी रहेगा अर्थात् उस वधित व्यक्ति का आप से क़िसास – बदला - क़ियामत के दिन होगा,लेकिन आशा है कि यदि आपकी तौबा विशुद्ध है और अल्लाह के निकट स्वीकृत हो जाती है तो अल्लाह तआला क़ियामत के दिन इस वधित व्यक्ति को अपनी अनुकंपा में से जिस चीज़ के साथ चाहेगा प्रसन्न कर देगा और आप उस से मुक्त हो जायेंगे। रही बत वधित व्यक्ति के सरपरस्तों की और वह तीसरा हक़ है तो आप उस हक़ से भार मुक्त नहीं हो सकते यहाँ तक कि आप अपने आप को उनके हवाले कर दें। इस आधार पर अनिवार्य यह है कि आप अपने आपको वधित व्यक्ति के सरपरस्तों के हवाले कर दें,और उनसे कहें कि आप ने ही उसकी हत्या की है,फिर उन्हें अधिकार है कि यदि वे चाहें तो आप से क़िसास – बदला - लें यदि क़िसास की शर्तें पाई जाती हैं, और यदि चाहें तो दीयत – खूनबहा – लें, और यदि चाहें तो बिना कुछ लिए ही माफ कर दें।
शैख उसैमीन के फतावा से।