रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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सज्दा सह्व के कारण

प्रश्न

नमाज़ी के लिए अपनी नमाज़ में सह्व (विस्मृति) का सज्दा करना कब धर्म संगत है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

अल्लाह तआला की अपने बन्दों पर कृपा और दया, तथा इस संपूर्ण धर्म की खूबियों और सुंदरता में से यह भी है कि उस ने अपने बन्दों के लिए उन की इबादतों में होने वाली कमियों और गलतियों की छतिपूर्ति करना धर्म संगत क़रार दिया है, और वे पूरी तरह से कमी और त्रृटि से, नफ्ली इबादतों, या इस्तिग़फार, या इसी तरह की चीज़ों से ही बच सकते हैं।

अल्लाह तआला ने अपने बन्दों पर उन की नमाज़ में होने वाली कमी और त्रुटि की छति पूर्ति के लिए सज्दा सह्व करना निर्धारित किया है, परन्तु यह कुछ विशिष्ट मामलों की छतिपूर्ति के लिए निर्धारित किया गया है, और सज्दा सह्व हर चीज़ की छतिपूर्ति नहीं कर सकता और न ही वह हर चीज़ के लिए मश्रूअ़ (धर्म संगत) ही है।

आदरणीय शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से सज्दा सह्व के कारणों के बारे में प्रश्न किया गया, तो उन्हों ने इस प्रकार उत्तर दिया :

नमाज़ में सज्दा सह्व के कुल तीन कारण हैं :

1- वृद्धि (नमाज़ में कोई चीज़ बढ़ा देना)।

2- अभाव (नमाज़ में किसी चीज़ की कमी कर देना )

3- शक (नमाज़ के अंदर किसी चीज में शंका हो जाना)

वृद्धि : जैसे कि कोई आदमी रूकूअ़ या सज्दा, या क़ियाम या बैठक की वृद्धि कर दे।

कमी : उदाहरण के तौर पर कोई इंसान किसी रूक्न की कमी कर दे, या नमाज़ के वाजिबात में से कोई वाजिब कम कर दे।

शक : उसे शंका हो जाये कि उस ने कितनी नमाज़ पढ़ी है : उदाहरण के तौर पर तीन रक्अत या चार रक्अत।

जहाँ तक वृद्धि का संबंध है तो इंसान अगर नमाज़ के अंदर जानबूझ कर रूकूअ, या सज्दा, या क़ियाम, या बैठक की वृद्धि कर दे तो उस की नमाज़ बातिल (अमान्य और व्यर्थ) हो जायेगी, क्योंकि जब उस ने वृद्धि कर दी तो उस ने नमाज़ को उस तरीक़े पर नहीं अदा किया जिस का अल्लाह तआला और उस के पैगंबर ने आदेश दिया है, और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "जिस ने कोई ऐसा काम किया जो हमारे आदेश के अनुसार नहीं है, उसे रद्द कर दिया जायेगा।" (सहीह मुस्लिम हदीस संख्या : 1718)

किन्तु अगर इंसान भूल कर वृद्धि कर दे तो उस की नमाज़ बातिल नहीं होगी, लेकिन वह सलाम फेरने के बाद सज्दा सह्व करेगा। इस का प्रमाण अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शाम की एक नमाज़ ज़ुहर या अस्र में दो रकअत के बाद ही सलाम फेर दिया, और जब लोगों ने आप को याद दिलाया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी बाक़ी नमाज़ पूरी की, फिर सलाम फेर दिया, फिर सलाम फेरने के बाद दो सज्दा किया।" (सहीह बुखारी हदीस संख्या : 482, सहीह मुस्लिम हदीस संख्या : 573)

तथा इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें ज़ुहर की नमाज़ पाँच रकअत पढ़ाई, जब आप ने सलाम फेरा तो आप से कहा गया कि : क्या नमाज़ में वृद्धि कर दी गई है ?

तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : यह क्या है ?

लोगों ने कहा : आप ने पाँच रकअत नमाज़ पढ़ी है !!

तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपना पैर मोड़ा और क़िबला की ओर मुँह किया और दो सज्दा किया।" (सहीह बुखारी हदीस संख्या : 404, सहीह मुस्लिम हदीस संख्या : 572)

जहाँ तक कमी का मामला है : तो अगर इंसान नमाज़ के अरकान में से कोई रूक्न कम कर दे, तो वह दो हालतों से खाली नहीं है :

या तो उसे दूसरी रकअत में उस रूक्न की जगह पहुँचने से पहले याद आ जाये ; तो ऐसी स्थिति में उस पर अनिवार्य है कि वह वापस लौट कर उस रूक्न और उस के बाद के हिस्से की अदायगी करे।

और या तो वह दूसरी रकअत में उस रूक्न की जगह पहुँच कर ही उसे याद करता है, तो ऐसी स्थिति में दूसरी रकअत उस रकअत के बदले में हो जायेगी जिस का एक रूक्न उस ने छोड़ दिया है, इसलिए वह उस की जगह पर एक रकअत और पढ़ेगा, और दोनों हालतों में वह सलाम फेरने के बाद सज्दा सह्व करेगा।

उदाहरण के तौर पर : एक आदमी पहली रकअत में पहला सज्दा करने के बाद खड़ा हो गया और न तो बैठा और न ही दूसरा सज्दा किया, और जब क़िराअत शुरू कर दिया तो उसे याद आया कि उस ने एक सज्दा नहीं किया है और दोनों सज्दों के बीच नहीं बैठा है, तो ऐसी स्थिति में वह वापस हो कर दोनों सज्दों के बीच बैठेगा, फिर सज्दा करेगा, फिर खड़ा होगा और बाक़ी नमाज़ अदा करेगा, और सलाम फेरने के बाद सज्दा सह्व करेगा।

उस आदमी का उदाहरण जिस ने दूसरी रकअत में उस रूक्न की जगह पर पहुँचने के बाद ही उसे याद किया : यह है कि वह पहली रकअत में पहले सज्दा के बाद खड़ा हो गया, और दूसरा सज्दा नहीं किया और दोनों सज्दों के बीच नहीं बैठा, किन्तु उसे उस वक़्त याद आया जब वह दूसरी रकअत में दोनों सज्दों के बीच बैठा, तो ऐसी स्थिति में दूसरी रकअत ही पहली रकअत हो जायेगी, और वह अपनी नमाज़ में एक रकअत और बढ़ा देगा, और सलाम फेरने के बाद सज्दा सह्व करेगा।

जहाँ तक वाजिब में कमी करने का मामला है : तो जब वह एक वाजिब की कमी कर दे और उस की जगह से उस के बाद वाली जगह स्थानांतरित हो जाये, उदाहरण के तौर पर : वह 'सुब्हाना रिब्बयल आला' कहना भूल जाये, और उसे सज्दे से उठने के बाद ही याद आये, तो उस ने भूल कर नमाज़ के वाजिबात में से एक वाजिब छोड़ दिया, ऐसी स्थिति में वह अपनी नमाज़ को जारी रखेगा, और सलाम फेरने से पहले सज्दा सह्व करेगा, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जब पहला तशह्हुद छोड़ दिया तो अपनी नमाज़ को जारी रखा और (उस को अदा करने के लिए) वापस नहीं हुये, और सलाम फेरने से पहले सज्दा सह्व किया।

जहाँ तक शक का मामला है : तो शक का मतलब है कमी और वृद्धि के बीच असमंजस का होना है, उदाहरण के तौर पर वह असमंजस में पड़ जाये कि उस ने तीन रकअत नमाज़ पढ़ी है या चार रकअत, ऐसी स्थिति में वह दो हालतों से खाली नहीं होगा :

या तो वह कमी या वृद्धि में से किसी एक की तरफ झुकाव रखता है, तो ऐसी हालत में जिस चीज़ की तरफ उस का झुकाव है उस पर अमल करे और उस के आधार पर नमाज़ पूरी करे, और सलाम फेरने के बाद सज्दा सह्व करे।

और या तो दोनों में से किसी एक की तरफ भी उस का झुकाव न हो, तो ऐसी हालत में यक़ीन को आधार बनायेगा, और वह कम की संभावना है, और उसके आधार पर अपनी नमाज़ पूरी करे और सलाम फेरने से पहले सज्दा सह्व करे।

इस का उदाहरण यह है कि : एक आदमी ज़ुहर की नमाज़ पढ़ता है फिर उसे शक हो जाता है कि : क्या वह तीसरी रकअत में है या चौथी रकअत में ? और उस का झुकाव इस बात की तरफ हो जाता है कि वह तीसरी रकअत में है ; तो वह एक रकअत और पढ़ेगा, फिर सलाम फेर देगा, उस के बाद सज्दा सह्व करेगा।

और जिस में दोनों पहलू बराबर हों उसका उदाहरण : यह है कि एक आदम ज़ुहर की नमाज़ पढ़ता है और उसे शक हो जाता है कि : क्या वह तीसरी रकअत में है या चौथी रकअत में ? और उस का किसी एक तरफ झुकाव नहीं होता है कि वह तीसरी रकअत है या चौथी, तो ऐसी स्थिति में वह यक़ीन को आधार बनायेगा और वह कम संख्या है, और उसे तीसरी रकअत मानेगा, फिर एक रकअत और पढ़ेगा और सलाम फेरने से पहले सज्दा सह्व करेगा।

इस से स्पष्ट हो गया कि जब नमाज़ी कोई वाजिब छोड़ दे, या रकअतों की संख्या में उसे शक हो जाये और किसी एक तरफ उस का झुकाव न हो, तो सज्दा सह्व सलाम फेरने से पहले किया जायेगा।

और जब नमाज़ी अपनी नमाज़ में वृद्धि कर दे, या उसे शक हो जाये और किसी एक तरफ उस का झुकाव हो, तो ऐसी स्थिति में सज्दा सह्व सलाम फेरने के बाद किया जायेगा।

(देखिये : मजमूअ़ फतावा शैख इब्ने उसैमीन 14/14-16)

और अल्लाह तआला ही तौफ़ीक़ प्रदान करने वाला (शक्ति का स्रोत) है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर