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आवश्यकता पड़ने पर अजनबी महिला की ओर देखना

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प्रकाशन की तिथि : 07-06-2010

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प्रश्न

क्या मर्द के लिए अजनबी (परायी) महिला की ओर देखना जाइज़ है, चाहे वह हिजाब (पर्दे) में हो या हिजाब में न हो ? और यह देखना शह्वत (कामवासना) के साथ नहीं है, बल्कि वह किसी ज़रूरत की पूर्ति के लिए है, उदाहरण के तौर पर बिक्री या खरीद या कोई चीज़ पूछने या किसी अन्य उद्देश्य के लिए है।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह अल्लाह के लिए है।

मूल सिद्धान्त जिसे इस्लामी धर्म शास्त्र ने प्रस्तुत किया है वह सामान्य रूप से महिलाओं की ओर देखने से निषिद्धता, महिलाओं की चित्रों और उनके सत्र (पर्दे और छुपाने की चीज़ों) की तरफ देखने से दिल को सुरक्षित रखने और निगाह नीची रखने पर बल देना, और दोनों लिंगों में से एक के दूसरे के साथ संबंध में शर्म व हया, शील, शुद्धता और सतीत्वता (पाकदामनी) को ध्यान में रखना है।

लेकिन इसके बावजूद शरीअत ने भिन्न परिस्थितियों और दशाओं, और आवश्यकतायें पड़ने की स्थिति को ध्यान में रखा है जो इस अध्याय (विषय) में विस्तार का तक़ाज़ा करते हैं, किन्तु पर्दे वाली और बिना पर्दे वाली महिला के बीच देखने के अहकाम में अन्तर करना उचित है :

बिना पर्दे वाली महिला अपने पर्दा करने के अंगों का कुछ भाग खोले हुए होती है, जैसे किः बाल, सीना और कलाई, और ये चीज़ें विद्वानों की सर्व सहमति के साथ पर्दे और छुपाने की चीज़ों में से हैं, और अल्लाह तआला ने अपनी किताब में महिलाओं के छुपाने और पर्दा करने के अंगों और श्रृंगार एंव शोभा की जगहों की तरफ देखने को हराम क़रार दिया है, अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल ने फरमाया : "मुसलमान मर्दों से कहो कि अपनी निगाह नीची रखें, और अपनी शर्मगाह (गुप्तांग) की हिफाज़त करें, यही उन के लिए पाकीज़गी है, लोग जो कुछ कर रहे हैं अल्लाह तआला सब जानता है। और मुसलमान महिलाओं से कहो कि वे भी अपनी निगाह नीची रखें और अपने सतीत्व की हिफाज़त करें, और अपनी ज़ीनत का प्रदर्शन न करें सिवाय उस के जो ज़ाहिर है, और अपने गरेबान पर अपनी ओढ़नियों को पूरी तरह से फैलाये रहें और अपनी ज़ीनत (श्रृंगार) का प्रदर्शन किसी के सामने न करें सिवाय अपने पति के या अपने पिता के या अपने ससुर के या अपने बेटों के या अपने पति के बेटों के या अपने भाईयों के या अपने भतीजों के या अपने भांजों के या अपनी सखियों के या अपने गुलामों के या नौकरों में से ऐसे मर्दों के जिन को कामुकता न हो या ऐसे बच्चों के जो महिलाओं के पर्दे की बातों के बारे में न जानते हों, और इस तरह से ज़ोर-ज़ोर से पैर मार कर न चलें कि उन के छुपे श्रृंगार का पता लग जाये। और हे मुसलमानो! तुम सब के सब अल्लाह के दरबार में माफी मांगो ताकि तुम कामयाबी पाओ।" (सूरतुन्नूर : 30-31)

इस आयत में महिलाओं के पर्दा करने और फितनें की जगहों से निगाह को नीची रखने पर स्पष्ट प्रमाण और तर्क है, अत: किसी मुसलमान के लिए वैध नहीं है कि वह उस सीमा से आगे बढ़े जिसे अल्लाह तआला ने निर्धारित कर दिया है, जैसाकि कुछ लोग -अल्लाह उन्हें हिदायत दे- ऐसा करते हैं जब वे बे-पर्दा महिलाओं के साथ बैठते हैं, या उन से बात चीत करते हैं, या उन के साथ साक्षातकार करते हैं जबकि वे अपने पूरे बनाव सिंगार और श्रृंगार के साथ होती हैं, और इस पर अधिक यह के वे कभी कभार हंसी और मज़ाक़ भी करते हैं, और वे जो कुछ करते हैं उस में कुछ भी गलत नहीं समझते हैं। तो इन लोगों को ज्ञात होना चाहिए कि सर्व शक्तिमान अल्लाह इस बात को पसन्द नहीं करता है कि उस की हुर्मत (धर्मनिषिद्ध बातों) का खुलेआम अपमान किया जाये, और शरई अहकाम (धार्मिक प्रावधानों) को मज़ाक और तुच्छ बना लिया जाये। फिर ऐसी अवस्था में क्या होगा जब कि बे-पर्दगी और श्रृंगार प्रदर्शन ऐक ऐसा दृश्य और रूप बन गया है जिसे अधिकांश लोग बुरा और निंदनीय नहीं समझते हैं !? यही वास्तव में धर्म, नैतिकता और विश्वास के अन्दर असली पतन और विकार है। हम अल्लाह तआला से अपने और आप के लिए इस से सुरक्षा और बचाव का प्रश्न करते हैं।

इब्नुल क़त्तान अल फारसी रहिमहुल्लाह कहते हैं :

"यदि यह अजनबी महिला -अर्थात गैर मह्रम औरत- बड़ी आयु की है और वह मुसलमान है, तो इस में कोई रहस्य की बात नहीं है कि एक अजनबी मर्द के लिए उस के चेहरा, दोनों हथेलियों और दोनों पांवों के अलावा उस के शरीर के किसी अन्य भाग : जैसे सीना, पेट, गर्दन, बाल, नाभि से ऊपर और पीठ को देखना हराम है, इन जगहों (अंगों) में से कुछ भी देखना बिल्कुल ही जाइज़ नहीं है, और इस में किसी भी प्रकार का कोई मतभेद नहीं है।" (इब्नुल क़त्तान की बात समाप्त हुई).

"अहकामुन् नज़र" (पृ. 143)

जहाँ तक उस महिला का संबंध है जिस ने केवल अपना चेहरा खोल रखा है, तो इस महिला ने - बावजूद इस के कि सही धार्मिक शासन का उल्लंघन किया है जो महिला के चेहरे को ढांपने (पर्दा करने) की अनिवार्यता का तक़ाज़ा करता है- परन्तु मर्दों के उस के साथ लेन देन, जैसे किः बिक्री, खरीद, सहयोग, शिक्षा, इलाज, गवाही, शादी का पैगाम इत्यादि की आवश्यकता ज़रूरत के अनुसार उस के चेहरे की ओर देखने के जाइज़ होने का तक़ाज़ा करती है, इस शर्त के साथ कि यह देखना कामुकता के साथ न हो, तथा उस से फित्ने में पड़ने का भय न हो, तो ऐसी अवस्था में ज़रूरत को ज़रूरत के स्तर तक ही सीमित रखा जायेगा, और ज़रूरतें, निषिद्ध चीज़ों को वैध कर देती हैं। देखिये अल्लामा सुयूती की किताब "अल अश्बाह वन्नज़ाइर" (पृ. संख्या : 88)

तथा इमाम नववी रहिमहुल्लाह कहते हैं :

"यदि कोई शरई (धार्मिक) आवश्यकता पड़ती है तो देखना जाइज़ है, जैसे कि बिक्री, खरीद, इलाज (उपचार), गवाही और इस तरह की अन्य हालतों में है, किन्तु इन परिस्थितियों में शह्वत (कामवासना) के साथ देखना हराम (वर्जित) है, क्योंकि आवश्यकता केवल आवश्यकता के लिए देखना वैध ठहराती है, रही बात शह्वत (कामवासना) की तो उस की कोई अवाश्यकता नहीं है।" (नववी की बात समाप्त हुई)

"शर्ह मुस्लिम" (4/31)

तथा जिन परिस्थितियों में अजनबी महिला को देखना वैध है उन का विस्तार पूर्वक वर्णन प्रश्न संख्या : (2198) के उत्तर में बीत चुका है।

जहाँ तक पर्दा में न रहने वाली महिला का संबंध है तो ज़रूरत की हालत को छोड़ कर उस को देखने से सदैव दूर रहना चाहिए, और उस के बारे में उस तरह विस्तार से काम नहीं लेना चाहिए जैसा कि पर्दे वाली महिला का मामला है, क्योंकि बे-पर्दा महिला ने अपने शरीर के ऐसे अंगो को खोल रखा है जिन का खोलना विद्वानों की सर्व सम्मति के साथ किसी भी हालत में वैध नहीं है, किन्तु पर्दा में रहने वाली महिला ने केवल उस चीज़ को खोल रखा है जिस के खोलने -और वह चेहरा है- में शरीअत ने कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में विद्वानों की सर्वसम्मति के साथ विस्तार से काम लिया है, फिर यह बात भी है कि चेहरे के खोलने के बारे में मतभेद विद्वानों के बीच मोतबर (स्वीकार्य) है। और यदि वह महिला उन लोगों में से है जिस का मत (विचारधारा) उस के जाइज़ होने का है, तो इन शा-अल्लाह चेहरा खोलने में उस पर कोई गुनाह नहीं है।

और दोनों मामलों में स्पष्ट अन्तर पाया जाता है।

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर