हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
प्रश्न संख्या (20165) के उत्तर में यह बात उल्लेख की जा चुकी है कि अगर यात्री को रोज़े के कारण कठिनाई होती है तो उसके लिए बेहतर रोज़ा तोड़ देना है, और उसका कष्ट के होते हुए रोज़ा रखना मकरूह (अनेच्छिक) है, और कभी कभार उसका रोज़ा रखना हराम हो जाता है यदि वह नुक़सान या विनाश के भय का कारण बन जाए। और यह हदीस जिसकी तरफ प्रश्न करने वाले ने संकेत किया है वह इसी परिस्थिति पर लागू होती है, अर्थात्: जब यात्री को रोज़े से कड़ी कठिनाई होती हो या रोज़े से उसे क्षति पहुँचती हो। तथा हदीस का संदर्भ इस पर तर्क स्थापित करता है।
मुस्लिम (हदीस संख्या : 1114) ने जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम (मक्का पर) विजय के वर्ष (8 हिज्री में) रमज़ान के महीने में मक्का मुकर्रमा की ओर निकले तो आप ने रोज़ा रखा यहाँ तक कि आप कुराउल गमीम नामी स्थान - जो मक्का और मदीना के बीच एक जगह है - तक पहुँचे तो आप से कहा गया कि : लोगों पर रोज़ा कष्ट और कठिनाई का कारण बन गया है और वे देख रहे (या प्रतीक्षा कर रहे) हैं कि आप क्या करते हैं। चुनाँचे आप ने अस्र के बाद पानी का एक प्याला मंगवाया और उसे ऊपर उठाया यहाँ तक कि लोगों ने उसे देखा, फिर आप ने पी लिया। फिर इसके बाद आप से कहा गया कि : कुछ लोगों ने (अब भी) रोज़ा रखा है। तो आप ने फरमाया : वो लोग अवज्ञाकारी हैं, वो लोग अवज्ञाकारी हैं।
इस हदीस के संदर्भ से पता चलता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें दो कारणों से अवज्ञाकारी कहा है :
प्रथम : उन्हों ने कष्ट और कठिनाई के बावजूद रोज़ा रखा।
दूसरा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसलिए रोज़ा तोड़ दिया ताकि वे लोग आपका अनुसरण करें, गोया कि आप ने उन्हें रोज़ा तोड़ने का आदेश दिया परंतु उन्हों ने उसका पालन नहीं किया। अतः आप ने उन्हें अवज्ञाकारी कहा।
नववी कहते हैं :
यह उस व्यक्ति पर लागू होता है जिसे रोज़े से क्षति पहुँचती है . . . और इस व्याख्या का समर्थन हदीस के इस शब्द कि : “लोगों पर रोज़ा कष्ट और कठिनाई का कारण बन गया है” से होता है, इस आधार पर यात्रा में रोज़ा रखने वाला अवज्ञाकारी नहीं होगा यदि वह रोज़े से क्षति ग्रस्त नहीं होता है। (संशोधन के साथ समाप्त हुआ).
इब्नुल क़ैयिम ने तहज़ीबुस्सुनन में फरमाया :
जहाँ तक नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फरमान “वो लोग अवज्ञाकारी हैं” का संबंध है तो वह एक विशिष्ट घटना से संबंधित है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे रोज़ा तोड़ने की चाहत की लेकिन उनमें से कुछ लोगों ने इसका विरोध किया तो इस पर आप ने यह बात कही . . . नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अस्र के बाद रोज़ा तोड़ दिया ताकि वे आपका अनुसरण करें, लेकिन जब कुछ लोगों ने आपका अनुसरण नहीं किया तो आप ने फरमाया : “वो लोग अवज्ञाकारी हैं।” इस से आप की इच्छा यात्री पर पूर्ण रूप से रोज़े को हराम ठहराना नहीं थी। (अंत).
हाफिज़ इब्ने हजर ने कहा :
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यात्रा में रोज़ा रखने वालों की तरफ अवज्ञा को संबंधित इसलिए किया है कि आप ने उन्हें (रोज़ा तोड़ने का) निश्चित आदेश दिया था तो उन्हों ने उसका विरोध किया। (संशोधन के साथ समाप्त हुआ)
इस आधार पर, यह हदीस एक विशिष्ट परिस्थिति में वर्णित हुई है, और उसको यात्रा में रोज़ा रखने वाले सभी लोगों पर लागू करना उचित (सही) नहीं है।
इस तथ्य पर इस बात से भी तर्क स्थापित होता है कि यह बात प्रमाणित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यात्रा में रोज़ा रखते थे, यदि यह अवज्ञा और पाप होता तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ऐसा नहीं करते।