रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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मुसलमानों और काफिरों के समारोहों में एक मुसलमान के भाग लेने के प्रावधान और स्थितियाँ

प्रश्न

प्रश्न : मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि एक मस्जिद में कुछ मुसलमानों की ओर से एक अजीब मामला पेश आया, वह यह कि मैं उन लोगों में से था जो पिछले सप्ताह एक ईसाई मंत्री के साथ एक विशेष बैठक में उपस्थित थे। अल्लाह का चाहना ऐसा हुआ कि मैं भी वहाँ मौजूद था। इस बैठक में एक शैख (विद्वान) और तीन बहनों ने एक धार्मिक समारोह के आयोजन के लिए तैयारी का प्रयास किया, और वह इस तरह कि उन्हों ने अन्य धर्मों के अनुयायियों के साथ मोमबत्ती उठाया, फिर उस झील के चारों ओर चक्कर लगाया जिसके पास समारोह आयोजित किया जा रहा था। इसलिए आशा है कि इस बात को स्पष्ट करेंगे कि मैं उन लोगों से कैसे बयान करूँ कि यह काम बिदअत (नवाचार) है? और उनके लिए कैसे प्रमाणित करूँ कि यह काम क़ुरआन और सुन्नत के अनुसार सहीह नहीं है? अल्लाह आप लोगों को अच्छा बदला प्रदान करे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

समारोहों के विभिन्न रूप और भेद हैं, और उसी के अधीन उसके प्रावधान विभिन्न होते हैं, चाहे वे समारोह मुसलमानों के द्वारा आयोजित किए गए हों या काफिरों द्वारा। इस मुद्दे पर बात निम्नलिखित बिंदुओं में सुनियोजित होती है :

1- किसी मुसलमान के लिए काफिरों के धार्मिक अनुष्ठानों और समारोहों में भाग लेना जायज़ नहीं है, और न ही उन्हें सिरे से इसकी बधाई देना जायज़ है। और यह पाप के एतिबार से समारोहों की सबसे भयानक और गंभीर सिथति है ; क्योंकि यह उसके करने वाले को कुफ्र तक पहुँचा सकती है।

इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

''कुफ्र के विशिष्ट प्रतीकों (रीतियों और कर्मकाण्डों) की बधाई देना सर्व सहमति के साथ हराम (निषिद्ध) है, उदाहरण के तौर पर उन्हें उनके त्योहारों और उनके व्रतों की बधाई देना।चुनाँचे वह इस प्रकार कहे किः ''आप का त्योहार शुभ हो'', या ''इस त्योहार पर आप के लिए शुभकामनाएं'' आदि। तो ऐसा कहने वाला आदमी यदि कुफ्र (नास्तिकता) से सुरक्षित रह गया : तब भी वह हराम (निषिद्ध) चीज़ों में से तो है ही, और वह ऐसे ही है जैसे कि वह उसे सलीब को सज्दा करने की बधाई दे, बल्कि यह अल्लाह के निकट शराब पीने, क़त्ल करने, व्यभिचार करने आदि की बधाई देने से अधिक बड़ा पाप और अल्लाह के सख्त क्रोध का कारण है।''

''अहकामो अहलिज़्ज़िम्मह'' (3/211).

तथा ज़हबी रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

यदि ईसाइयों की कोई ईद है और यहूदियों की कोई ईद है : जो उन्हीं के लिए विशिष्ट है, तो कोई मुसलमान उसमें उनके साथ भाग नहीं लेगा, जिस तरह कि वह उनकी शरीअत, या उनके क़िब्ले में उनके साथ साझा नहीं करता है।

''तश्बीहुल खसीस बि-अहलिल खमीस'', पत्रिका ''अल-हिकमह'', अंक 4, पृष्ठ 193 में प्रकाशित।

तथा प्रश्न संख्याः (947), और (11427), और(1130), और (115148) देखें।

2- विद्वानों ने काफिरों के शादी, या बीमारी से ठीक होने, या यात्रा से लौटने जैसे व्यक्तिगत अवसरोंपर उनके समारोहों में उपस्थित होने के बारे में मतभेद किया है, और सबसे राजेह (वज़नदार) कथन जायज़ होने का है इस शर्त के साथ कि उसमें कोई धार्मिक हित पाया जाता हो जैसे कि उनके दिलों को इस्लाम के लिए आकर्षित करना, या उन्हें धर्म के लिए आमंत्रित करना।

इसका विस्तृत वर्णन प्रश्न संख्या (127500) के उत्तर में देखें।

3- काफिरों के निजी समारोहों और अवसरों में, मुसलमान के लिए पोशक में, या कोई निर्धारित खाना खाने में, या कोई विशेष आकृति (रूप) अपनाने में काफिरों की समानता अपनाना जायज़ नहीं है, और उसी में से : मोमबत्तियाँ जलाना और उनके साथ चक्कर लगाना है।

शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिया रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

मुसलमानों के लिए जायज़ नहीं है कि उन (काफिरों) के त्योहारों से संबंधित किसी भी चीज़ में उनकी समानता (अनुरूपता) अपनाएं, न तो भोजन में, न पोशाक में, न स्नान में, न आग जलाने में, न किसी आदत (अभ्यास) जैसे जीविका, या उपासना आदि को निरस्त करने में।

तथा न कोई भोज करना जायज़ है, न उपहार भेंट करना,और न तो इस उद्देश्य के लिए, उन्हें कोई ऐसी चीज़ बेचना जायज़ है जिससेउसपर मदद ली जाती हो ।

इसी तरह बच्चों को उनके त्योहारों में होने वाले खेल-कूद पर सक्षम करना जायज़ है, और न ही बनाव सिंघार (श्रृंगार) का प्रदर्शन करना ।

सारांश यह कि : मुसलमानों के लिए उनके त्योहारों कों उनके प्रतीकों में से किसी भी चीज़ के साथ विशिष्ट करना जायज़ नहीं है।बल्कि मुसलमानों के यहाँ उनके त्योहार का दिन बाक़ी सभी दिनों के समान होना चाहिए, मुसलमान उसे उनकी विशेषताओं में से किसी चीज़ के साथ विशिष्ट नहीं करेंगे।

''मजमूउल फतावा'' (25/329).

4- मुसलमान के लिए काफिरों या मुसलमानों के किसी ऐसे समारोह में शामिल होना जायज़ नहीं है, जिसमें किसी असत्य धर्म या विचारधारा को बढ़ावा दिया जाता हो, या किसी विकृत सोच या भ्रष्ट सिद्धांत की प्रशंसा की जाती हो।

तथा प्रश्न संख्या : (3325) और (10213) का उत्तर देखें।

5- मुसलमान के लिए काफिरों या मुसलमानों के ऐसे समारोह या अनुष्ठान में उपस्थित होना जायज़ नहीं है जो हर दिन, या हर महीने, आदि दोहराए जाने वाले त्योहार के रूप में हों, जैसे कि जन्मदिन और मातृ दिवस।

तथा प्रश्न संख्या (5219), (1027), (26804) और (59905) के उत्तर देखें।

6 - मुसलमान के लिए काफिरों या मुसलमानों के किसी ऐसे समारोह या अनुष्ठान में भाग लेना जायज़ नहीं है जो अपने अवसर के एतिबार से हराम और निषिद्ध है, जैसे कि वेलेंटाइन दिवस (प्रेम का त्योहार), किसी पापी या तानाशाह का जन्मदिन, या किसी नास्तिक या पापी पार्टी की स्थापना का अवसर।

तथा प्रश्न संख्या (135119) का उत्तर देखें।

7- मुसलमान के लिए काफिरों या मुसलमानों के किसी ऐसे समारोह और अनुष्ठान में भाग लेना जायज़ नहीं है जिसमें महिलाओं के साथ मिश्रण होता हो, या उसमें संगीत हो, या उसमें निषिद्ध भोजन किया जाता हो।

तथा प्रश्न संख्या (6992) और (97104) के उत्तर देखें।

जब आप ने उपर्युक्त बातों को जान लिया : तो आपको उस बैठक और उसमें होने वाले समारोह के हराम होने का स्पष्ट रूप से पता चल गया होगा ; क्योंकि उसमें महिलाओं के साथ मिश्रण, तथा मोमबत्तियों को जलाने और उसे लेकर चक्कर लगाने में काफिरों के साथ समानता पाया जाता है, साथ ही साथ इसमें उस असत्य (ईसाई) धर्म का सम्मान करना और उसे बढ़ावा देना पाया जाता है, और यह मात्र उस पर चुप रहने के द्वारा ही नहीं है बल्कि उस वर्जित व निषिद्ध समारोह में उसका सम्मान करने और उसके प्रतीकों (कर्मकाण्डों) को मंज़ूरी देने के द्वारा है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर