हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
उत्तर :हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
क़ुर्बानी करना पुरूष और महिला दोनों के लिए धर्म संगत है। अतः जिसके पास क़ुर्बानी करने की ताक़त है उसके लिए यह मुस्तहब (एच्छिक) है। तथा औरत जब क़ुर्बानी करे तो उसे चाहिए कि अपनी क़ुर्बानी को अपनी ओर से और अपने घर वालों की ओर से करे। ऐसी अवस्था में उसका पति भी उसमें दाखिल हो जायेगा।
शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया : क्या क़ुर्बानी पूरे तौर पर परिवार (खानदान) के लिए है या उसके प्रत्येक व्यस्क सदस्य के लिए है, और उसे कब ज़बह किया जायेगा ? और क्या क़ुर्बानी करने वाले के लिए क़ुर्बानी के जानवर को ज़बह करने से पहले अपने बाल और नाखून में से कुछ भी न काटना शर्त है?और यदि वह किसी गर्भवती महिला का है तो क्या करना होगा? तथा इस तरह के मामले में क़ुर्बानी और सदक़ा के बारे में क्या अंतर है ?
तो उन्हों ने उत्तर दिया : ‘‘क़ुर्बानी सुन्नत मुअक्कदा है। वह पुरूष और महिला दोनों के लिए धर्म संगत है। वह आदमी और उसके घरवालों की ओर से, तथा महिला और उसके घर वालों की ओर से काफी होगी। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर साल सींग वाले काले-सफेद रंग वाले दो मेंढों की क़ुर्बानी करते थे। एक अपनी ओर से और अपने घरवालों की ओर से, और दूसरा अपनी उम्मत में से मुवह्हेदीन (एकेश्वरवादियों) की ओर से। और उसका समय हर साल यौमुन्नहर (दस ज़ुलहिज्जा) और तश्रीक़ के दिन (11, 12, 13 ज़ुलहिज्जा) हैं। क़ुर्बानी करने वाले के लिए सुन्नत यह है कि वह उससे खुद खाए, और उससे अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों को भेंट करे, तथा उससे सदक़ा (दान) करे। तथा जो आदमी क़ुर्बानी करना चाहता है उसके लिए ज़ुलहिज्ज का महीना दाखिल होने के बाद अपने बाल, अपने नाखून और अपनी त्वचा से कुछ भी काटना जायज़ नहीं है यहाँ तक कि वह क़ुर्बानी कर ले। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है : ‘‘जब ज़ुल हिज्जा का महीना दाखिल हो जाए, और तुम में से कोई क़ुर्बानी करना चाहे, तो अपने बाल, नाखून और त्वचा में से कुछ भी न काटे यहाँ तक कि क़ुर्बानी कर ले।’’ इसे मुस्लिम ने अपनी सहीह में, उम्मे सलिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है। जो व्यक्ति क़ुर्बानी करने के लिए वकील है, या वक्फ का वकील है जिसमें क़ुर्बानियाँ भी हैं, तो उसके लिए अपने बाल, नाखून और त्वचा छोड़ना अनिवार्य नहीं है ; क्योंकि वह क़ुर्बानी करने वाला नहीं है। बल्कि यह उस कुर्बानी करनेवाले पर अनिवार्य है जिसने उसे इसके लिए वकील बनाया है। इसी तरह वक्फ करने वाला ही वास्तव में क़ुर्बानी करने वाला है। वक्फ की देखरेख करनेवाला, लागू करने वाला वकील है, क़ुर्बानी करनेवाला नहीं है। और अल्लाह तआला ही तौफीक़ देने वाला है।’’ मजमूअ फतावा इब्ने बाज़ (18/38) से समाप्त हुआ।
लेकिन यदि वह औरत उसकी ओर से क़ुर्बानी करना चाहे इस तौर पर की क़ुर्बानी का जानवर उसका हो तो उससे अनुमति लेना ज़रूरी है; क्योंकि इबादत के अंदर किसी और की ओर से प्रतिनिधित्व करना उसकी अनुमति के बिना जायज़ नहीं है, चाहे प्रतिनिधि पुरूष हो या महिला। क्योंकि क़ुर्बानी एक इबादत है, और इबादत के लिए नीयत का होना ज़रूरी है।