शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
हिन्दी

क्या यात्रा के लिए महरम का पति होना अनिवार्य है? क्या पत्नी उसे अपने लिए महरम के रूप में अस्वीकार कर सकती है?

129345

प्रकाशन की तिथि : 28-10-2024

दृश्य : 3742

प्रश्न

क्या मैं अपने पति के साथ हज्ज के फरीज़ा की अदायगी के लिए जाने से इंकार कर सकती हूँ? मेरे इस सवालः कि मैं हज्ज के लिए उनके साथ नहीं जाना चाहती हूँ, का कारण यह है कि : वह 8 साल से – जो कि हमारी शादी की उम्र है – एक पत्नी के रूप में मेरी भावनाओं को आहत करते रहे हैं, और उन्होंने मुझे बहुत कष्ट पहुंचाया है। और मैं समझती हूँ कि हज्ज करने के लिए जाना एक विशेष और महान कर्तव्य है, जिसकी अदायगी मुझ पर अनिवार्य है।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सर्व प्रथम :

एक महिला के लिए हज्ज के लिए, या किसी और काम के लिए, बिना महरम के यात्रा करने की अनुमति नहीं है। तथा वह अपने पति की अनुमति के बिना, हज्ज के लिए या किसी और काम के लिए बाहर नहीं जाएगी। इसका अल्लेख प्रश्न संख्याः (96670) और (99539) के उत्तरों में उल्लेख किया जा चुका है।

दूसरा :

एक पति के लिए अपनी पत्नी के साथ हज्ज करना अनिवार्य नहीं है, और न ही उसके लिए अपनी पत्नी के हज्ज का खर्च उठाना अनिवार्य है, सिवाय इसके कि उसने शादी के समय इसकी शर्त लगाई हो।

शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया : क्या किसी आदमी पर अपनी पत्नी के साथ हज्ज करना अनिवार्य है कि वह उसके लिए महरम हो जाए? और क्या उसके लिए हज्ज के दिनों में अपनी पत्नी को खर्च (गुजारा भत्ता) देना आवश्यक है?

तो उन्होंने उत्तर दिया :

”पति पर यह अनिवार्य नहीं है कि वह अपनी पत्नी के साथ हज्ज करे, सिवाय इसके कि शादी के आयोजन के समय उसपर इसकी शर्त लगाई गई हो। तो ऐसी स्थिति में उसपर इस शर्त की पूर्ति करना अनिवार्य है। तथा उसके लिए (हज्ज के दौरान) अपनी पत्नी को खर्च (गुजारा भत्ता) भुगतान करना आवश्यक नहीं है, सिवाय इसके कि वह फर्ज़ हज्ज हो, और पति ने उसे उसकी अनुमति दी हो। ऐसी स्थिति में उसके लिए उस पर केवल घर पर उपस्थिति के समय के खर्च की मात्रा में खर्च करना आवश्यक है।” अंत

”फतावा अश-शैख अल-उसैमीन (21/208)”.

तीसरा :

महिला के महरम में यह शर्त नहीं है कि वह उसका पति ही होना चाहिए।

विद्वानों के निकट ‘महरम’ की परिभाषा यह है किः वह पुरुष जिस पर उस महिला का विवाह, उसके किसी वैध कारण से हराम होने की वजह से, हमेशा के लिए निषिद्ध (हराम) हो; यानी उसका निषिद्ध (हराम) होना वंश, या स्तनपान, या वैवाहिक संबंध के कारण हो।

उदाहरण के तौर पर : पिता, दादा, पुत्र, भाई, चाचा, मामा, भतीजा, भाँजा …. या स्तनपान से उसका पिता या उसका भाई, या उसके पति का पिता (ससुर) या उसका पुत्र।

देखें: “मुग्नी अल-मुहताज” (1/681), और इब्ने क़ुदामा की “अल-मुग्नी” (5/32).

तथा उसे विश्वसनीय (भरोसेमंद) और समझदार (बुद्धिमान) होना चाहिए, जबकि जमहूर विद्वानों ने यह शर्त लगाई है कि उसे वयस्क (बालिग) होना चाहिए।

तथा ”अल-मौसूअतुल फिक़्हिय्या” (17/36, 37) में आया है :

”विश्वस्त महरम जिसकी हज्ज के लिए महिला की सक्षमता में शर्त लगाई गई है, वह हर वह विश्वस्त, बुद्धिमान और वयस्क पुरुष है जिसपर उस महिला से विवाह करना हमेशा के लिए हराम (निषिद्) है, चाहे वह रिश्तेदारी (वंश), या स्तनपान, या ससुराली संबंध से हो।” अंत हुआ।

चौथा:

चूँकि महरम का पति होना आवश्यक नहीं है: इसिलए महिला को हज्ज के लिए उसके पति के साथ यात्रा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। बल्कि वह उसके अलावा किसी दूसरे को चुन सकती है ताकि वह उसके साथ हज्ज करे।

इस आधार पर, प्रश्नकर्ता बहन ने अपने पति के उसके साथ संबंध की प्रकृति का जो उल्लेख किया है : वह – इन शा अल्लाह – उसके लिए अपने पति के साथ हज्ज की यात्रा न करने के लिए एक बहाना (उज़्र) समझा जाएगा, परंतु वह किसी दूसरे महरम को खोजे जो उसके साथ यात्रा कर सके।

तथा पति ऐसे व्यक्ति को रोक सकता है जिसे वह यह समझता है कि वह उसकी पत्नी के लिए महरम बनने के योग्य नहीं है, क्योंकि वह – उदाहरण के तौर पर – फ़ासिक़ (दुराचारी), या कमजोर, या बीमार है।

”अल-मौसूअतुल फ़िक़्हिय्या (17/37)”  में आया है :

”अगर महिला को कोई महरम मिल जाता हैः  तो पति उसे उसके साथ अनिवार्य हज्ज करने के लिए जाने से नहीं रोक सकता है।” अंत हुआ।

यदि पति आपके किसी महरम को यात्रा करने से मना करने पर अटल रहता है, सिवाय इसके कि आपका वह महरम वह स्वयं होः तो हम आपको नसीहत करते हैं कि उसकी इस बात को स्वीकार कर लें, क्योंकि उसकी अवहेलना करने पर बुरे परिणाम निष्कर्षित होते हैं। और इसलिए कि हो सकता है कि उसका हज्ज उसकी हिदायत का कारण बन जाए। आशा है कि अल्लाह उसकी स्थिति और उसके आचरण को बदल दे। मनुष्य नहीं जानता है कि उसके लिए अच्छाई कहाँ नियत है, और न ही उसके कारण को जानता है।

हम अल्लाह से प्रश्न करते हैं कि वह उसे सर्वश्रेष्ठ नैतिकता का मार्गदर्शन करे, और आप दोनों को भलाई पर एकत्र कर दे।

और अल्लाह ही सबसे अच्छा ज्ञान रखता है

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर