हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
अल्लाह सर्वशक्तिमान जिसे इस्लाम की हिदायत (मार्गदर्शन) प्रदान कर दे उसे चाहिए कि वह इस प्रकाश से अपने परिवार और रिश्तेदारों के जीवन को ज्योतिमान करने में पहल करे। क्योंकि वे लोग उसके आमंत्रण और इस्लाम के प्रकाश के सबसे अधिक योग्य हैं। और जब उनके बीच ऐसे लोग पाए जाते हैं जिन्हें इस्लाम पर कोई आपत्ति नहीं है तो यह एक महान नेमत है, जिसका एक मुसलमान को अच्छे तरीक़े से उन्हें इस्लाम पेश करने लिए उपयोग करना चाहिए। तथा उन्हें इस्लाम की ओर आमंत्रित करने में हर जायज़ साधन अपनाना चाहिए, जैसे कि ऑडियो और वीडियो कैसिट्स, किताबें और वेबसाइटें प्रस्तुत करना, तथा प्रभावशाली मुस्लिम व्यक्तियों को आमंत्रित करना। इसी तरह उपहार, अच्छे व्यवहार और उत्तम नैतिकता के माध्यम से उनके साथ निकटता बनाएं, और उनके साथ कठोर व्यवहार करने से बचें और हमेशा अल्लाह से यह प्रार्थना करते रहें कि उन्हें मार्गदर्शन और तौफीक़ प्रदान करे।
जब अल्लाह तआला ने ऐसे माता-पिता के साथ सद्व्यदहार (दयालुता) का आदेश दिया है, जो अपने बेटे को कुफ्र की तरफ बुलाते हैं और इसके लिए महान प्रयास करते हैं; तो जो व्यक्ति आप के लिए इस्लाम से सहमत है और उसे उसपर कोई आपत्ति नहीं है तो उसके साथ इस तरह (अच्छा) व्यवहार करना अधिक उचित है।
अल्लाह तबारक व तआला ने फरमाया :
وَوَصَّيْنَا الْإِنْسَانَ بِوَالِدَيْهِ حَمَلَتْهُ أُمُّهُ وَهْنًا عَلَى وَهْنٍ وَفِصَالُهُ فِي عَامَيْنِ أَنِ اشْكُرْ لِي وَلِوَالِدَيْكَ إِلَيَّ الْمَصِيرُ . وَإِنْ جَاهَدَاكَ عَلَى أَنْ تُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا وَصَاحِبْهُمَا فِي الدُّنْيَا مَعْرُوفًا وَاتَّبِعْ سَبِيلَ مَنْ أَنَابَ إِلَيَّ
لقمان :14-15
''हम ने इन्सान को उसके माता-पिता के बारे में (सद्व्यवहार की) ताकीद की है, उसकी माँ ने दुख पर दुख सह कर उसे पेट में रखा और उसकी दूध छुड़ाई दो साल में है कि तू मेरी और अपने माता-पिता की शुक्रगुज़ारी कर, अंततः सब को मेरी ही तरफ लौट कर आना है। और अगर वे दोनों तुझ पर इस बात का दबाव डालें कि तू मेरे साथ किसी को साझीदार बना, जिसका तुझे ज्ञान न हो तो तू उनका कहना ना मानना, परंतु दुनिया में उन के साथ भले तरीक़े से निर्वाह करना और उसके रास्ता पर चलना जो मेरी तरफ झुका हुआ हो।'' (सूरत लुक़मान : 14-15(
इब्ने जरीर तबरी रहिमहुल्लाह इस आयत की व्याख्य करते हुए लिखते है।
''ऐ मनुष्य! यदि तेरे माता-पिता तुझपर दबाव डालें कि तू मेरे प्रति अपनी उपासना में मेरे साथ किसी और को साझी ठहराए, जिसका तुझे ज्ञान नहीं कि वह मेरा शरीक है - और दरअसल अल्लाह तआला का कोई शरीक नहीं है, वह इस बात से सर्वोच्च है -, तो तू मेरे साथ शिर्क करने की उनकी इच्छा में उनका पालन न करना। (और दुनिया में उन के साथ भले तरीक़े से निर्वाह करो) अल्लाह तआला फरमाता है : संसार में उनके उन हुक्मों का पालन करो जिस में तुम्हारे ऊपर तथा तुम्हारे और तुम्हारे पालनहार के बीच रिश्ते के विषय में कोई हानि न हो, और न ही वह गुनाहहो।'' ''तफ्सीर तबरी'' (20/139) .
इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह कहते हैं :
''अर्थात : यदि तुमहारे माता-पिता भरपूर प्रयास करें कि तुम उनके धर्म में उनका अनुसरण करोः तो तुम उनकी बातों को स्वीकार न करो। परंतु यह बात तुम्हें दुनिया में उनके साथ भलाई करने से न रोके। (और उसके रास्ता पर चलना जो मेरी तरफ झुका हुआ हो।) अर्थात ईमानवालों के रास्ता पर चलो।'' समाप्त हुआ।
''तफ्सीर इब्ने कसीर'' (6/337).
इफ्ता की स्थायी समिति के विद्वानों से पूछा गया :
मेरी एक बहन के सिवाय मेरे परिवार वाले मुश्रिक (अनेकेश्वरवादी) हैं। तो क्या मेरा उनके साथ रहना और खाना-पीना जायज़ हैॽ यदि यह जायज़ है जबकि यह मेरी धार्मिक प्रतिबद्धता की कीमत पर नहीं हैः तो क्या मेरे लिए उन्हें स्पष्ट रूप से यह कहना जायज़ है कि वे काफिर हैं और अल्लाह के धर्म से बाहर (निष्कासित) हैंॽ जबकि मैं ने उन्हें इस्लाम की ओर आमंत्रित कर चुका हूँ पर वे संकोच में पड़े हैं, न इधर के हैं न उधर के हैं, किन्तु वे शिर्क के अधिक निकट हैं। यह भी ज्ञात रहे कि उनके साथ रहने के सिवा मेरे पास केई आवास नहीं है।
उन लोगों ने जवाब दिया :
''आपको चाहिए कि बराबर उन्हें धर्म का उपदेश और सलाह देते रहें, उन्हें याद दिलाते रहें, उनके साथ अच्छा रहन सहन रखें, और उनके साथ कोमलता से बात चीत करें। यदि आप धनवान हैं तो उन पर खर्च करें; आशा है कि अल्लाह सर्वशक्तिमान उनके दिलों को खोल दे और उनकी आँखों को रौशन कर दे। अल्लाह तआला का फरमान है :
وَإِنْ جَاهَدَاكَ عَلَى أَنْ تُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا وَصَاحِبْهُمَا فِي الدُّنْيَا مَعْرُوفًا وَاتَّبِعْ سَبِيلَ مَنْ أَنَابَ إِلَيَّ
لقمان :14-15
''और अगर वे दोनों तुझ पर इस बात का दबाव डालें कि तू मेरे साथ किसी को साझीदार बना, जिसका तुझे ज्ञान न हो तो तू उनका कहना ना मानना, परंतु दुनिया में उन के साथ भले तरीक़े से निर्वाह करना और उसके रास्ता पर चलना जो मेरी तरफ झुका हुआ हो।'' (सूरत लुक़मान : 15(
और उन तक सत्य पहुँचाने के लिए विभिन्न तरीक़ों का प्रयोग करें, जैसे पत्रिकाएं, पुस्तकें, कैसिटें ...आदि। समाप्त हुआ।
शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़, शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक़ अफीफी, शैख अब्दुल्लाह बिन ग़ुदैयान। ''फतावा स्थायी समिति'' (12/255, 256) .
शैख सालेह बिन फौज़ान अल-फौज़ान हफिज़हुल्लाह कहते हैं :
''अल्लाह सर्वशक्तिमान ने माता-पिता के साथ अच्छा और दयालुता पूर्ण व्यवहार करने को अनिवार्य ठहराया है चाहे वे काफिर ही क्यों न हों, अल्लाह तआला का फरमान हैः
وَوَصَّيْنَا الْإِنْسَانَ بِوَالِدَيْهِ حَمَلَتْهُ أُمُّهُ وَهْنًا عَلَى وَهْنٍ وَفِصَالُهُ فِي عَامَيْنِ أَنِ اشْكُرْ لِي وَلِوَالِدَيْكَ إِلَيَّ الْمَصِيرُ . وَإِنْ جَاهَدَاكَ عَلَى أَنْ تُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا وَصَاحِبْهُمَا فِي الدُّنْيَا مَعْرُوفًا وَاتَّبِعْ سَبِيلَ مَنْ أَنَابَ إِلَيَّ
لقمان :14-15
''हम ने इन्सान को उसके माता-पिता के बारे में (सद्व्यवहार की) ताकीद की है, उसकी माँ ने दुख पर दुख सह कर उसे पेट में रखा और उसकी दूध छुड़ाई दो साल में है कि तू मेरी और अपने माता-पिता की शुक्रगुज़ारी कर, अंततः सब को मेरी ही तरफ लौट कर आना है। और अगर वे दोनों तुझ पर इस बात का दबाव डालें कि तू मेरे साथ किसी को साझीदार बना, जिसका तुझे ज्ञान न हो तो तू उनका कहना ना मानना, परंतु दुनिया में उन के साथ भले तरीक़े से निर्वाह करना और उसके रास्ता पर चलना जो मेरी तरफ झुका हुआ हो।'' (सूरत लुक़मान : 14-15).
अतः आप पर अनिवार्य है कि अपने माता-पिता के साथ सांसारिक मामलों में अच्छा व्यवहार करें। रही बात धार्मिक मामलों कीः तो आप सत्य धर्म का पालन करें भले ही वह आपके पिता के धर्म के विरुद्ध हो। परंतु आप अपने माता-पिता के साथ प्रतिफल के तौर पर सद्व्यवहार करेंगे। चुनाँचे आप उनके साथ अच्छा व्यवहार करें और उनके उपकार व भलाई का उन्हें प्रतिफल दें, चाहे वे दोनों काफिर ही क्यों न हों।
इसलिए इसमें कोई बाधा और रुकावट नहीं है कि आप अपने पिता के साथ संपर्क में रहें, उनके साथ अच्छा व्यवहार करें और उन्हें बेहतर बदला दे; लेकिन आप अल्लाह सर्वशक्तिमान की अवज्ञा में उनका पालन न करें।'' संपन्न हुआ।
''अल-मुन्तक़ा मिन फतावा अल-फौज़ान'' (2/257 प्रश्न संख्या : 226)
और अल्लाह ही सब से अधिक ज्ञान रखता है।