रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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महीने के प्रवेश करने और उसके समाप्त होने में विश्वसनीय चाँद का देखना है

प्रश्न

कुछ लोगों का दावा है कि उन्हों ने रमज़ान का नया चाँद देखा है, जबकि खगोलविदों और गणना (हिसाब) के अनुयायियों का दावा है कि उस में उसका देखा जाना संभव नहीं है। मुझे इसमें कोई समस्या नहीं है, क्योंकि गणना गलत हो सकती है और अनुमान व अंकन विभिन्न हो सकता है। लेकिन समस्या की बात यह है कि खगोलविदों और गणना विज्ञान में रूचि रखनेवालों का दावा है कि उन्हों ने अपने पास उपलब्ध वेधशालाओं और उपकरणों की मदद से उस रात को चाँद देखने का प्रयास किया लेकिन उन्हें वह दिखाई नहीं दिया। तो सवाल यह है कि उसे नग्न आंखों के द्वारा कैसे देखा जा सकता है जबकि आधुनिक उपकरणों और विकसित मशीनों के द्वारा नहीं देखा जासकता? यदि मामला इसके विपरीत होता कि उन्हों ने मशीनों के द्वारा उसे देख होता और आँख के द्वारा न दिखाई देता, तो मतभेद होना औचित्य था कि रोज़ा रखा जायेगा या नहीं रखा जायेगा? और कया लोग इफ्तार करेंगे या नहीं? परंतु समस्या यह है कि वे लोग उसे आंखों से कैसे देख लेते हैं जबकि वह उपकरणों के द्वारा नहीं दिखाई देता है? वास्तव में, आप लोगों से मैं संतोषजनक स्पष्टीकरणा चाहता हूँ जो मेरी चिंता और दुविधा को समाप्त कर दे, और मैं नहीं समझता कि मैं इस मामले में अकेला हूँ।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

रमज़ान के महीने के प्रवेश (शुरुआत) को साबित करने में विश्वसनीय चाँद का देखना, या अगर चाँद दिखाई न दे तो शाबान के तीस दिन पूरे करना है। इसी पर सहीह और शुद्ध सुन्नत दलालत करती है और विद्वानों की इसी पर सर्वसहमति है। बुखारी (हदीस संख्या : 1909) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1081) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

"चाँद देखकर रोज़ा रखो और चाँद देखकर रोज़ा रखना बंद करो, यदि तुम्हारे ऊपर बदली हो जाए तो शाबान की अवधि तीस दिन पूरी करो।" और एक रिवायत के शब्द हैं किः "यदि तुम्हारे ऊपर बादल हो जाए।’’

खगोलीय गणना का कोई एतिबार नहीं है, तथा दृष्टि के अंदर मूल बात यह है कि वह नग्न आंखों द्वारा हो। किंतु यदि आधुनिक उपकरणों द्वारा चाँद को देखा गया है तो इस दृष्टि पर अमल किया जाएगा। जैसाकि प्रश्न संख्या : (106489) के उत्तर में बीत चुका है।

जहाँ तक इस बात का संबंध है कि चाँद को नग्न आंखों के द्वारा कैसे देखा लिया जाता है और वेधशालाओं और उपकरणों द्वारा नहीं देखा जाता; तो यह चाँद देखने के स्थान और उसके समय में अंतर के कारण हो सकता है।

बहरहाल जो भी मामला हो, हुक्म चाँद की दृष्टि पर निर्भर करता है, अतः जब उसे एक या दो विश्वसनीय मुसलमानों ने देखा है, तो इस दृष्टि पर अमल करना ज़रूरी है।

सुप्रीम न्यायिक परिषद के प्रमुख शैख सालेह बिन मुहम्मद अल-लुहैदान हफिज़हुल्लाह कहते हैं : एक भाई अब्दुल्लाह अल-खुज़ैरी हैं जो चाँद पर नज़र रखने में विख्यात हैं और उन्हों ने उसकी बहुत सी अवस्थाओं पर नज़र रखा है चाहे वह नये चाँद के समय के अलावा में ही क्यों न हो। खगोलीय शास्त्र के कुछ वैज्ञानिक उसके पास गए और "हौता सुदैर क्षेत्र" में उसके साथ मुलाकात की। उसने मुझे बताया कि उन लोगों ने उपकरणों के बोर्डस पर अपने अनुमान और अपनी गणना के आधार पर उस रात को एक निश्चित स्थान पर चाँद निकलने का अनुमान लगाया। तो उस आदमी ने उन्हें बतलाया कि चाँद उस स्थान से कदापि नहीं निकलेगा जिस स्थान से वे निकलने को कह रहे हैं क्योंकि उसने उनसे पहले ही पिछली रात को उस पर नज़र रखी थी। और वह चाँद के गृहों को जानता था कि वह हर रात कहाँ से प्रकट होगा और गुज़रेगा। फिर जब वह निकला तो उसी जगह से प्रकट हुआ जो उसने निर्धारित किया था, उस जगह से नहीं जो उन्हों ने निर्धारित किया था। और उसने उन्हें क्षम्य समझा क्योंकि उन्हों ने अवलोकन द्वारा उसके स्थान को निर्धारित नहीं किया था, बल्कि अपने पास मौजूद उपकरणों द्वारा किया था।" अर-रियाद अखबार द्वारा उसके साथ किए गए एक साक्षात्कार से संपन्न हुआ।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर